स्वभाव छे, कर्मने लईने ज्ञान जाणतुं नथी, ज्ञान तो ज्ञानने लईने थाय छे.
खीलतुं होय?’ तेने कहे छे के, सांभळ! तारा ज्ञाननी ते टाणांनी अवस्था ज स्व–परने जाणनारी छे, तेथी ते
कर्मने जाणे छे, त्यां तारा ज्ञाननुं सामर्थ्य छे; तें तारा ज्ञाननी अवस्था तरफ न जोतां कर्म उपर लक्ष कर्युं अने
तारा ज्ञाननी अवस्थानी प्रतीत न करी ते द्रष्टिनी ज भूल छे.
ज्ञान कर्युं. कर्म तारा ज्ञानने रोकतुं नथी, कर्म तो तारा ज्ञाननुं ज्ञेय छे. ज्ञेय वस्तु ज्ञानने रोके नहीं.
ज्ञानावरणीय कर्म जड छे. ते ज्ञानने रोकतुं नथी, पण ज्ञेय छे. जो ज्ञेयवस्तु ज्ञानमां नडे तो केवळीने लोकालोक
ज्ञेय छे ते तेने नडवां जाईए, पण तेम बनतुं नथी केमके ज्ञानने–ज्ञेय वस्तु नडती नथी.
जाणवामां असाता क्यां नडी? साता सारी अने असाता खराब ए वात पण साची नथी.
कारणे ज्ञाननी अवस्था माने छे, एटले ज्ञान अने ज्ञेयनी एकता माने छे ते ज अधर्म छे; अने ते मान्यता फरी
के हुं तो जाणनार ज छुं. (तो ए धर्मनुं कारण छे.) आमां मान्यता ज फेरववानी छे, बहारमां कांई करवानुं
नथी. वारंवार आ ज श्रवण, आ ज मनन अने आ ज श्रद्धाना घा पडवा जोईए; वारंवार वस्तुनुं स्वाध्याय
ध्यान करवुं जोईए, आनुं ज श्रवण मनन जोईए.
अवस्था ते ज याद आवे एवी हती. तारी ते अवस्थानुं ज्ञान ज करने! कर्म तो ज्ञेय छे, जड छे, ते कांई पण
जाणतां नथी अने आत्मानुं ज्ञान तो बधुं जाणे छे. भगवान जिनदेव कहे छे के, कर्म अने आत्मा तद्न जुदां छे.
ज्ञान अने कर्म जुदां छे ते ज्ञान करने!
आत्मा छे; तेमां भेद पडे ते भेद जे द्रष्टिनो विषय थतो नथी, पण अवस्थानो विषय थाय
छे. एटले द्रष्टिमां रागद्वेष छे ज नहि, ज्ञानमां ते ज्ञेय छे, चारित्रनी अपेक्षाए ते झेर छे.
द्रष्टिनी अपेक्षाए रागद्वेष जे ज्ञानीने थाय छे ते निर्जरा अर्थे छे. जेटली जेटली निर्मळ
पर्याय ज्ञानीने वधे तेटला तेटला प्रमाणमां नैमित्तिक भाव अने पर निमित्त छूटतां जाय
छे, एवो निमित्त नैमित्तिक भावनो संबंध छे.