Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: १६४ : पर्युषण अंक : भाद्रपद : २००० :
‘हुं चिदानंद असंयोगी आत्मा पूर्ण ज्ञानस्वरूप निर्मळ छुं, मारे अने परने कांई
पण संबंध नथी. एवुं भान थया पछी स्वरूपमां टकवारूप पुरुषार्थनी नबळाईमां
विषयकषायना पापभावथी बचवा माटे शुभाव आवे ते पण विकार छे. हुं ते
रहित ज्ञाता द्रष्टा छुं.’ ए द्रष्टि थया विना
परम पूज्य सद्गुरुदेवनुं वस्तुनी स्वतंत्रता बतावतुं अद्भुत व्याख्यान
कदी कोईने धर्म थयो नथी, थतो नथी अने थशे नहीं
समयसार निर्जरा अधिकार राजकोट ता. २१ २ – ४ सोमवार महा वदी १२

निर्जरा एटले आत्मस्वभावनुं भान थतां पराधीन भावनो नाश अने स्वाधीन भावनो विकास थवो
ते निर्जरा छे. स्वाधीन भावनो विकास अने पराधीन भावनो नाश कोना जोरे थाय छे तेने जाण्या विना
निर्जरा थाय नहीं.
विकारभाव–पराधीनभाव–क्षणिक छे; अविनाशी निर्मळ ध्रुव स्वभाव उपर द्रष्टि थाय तो ते क्षणिकनुं
माहात्म्य जाय. शरीरादिनी वासना तो खसी ज जवी जोईए, पण क्षणिक राग द्वेष जेटलो हुं नहीं एम भान
थतां ते प्रत्ये होंश खसी जाय, पण ते क्यारे बने? के क्षणिकनुं लक्ष गौण करीने अविनाशी कायम रहेनारो हुं छुं
एवुं भान करे त्यारे.
रागद्वेष विनानो, जाणनार स्थिर आत्मा ते हुं छुं ए जाण्या विना स्वतंत्रता खीले नहीं. “एक
आत्माने बीजानी जरूर नथी” एवो निर्णय थवो ते ज स्वतंत्रतानुं कारण छे. एक आत्माने परनी जरूर पडे
(परनी जरूर छे एम माने) ते परतंत्रता छे. शरीरादि सारुं होय तो ठीक एम एक तत्त्व बीजा तत्त्वनुं
आलंबन ईच्छे ते पराधीनता छे.
‘हुं निर्मळ ज्ञानज्योत रागद्वेष वगरनो छुं, मारुं सुख मारामां छे.’ एवी श्रद्धा ज स्वभावनी स्वतंत्रता
प्रगट करवानो उपाय छे. आ स्वरूपनी रुचिनो जे भाव छे, तेमां अनंतो पुरुषार्थ छे, विषय कषायनी रुचि
नहीं. ‘दीकरो स्त्री धन वगेरे बधा पर वस्तु ते मारुं स्वरूप नहीं. ज्ञाताद्रष्टा स्वभावमां ज आत्मधर्म अने
स्वतंत्रता छे. आत्माने परना आश्रयनी जरूर नथी.’ एवा निश्चय वगर धर्म अने स्वतंत्रता प्रगटे नहीं.
ज्ञान वगर आ (स्वतंत्रतानो निश्चय) थाय तेम नथी; कारण के बधानो पत्तो मेळवनार ज्ञान ज छे.
अरूपी भावनो पत्तो मेळवनार ज्ञान छे; परथी जुदापणानो विवेक करवानो पत्तो पण ज्ञानथी मेळवाय छे.
दरियामां आंखो बंध होवा छतां मोतीने कोण ओळखे छे? ते ज्ञानथी जणाय छे. ज्ञान एटले आत्मा; ते जाणे
छे के आ मोती छे अथवा आ शंखलुं छे, एम मोती अने शंखलां वच्चेनो भेद जाणनार ज्ञान छे.
चैतन्य आत्माथी लक्ष्मीआदि पर छे. परथी नीराळा आत्मानी स्वतंत्रतानो पत्तो साचा ज्ञान वगर
मळे नहि, अने सत्समागम वगर साचुं ज्ञान मळे नहीं अने सम्यग्दर्शन थाय नहीं. सम्यग्दर्शन वगर
स्वाधीनता प्रगटे नहीं. आ कहेवाय छे ते समकीतिनो निःशंकता नामनो प्रथम आचार छे. आनो विश्वास ते
श्रद्धा अने आ जाणवुं ते ज्ञान छे. आत्मानुं दर्शन–ज्ञान आत्मामां छे. आत्माना धर्मनो संबंध आत्मा साथे छे,
बहार साथे नथी.
देव–गुरु–शास्त्र पर छे. धर्मनो संबंध पर साथे नथी. धर्म पर साथे संबंध राखतो नथी. धर्म एटले परमां
पोतापणानी मान्यता ज्ञानमां न थवा देवी अने अखंडचैतन्यना लक्षे रागद्वेष मोळा पडी जाय तेज आत्मानो धर्म