दरेक क्रमबद्ध ज आवे छे. पछी थवानी अवस्था पहेलांं थई जती नथी के
पहेलांं थवानी जे अवस्था ते पाछळ थाय एम क्रमबध्ध अवस्थामां फेर
पडतो नथी.
छूंदे छे, पछी तेने चाक उपर चडावीने घडा आकारे बनावे छे; तेमां कुंभार
पहेलांं माटीने चाक उपर चडावे अने पछी तेने धोकावती छूंदे एम कदी
बनतुं नथी. तेम आत्मामां पण दरेक अवस्था क्रमबद्ध ज थाय छे, तेना
क्रममां भंग पाडवा कोई समर्थ नथी. तेनी केवळ अने मोक्ष पर्यायो पण
क्रमबद्ध ज प्रगटे छे, तेमां समयमात्रनो फेर पाडवा कोई समर्थ नथी.
आवे छे–तेमां फेर पडवानो ज नथी तो पछी तेमां पुरुषार्थ क्यां रह्यो?
वस्तुनी क्रमबद्ध अवस्थामां तो फेर पडवानो ज नथी. पण “वस्तुनी
जाय छे.
“मारी शुद्ध पर्याय क्यारे उघडशे” एवो आकुळतानो विकल्प पण रहेशे
नहीं, तेथी क्रमबद्ध पर्यायनी श्रद्धा तो जे नजीक मुक्तिगामी होय ते ज जीव
नक्की करी शके, तेथी क्रमबद्ध पर्याय नक्की करवामां अनंतो पुरुषार्थ आवे
छे. क्रमबद्ध पर्यायमां वीतरागता छे.
प्रतिकूळपणुं जगतनी द्रष्टिए छे, वस्तुमां अनुकूळ–प्रतिकूळपणुं नथी.)
ठीक” ए वगेरे विचारो–विकल्प–रागद्वेष थाय ज नहीं. एने (क्रमबद्ध
पर्याय नक्की करनारने) श्रद्धा छे के आ द्रव्यनी आ वखते आ प्रमाणे
अवस्था क्रमबद्ध थवानी हती, ते ज मुजब थाय छे, तो पछी तेमां राग के
द्वेष केम करे? मात्र जे वस्तुनी जे समये जे जातनी अवस्था थाय तेनुं ज्ञान
ज करे.