Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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क्रमबध्ध पयय
जगतमां छ द्रव्यो छे. ते दरेकमां अनंत गुणो पोत पोताना नित्य छे;
दरेक समये समये ते गुणोनी अवस्था बदले छे, जे जे अवस्था थाय छे ते
दरेक क्रमबद्ध ज आवे छे. पछी थवानी अवस्था पहेलांं थई जती नथी के
पहेलांं थवानी जे अवस्था ते पाछळ थाय एम क्रमबध्ध अवस्थामां फेर
पडतो नथी.
दा. त. माटीमांथी घडो थाय तेमां क्रमबद्ध अवस्थाओ ज आवे छे.
प्रथम ते माटीने पिंडरूप करवा (बराबर चीकाशरूप करवा) तेने धोकावती
छूंदे छे, पछी तेने चाक उपर चडावीने घडा आकारे बनावे छे; तेमां कुंभार
पहेलांं माटीने चाक उपर चडावे अने पछी तेने धोकावती छूंदे एम कदी
बनतुं नथी. तेम आत्मामां पण दरेक अवस्था क्रमबद्ध ज थाय छे, तेना
क्रममां भंग पाडवा कोई समर्थ नथी. तेनी केवळ अने मोक्ष पर्यायो पण
क्रमबद्ध ज प्रगटे छे, तेमां समयमात्रनो फेर पाडवा कोई समर्थ नथी.
हवे सहेजे नीचेनो प्रश्न उपस्थित थाय छे के:– जो वस्तुनी बधी
पर्यायो क्रमबद्ध ज आवे छे अने आत्माने केवळ तथा मोक्ष पण क्रमबद्ध ज
आवे छे–तेमां फेर पडवानो ज नथी तो पछी तेमां पुरुषार्थ क्यां रह्यो?
तेनो खुलासो नीचे प्रमाणे छे:–
वस्तुनी क्रमबद्ध अवस्थामां तो फेर पडवानो ज नथी. पण “वस्तुनी
पर्याय क्रमबद्ध ज थाय छे” एवी श्रद्धा करवामां ज अनंतो पुरुषार्थ आवी
जाय छे.
क्रमबद्ध पर्यायनी श्रद्धा थतां पोतानी पर्याय ऊघडवा माटे कोई पर
उपर लक्ष रहेशे नहीं, तेथी कोई पर उपर रागद्वेषनुं कारण नहीं रहे.
“मारी शुद्ध पर्याय क्यारे उघडशे” एवो आकुळतानो विकल्प पण रहेशे
नहीं, तेथी क्रमबद्ध पर्यायनी श्रद्धा तो जे नजीक मुक्तिगामी होय ते ज जीव
नक्की करी शके, तेथी क्रमबद्ध पर्याय नक्की करवामां अनंतो पुरुषार्थ आवे
छे. क्रमबद्ध पर्यायमां वीतरागता छे.
क्रमबद्ध पर्यायनो निश्चय थया पछी पर द्रव्यनी गमे तेवी अनुकूळ
के प्रतिकूळ अवस्था थाय तो पण तेमां रागद्वेष थाय नहीं. (अनुकूळ–
प्रतिकूळपणुं जगतनी द्रष्टिए छे, वस्तुमां अनुकूळ–प्रतिकूळपणुं नथी.)
क्रमबद्ध पर्यायनी श्रद्धा क्यारे थई कहेवाय? के परद्रव्यमां थती
अवस्था गमे तेवी थाय तेमां “आ आम केम थयुं? आम थयुं होत तो मने
ठीक” ए वगेरे विचारो–विकल्प–रागद्वेष थाय ज नहीं. एने (क्रमबद्ध
पर्याय नक्की करनारने) श्रद्धा छे के आ द्रव्यनी आ वखते आ प्रमाणे
अवस्था क्रमबद्ध थवानी हती, ते ज मुजब थाय छे, तो पछी तेमां राग के
द्वेष केम करे? मात्र जे वस्तुनी जे समये जे जातनी अवस्था थाय तेनुं ज्ञान
ज करे.
आ रीते क्रमबद्ध अवस्थानो निर्णय ते पोते ज वीतरागता छे, अने
ते निर्णय करवामां ज अनंतो पुरुषार्थ छे.