: १७६ : पर्युषण अंक : भाद्रपद : २००० :
टाणां आवे त्यारे ज्ञानी स्वभावनी शांतिना सडका लेता होय अने देह छूटी जाय; बहारमां भले रोग आवे,
पण अंदर स्वरूपनी स्थिरताथी खसे नहीं. अने अज्ञानीने मरणनां टाणां आवशे त्यारे देह उपरना लक्षथी ते
रोतां रोतां मरशे. ज्ञानी स्वरूपनी भावनाने रगडतां रगडतां ज्यां विकल्प छुटी गयो त्यां देह छुटी जाय छे,
अहीं निर्विकल्प दशा सहित पंडितमरणनी वात छे, तेथी छठ्ठे गुणस्थाने–विकल्प सहित दशामां देह न छूटे पण
सातमे गुणस्थाने निर्विकल्पदशामां ठरतां देह छूटी जाय छे ते समाधि मरण अहीं लीधुं छे, अहीं उत्कृष्ट पंडित
मरणनी वात लीधी छे.
देहना संयोग साथे ज वियोग निश्चयथी छे एवुं वियोग पहेलांं भान वर्ते छे. स्वरूपनी स्थिरतामां
अंदर चैतन्य गोळो छूटो पड्यो त्यां देह छूटी जाय छे ए समाधि मरण छे. ध्यान–ध्येय भेद पडे ते पण नहीं,
पंडित मरण वखते शुभथी छूटी जईने–बधा विकल्पथी छूटी जईने अंदर ठरी गयो ते ज उत्कृष्ट उत्तमार्थी
प्रतिक्रमण छे. उत्कृष्टनी ज वात लीधी छे, पुरुषार्थनी खामीनी वात ज लीधी नथी. स्वरूपना आनंदमां रमता
रमता जाय छे, देहनी खबर पण नथी, देह छोडतां स्वरूपनो वधारे आनंद छे, पर उपरनुं लक्ष छोडीने स्वरूपमां
ठरवाना बीज वाव्यां छे, तेथी मरण टाणे तेना फळरूपे स्वरूपना आनंदमां रमतां रमतां देह छूटी जाय छे. आ
ज उत्कृष्ट पंडित मरण छे.
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परमपूज्य सद्गुरुदेवनी अमृतवाणी • •
१ कर्म जड छे–आत्मा चेतन छे, बन्ने वस्तु भिन्न छे. कर्म अने आत्मा एकक्षेत्रे भेगां होवा छतां कर्म
आत्माने के आत्मा कर्मने–कोई एक बीजाने–गति करावतां नथी. पण बन्ने पोतपोताना स्वतंत्र उपादान कारणे
जाय छे.
२ शुभभाव ते समय पूरता अशुभ भावने टाळी शके छे–पण जन्ममरणने टाळी शकतां नथी.
३ निमित्त एटले व्यवहार मात्र अर्थात् खोटुं. (मींदडीने वाघ कहेवा जेवुं उपचारमात्र)
४ आत्मानो स्वभाव शुद्ध ज्ञानमय ज छे, छतां अनादिथी अज्ञानरूप–अशुद्ध मानतो आवे छे; तोपण
स्वरूप तो त्रिकाळी शांत अविकारी शुद्ध ज छे, अवस्था पूरतो जेटलो विकार करे तेटलो (अवस्थामां) अशुद्ध
छे. आत्मामां विकार करवानी योग्यता छे–पण स्वभाव नथी. ते योग्यता पोते फेरवी नांखे तो अविकारी स्वरूप
ज छे. जे स्वरूपे छे ते स्वरूपे पोताने जोयो नहीं अने पररूपे मान्यो ते ज विकार छे. माननारो ते ऊंधी
मान्यता फेरवी नांखे तो शुद्ध अविकारी ज छे.
प आत्मा एकवार पर्याये शुद्ध थाय तो फरी कदी अशुद्धता थाय नहीं. तेथी बे वात नक्की थाय छे के
आत्मा स्वभावे अनादि अनंत शुद्ध छे, पण पर्याये अनादिथी अशुद्ध छे, अने ते अशुद्धता टळी शके छे.
६ चोथो काळ होय के पंचम काळ होय, महाविदेहमां हो के भरतमां हो, गमे त्यां हो–पण सत्य
समजवामां तारा पुरुषार्थनी जरूर तो पहेली ज पडवानी!
७ द्रष्टिमां ज संसार अने द्रष्टिमां ज मोक्ष. द्रष्टिनी भूलमां संसार–भूल टळ्ये मोक्ष. अखंड चिदानंद
एकरूप ध्रुव स्वभाव उपरनी द्रष्टि ए ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान अने चारित्रनी निर्मळ दशानुं कारण छे.
८ वस्तुनी पर्याय क्रमबद्ध थाय छे एम नक्की थतां “मारी पर्याय मारामांथी ज क्रमबद्ध प्रगटे छे.” एवी
श्रद्धा थई अने तेथी पोतानी पर्याय माटे कोई पर तरफ जोवानुं रह्युं नहीं–एटले–स्वद्रव्य उपर ज द्रष्टि जतां
अल्पकाळमां पूर्ण निर्मळ पर्याय ऊघडी ज जवानी.
९ रे! मूर्ख! क्षणिक देहनी खातर अविनाशी आत्माने न भूल. तारामां भिन्नतानुं एटले सुधी भान
होवुं जोईए के “देह तो काले पडतो होय तो भले आजे पडो! देह मारुं स्वरूप छे ज नहीं हुं तो अशरीरी सिद्ध
स्वरूप छुं.”