Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 29

background image
: १७८ : पर्युषण अंक : भाद्रपद : २००० :
. आत्मा.
भगवान आत्मा पोते पोताथी ज सिद्ध अने परमार्थरूप एवो ज्ञान स्वभावी
छे. हुं स्वयंसिद्ध छुं, हुं माराथी ज सिद्ध छुं. मने सिद्ध करवामां मारी साबिती करवामां
कोई शरीर, मन, वाणी आदि परनी जरूर पडे तेम नथी. परमार्थरूप भगवान
आत्मा स्वतःसिद्ध छे, तेने सिद्ध करवा माटे–नक्की करवा माटे पुण्यनुं–रागनुं के पर
संयोगनुं अवलंबन लेवुं पडे तेम नथी.
(समयसारजी गाथा ३२ना प्रवचनमांथी)

मोटाभाई–त्यारे कहो के तमारा मानेलां प्रतिक्रमण करतां तमारा जीवनी रक्षा थई के नहीं, एटले के
तमारामां विकार टळ्‌यो के नहीं?
नानाभाई–जीवनुं यथार्थ स्वरूप हुं समजतो नथी तो पछी मारा जीवनी रक्षा थई एम केम कही शकुं?
मोटाभाई–ज्ञानीओ कहे छे के–जीव पोतानुं स्वरूप न समजे त्यां सुधी पोतानुं भाव मरण समये समये
करतो रहे छे अने तेथी ते दुःख ज भोगवे छे. तमे तमारुं स्वरूप समज्या नथी तेथी तमारुं भाव मरण तमे
दरेक समये करो छो. समज्या वगरनी थती प्रतिक्रमणनी क्रिया वखते पण भाव मरण तो चालु ज छे तो पछी
तमारा जीवनी रक्षा क्यां थई? बिलकुल थई नहीं, पण तमारी अरक्षा–अर्थात् भाव मरण थयुं. ए रीते छ काय
जीवनी रक्षा थई नहीं.
नानाभाई–पण बीजा जीवोने तो में न मार्या एटलो लाभ तो तेमने थयोने?
मोटाभाई––आ विषय बराबर विचारवा जेवो छे. तमे जीवने तो ओळखता नथी तो पछी तमे तेने
मार्यो के न मार्यो ए प्रश्न उठेज शी रीते? वळी जीवो जीवे छे ते तमारे कारणे के पोताने कारणे जीवे छे ते नक्की
करवानी जरूर छे माटे तमे शुं मानो छो ते कहो.
नानाभाई–में आ बाबतमां विचार करी साचुं स्वरूप नक्की कर्युं नथी माटे तमो ज समजावो.
मोटाभाई–युवको जो उंडा उतरी साचुं स्वरूप समजवा महेनत करे तो घणुं प्रशंसनीय छे, माटे धीरजथी
सांभळी; ते बाबत विचार करी सत्यासत्यनो निर्णय करशो. कोई कहे छे माटे मानी लेवुं एतो अंधश्रद्धा छे अने
अंधश्रद्धा ते तो अज्ञान छे, अविवेक छे माटे विचारवान जीवोए ते छोडवुं ज जोईए.
नानाभाई–तमारीवात साची छे. अंधश्रद्धा ए तो ऊंधाई छे. ऊंधाईथी लाभ थाय नहीं. साचुं
समजवानी मने जिज्ञासा थई छे माटे तमे कहेशो ते सांभळी हुं विचारीश अने सत्यासत्यनो निर्णय करीश.
मोटाभाई––बहु सारुं. एम जो करशो तो असत्यमांथी तमे पाछा फरशो, सत्यने यथार्थ ओळखशो अने
तेज साचुं प्रतिक्रमण छे, अने तेम थशे तो आ संवत्सरी प्रतिक्रमण तमोने साचरूपे थशे.
नानाभाई–मने विचार एवो थाय छे के–मारे साचुं प्रतिक्रमण (वीतरागनी आज्ञानुसार) करवुं ज
जोईए. जो तेम न करूं तो मारो अमुल्य मनुष्य भव एळे जाय.
मोटाभाई–ठीक त्यारे विचारो. कोई जीव बीजा जीवने मारवा समर्थ छे? एम घणी वखत बने छे के–
ज्यारे एक माणस बीजाने मारी नांखवा बंदुक मारे त्यारे ते माणस न मरे अने त्राहेत–अजाण्यो माणस आडो
आवी जाय अने ते मरीजाय तेनो सिद्धांत एवो छे के:– दरेक जीव अने तेनुं शरीर एक साथे रहेवा योग्य होय
त्यां सुधी चोकसपणे रहे ज; लोको तेने जीवन कहे छे. जीव अने शरीर साथे रहेवा लायक न होय त्यारे छुटा
पडे; छुटा पडे तेने लोको मरण कहे छे.
अहीं एटलुं खास लक्षमां राखवानुं छे के, एक माणसे बीजाने मारवा–खून करवा विचार कर्यो
अने ते विचारनी पूर्णता माटे बीजा माणसने बंदुक मारी पण बीजो माणस बची गयो. त्यां जो के कांई
पण शारीरिक ईजा नथी थई तो पण खून करवानो जे जीवे भाव कर्यो ते जीवे पोते पोतानी हिंसा करी ज
छे, केमके तेणे तीव्र अशुभ भाव सेवी पोतानी शुद्धतानुं खून कर्युं छे. अज्ञानी जीवो पोताना विकारी
भावोथी पोताने लाभ थाय एवी ऊंधी पकडथी