: भाद्रपद : २००० : पर्युषण अंक : १८३ :
साते नरकना बधा जीवोनां शरीर नपुंसक छे. पूर्वे एटला जोरथी उंधु वीर्य नांख्युं छे के वीर्यहीन–नपुंसक थई
गया छे; तथा देवमां नपुंसकवेद कोईने होतां ज नथी, केमके तेमणे अशुभमां ओछुं वीर्य जोडयुं छे; तेथी नपुंसक
थतां नथी. जगतनी व्यवस्था ज आवा नियमवाळी छे. आत्मसिद्धिमां कह्युं छे:–
ते ते भोग्य विशेषनां, स्वर्गादि गतिमांय.
कर्म अने आत्मा त्रणे काळ जुदां छे. कर्म आत्माने कांई नुकसान करे नहीं, अने आत्मानी सत्ता कर्म
उपर चाले नहीं, मात्र आत्मा तो जाणे छे. कर्म ज्ञेय छे.
शास्त्रमां ज्यारे कर्म सिद्ध करवां होय त्यारे एम आवे के ‘ज्ञानावरणीय कर्म आत्माना ज्ञानने रोके छे,’
ते वात निमित्तथी छे. श्रीमदे एकवार कह्युं छे के:– कर्मने सिद्ध करवुं होय त्यारे आपणे एकवार नक्की कर्युं के हवे
राग नथी करवो; छतां बीजी राग आवे तो समजवुं के आत्मा पासे ते वखते बीजी चीज छे अने ते चीज कर्म
छे. त्यां कर्मे राग कराव्यो एम नथी कह्युं, पण ‘कर्म चीज छे’ एम साबित करवा कह्युं छे.
‘राग नथी करवो’ एवो निर्णय करनारो तुं छो, छतां राग थाय छे. त्यां तारी अस्थिरताथी बीजी चीज
उपर लक्ष करवाथी तने राग थाय छे. जो चीज न होय तो तारुं लक्ष चूकीने बीजी चीज उपर लक्ष कर्या वगर
राग थाय नहीं, पण बीजी चीज राग करावती नथी.
पांच ईन्द्रिय अने मनथी थतुं परनुं ज्ञान तेनो उघाड कदाच ओछो होय, तोपण अंतर स्वरूपनी श्रद्धा
कर! अंतर स्वरूपनी श्रद्धा अने एकाग्रता करीने केवळज्ञान प्रगटी शके छे. केवळज्ञान थया पहेलांं तेमने
(केवळी थनारने) पण परनो बोध– (बहारनुं ज्ञान) ओछो होय छतां अंदरनी श्रद्धा, ज्ञान अने एकाग्रताथी
केवळज्ञान थाय छे.
ज्यारे ज्यारे कर्म याद आवे त्यारे त्यारे कर्म उपर वजन न आपतां आ तो मारां ज्ञाननी अवस्थानुं
सामर्थ्य छे एम तारा ज्ञान तरफ लक्ष कर!
कोई कहे:– शास्त्रमां कर्मनी स्थितिनी वात आवे छे ने? तो त्यां तो कर्मनी स्थिति ‘आवो ने आवो
भाव राख्या करे तो आटलो वखत टकशे’ एम बताववा कह्युं छे. उंधो भाव तो एक ज समयनो छे, संसार
एक ज समय पूरतो छे.
‘मारे अनंत संसार हशे तो? मारे कर्मनी लांबी स्थिति हशे तो?’ एवो जे विकल्प आव्यो तो तेमां
तारा ज्ञानमां ते विकल्पनुं ज्ञान ज थयुं, त्यां ज्ञानमां अनंत संसार आव्यो नथी, पण अनंतनुं ज्ञान कर्युं छे.
अनंतनुं ज्ञान करतां ज्ञानने अनंतभव लागतां नथी. तथा ‘कर्मनी स्थिति लांबी हशे तो?’ एम कर्म तरफ
जोवा करतां तारी स्थिति अनादि अनंत छे ते तरफ जोने! कर्म तो तारा ज्ञेय छे. ते ताराथी जुदी चीज छे.
‘जुदापणानी श्रद्धा ते जुदा थवानो (मोक्षनो) उपाय छे अने पर साथे संयोग बुद्धि ते संयोगनुं
(संसारनुं) कारण छे.’
धर्म:– चौदब्रह्मांडमां व्यापेलुं सर्वज्ञ भगवाने जोयेलुं अरूपी अचेतन द्रव्य छे, तेनामां ज्ञान नथी, ते कांई
जाणतुं नथी, अने ज्ञान बधुं जाणे छे. धर्मद्रव्य लक्षमां आव्युं माटे ज्ञान थयुं एम नथी, पण तारा ज्ञाननी
पर्याय ज एवी छे के जे लक्षमां ले तेनुं ज्ञान ते समये तारा ज्ञानथी थाय छे. तारा ज्ञाननी पर्याय चेतन छे
अने धर्मास्ति अचेतन छे. बन्ने जुदां छे एम श्री जिनदेवे कह्युं छे.
सर्वज्ञ भगवान सिवाय धर्म–अधर्म द्रव्य कोई जोई शके नहीं, अने जैन सिवाय बीजा वातो पण करी
शके नहीं (एटले के बीजा चार द्रव्योमां तो वातो करीने अनुमानथी पण माने, पण आ धर्मास्ति अने
अधर्मास्ति बे द्रव्योनी तो वात पण न करी शके.)
तारा ज्ञाननी अवस्थानी ताकात ज एवी छे के ते समये तने धर्मास्ति द्रव्य लक्षमां आव्युं. पण तारुं
ज्ञान धर्मास्ति द्रव्यने कारणे थयुं नथी. ते धर्मद्रव्यमां ज्ञान नथी, ते कांई जाणतुं नथी, अने आत्माज्ञानस्वरूप छे
ते बधुं जाणे छे, माटे ज्ञान जुदुं छे अने धर्मद्रव्य जुदुं छे, एम श्री जिनदेवे कह्युं छे.
उपसर्ग––बाह्य संयोग ते उपसर्ग नथी, पण बाह्य संयोगमां रागद्वेष करे ते उपसर्ग छे; अने ते
वखतनो बाह्य संयोग ते ‘उपसर्ग–निमित्त’ छे.