: भाद्रपद : २००० : पर्युषण अंक : १८५ :
सुवर्णपूरीना स्वाध्याय मंदिरमां श्री सद्गुरु मुखेथी प्रगट थयेल
• • कवळन अतर पटन रहस्य • •
शुद्ध कारण पर्याय
अथवा ध्रुव पर्याय
(१) ‘द्रव्यनुं वर्तमान ते पर्याय’ जेम द्रव्य अनादि अनंत छे तेम द्रव्यनुं वर्तमान पण अनादि अनंत
एकरूप वर्ते ज छे. कोई वस्तु ‘वर्तमान’ वगर होय नहीं, अने वस्तुनुं वर्तमान अधुरुं होय नहीं, तेथी जेम
द्रव्य पुरुं छे तेम वर्तमान पर्याय पण पूरी छे; द्रव्य ध्रुव छे तो द्रव्यनुं वर्तमान पण ध्रुव छे, तेमां उत्पाद व्यय
नथी, परिणमन नथी, परिणमन न होवा छतां पण ते ‘द्रव्यनी पर्याय’ छे, तेने कोईनी अपेक्षा नथी.
आ सिवाय जे अपेक्षावाळी पर्याय ते परिणमन (उत्पाद–व्यय) सहित छे, सिद्ध पर्याय पण उत्पाद–
व्यय सहित छे, तेमां पण कर्मना अभावनी अपेक्षा आवे छे तेथी ते ‘अपेक्षित पर्याय’ छे, अने पहेलांं कहेवाई
ते द्रव्यनी पर्याय तो निरपेक्ष छे अने अनादि अनंत एकरूप छे. सिद्ध पर्याय अनादि अनंत नथी. द्रव्य तो
सदाय पूरी अवस्थाथी ज भरेलुं छे, अधूरी के उणी पर्याय कहेवाय तेमां परनी अपेक्षा आवे छे.
आ वात खूब गहन छे. अंतरथी खूब खूब मनन जोईए, अंतर अनुभवनो विषय छे.
(२) जेम आकाश, धर्मास्ति आदि द्रव्योमां नित्य शुद्ध अने परनी अपेक्षा रहित जेवुं शुद्ध द्रव्य एवी ज
शुद्ध निरपेक्ष पर्याय वर्ते छे, तेम जीव द्रव्यमां पण निरपेक्ष अने कायमी शुद्ध एवी पर्याय वर्ते ज छे तेने
परिणमन कहेवाय पण (उत्पाद व्ययरूप) परिणमन खरेखर नथी. जेवुं ध्रुव द्रव्य एवी ज ध्रुव पर्याय छे. जो
ध्रुव पर्यायमां परिणमन होय तो तेनो अनुभव प्रगट होवो जोईए.
वळी त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य ते सामान्य छे तो सामान्यनुं विशेष पण होवुं ज जोईए. त्रिकाळी द्रव्यनुं विशेष
ते द्रव्यनुं वर्तमान छे, द्रव्यनुं वर्तमान ए ज ध्रुव पर्याय ए सामान्य विशेष थईने आखुं द्रव्य छे.
द्रव्य द्रष्टिमां पर्याय गौण करवानी वात आवे छे ते पर्याय उत्पाद–व्ययवाळी, परनी अपेक्षावाळी
पर्यायनी वात छे. ध्रुव पर्याय तो द्रव्य साथे त्रिकाळ छे. द्रव्यनुं वर्तमान जुदुं होय नहीं, तेथी ध्रुव पर्याय गौण
करवानी वात नथी.
(३) पारिणामिक भाव द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे थईने पूरो छे. एटले पर्यायनुं परिणमन कहेवाय खरुं
पण ते ध्रुवरूप छे, प्रगटरूप नथी.
द्रव्यार्थिक नयनो विषय पारिणामिक एकलो छे. निरपेक्ष पर्याय न होय तो ते वस्तु शेनी? जेम
सामान्य छे तेम तेनुं ‘वर्तमान–वर्तमान’ ते विशेष छे. द्रव्यनुं वर्तमान ध्रुव छे.
पारिणामिक भाव अनित्य (पर्याय) थी पकडाय पण पारिणामिक पोते नित्य छे. पारिणामिकनो प्रगट
अनुभव न होय ते उपर लक्ष न थाय. समयसारनी ३२० मी गाथामां पारिणामिकने ‘अक्रिय’ कह्यो छे, एटले
बंध मोक्ष सक्रिय छे तेनाथी रहित अक्रिय छे.
पारिणामिक ते द्रव्यार्थिकनयनो विषय अने अपेक्षित पर्याय ते पर्यायार्थिकनयनो विषय ए बन्ने थईने
प्रमाण छे.
(४) वस्तु अने वस्तुना अनंत गुणो त्रिकाळ एकरूप, अने गुणना आधारे जे पर्याय छे ते पण
त्रिकाळ एकरूप छे. जेवा द्रव्य अने गुण ध्रुवरूपे छे तेवी ज ध्रुवरूप पर्याय न होय तो द्रव्य
स्वरूप
‘धर्म’ ए वस्तु बहु गुप्त रही छे, ते बाह्यसंशोधनथी मळवानी नथी. अपूर्व
अंतर–संशोधनथी ते प्राप्त थाय छे.
स्वरूपनो तो कोई काळे त्याग करवाने मूर्ख पण ईच्छे नहीं, अने ज्यां केवळ
स्वरूपस्थिति छे त्यां तो पछी बीजुं कंई रह्युं नहीं. –श्रीमद्राजचंद्र–