Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २००० : पर्युषण अंक : १६५ :
छे. आत्मानो धर्म आत्मामां छे. देव–गुरु–शास्त्र तरफना शुभ भाव, अशुभ भाव (संसारना पापना परिणाम)
घटाडवा आवे खरा, छतां धर्मनी द्रष्टिमां ए आदरणीय नथी. धर्म तो मारो ज्ञाता स्वभाव छे–तेमां आत्मा टकी
शकतो नथी, त्यारे शुभमां जोडावुं पडे छे. शुभभाव धर्मनुं कारण नथी एम जीव ज्यां सुधी न समजे त्यां सुधी
धर्मनी–आत्मानी, स्वतंत्रतानी तेने खबर नथी. परनुं कांई करवानी वृत्ति ते विकार छे.
‘हुं चिदानंद असंयोगी आत्मा पूर्ण ज्ञानस्वरूप निर्मळ छुं, मारे अने परने कांई पण संबंध नथी.’ एवुं
भान थया पछी स्वरूपमां टकवारूप पुरुषार्थनी नबळाईमां विषयकषायना पापभावथी बचवा माटे शुभभाव
आवे ते पण विकार छे. हुं ते रहित ज्ञाता–द्रष्टा छुं ए द्रष्टि थया विना कदी कोईने धर्म थयो नथी, थतो नथी
अने थशे नहि.
हवे सम्यग्दर्शनना आठ अंग कहे छे. तेमां पहेलुं निःशंकता अंग कहे छे.
यश्चतुरोडपि पादान् छिनत्ति तान् कर्मबंधमोहकरान्।
स निश्शंकश्चेतयिता सम्यग्द्रष्टिर्ज्ञातव्यः ।। २२९।।
आ गाथा अपूर्व छे. स्वतंत्रतानो उपाय अनंतकाळे नहीं करेलो एवो अपूर्व छे.
आत्मा जाणनार–देखनार ज छे. आत्मा निश्चयथी (खरेखर) कर्म वडे बंधाय एम मानवुं ते भ्रम छे.
आवो भ्रम समकीतिने होतो नथी.
दरेक चीज जुदी छे. एक तत्त्व बीजा तत्त्वनुं कांई करवा समर्थ नथी. जो एक पदार्थ बीजानुं कांई पण करे
तो बे पदार्थो एक थई जाय. तेथी एक पदार्थ बीजानुं कांई पण करे एम मानवुं ते तद्न मिथ्यात्व छे.
सत् त्रणकाळमां फरे तेम नथी. जो एक जुदुं तत्त्व बीजा तत्त्वना आधारे होय तो ते तत्त्व ज न होई
शके. हवे जो पर साथे संबंध नथी तो एक क्षेत्रे रहेला जड कर्म आत्माने रागद्वेष करावता नथी, कारण के ते
जुदी चीज छे. आत्मा स्वतंत्र ज्ञानमूर्ति जुदी चीज छे. पर वस्तु आत्माने कांई रागद्वेष करावती नथी. हवे
स्वतंत्र आत्मानो ज्यां निर्णय थयो–त्यां हुं रागद्वेषरूपे नथी कारण के एकला तत्त्वमां विकार होय नहि–जो
एकलुं तत्त्व विकार (रागद्वेष) करे तो ते तेनो स्वभाव थई जाय माटे एकलामां विकार न होय.
आत्मामां पर पदार्थ नथी; जेने साचो निर्णय थयो के, ‘हुं जुदो छुं माटे मने बंध नथी.” तेने बंध नथी.
बंध त्यारे ज थाय के ज्यारे जीव पोताने बीजाथी बंधायेलो माने.
पहेलो सिद्धांत:– ‘एक तत्त्व बीजा तत्त्वने कांई करी शके नहि.’ आवुं ज वस्तुनुं स्वरूप छे.
बीजुं– ‘पर पदार्थ मने रागद्वेष करावे’ एवुं मान्युं छे ते ज अनादिनो भ्रम छे.
‘हुं एक जुदुं तत्त्व–कर्मो वडे बंधाएलो छुं.’ एवो जे भ्रम ते ज अनंत अवगुणनी जड छे. ‘परथी
बंधायेलो छुं’ एवो भ्रम ते ज मिथ्यात्व छे. हुं छूटो छुं एम न मानतां, ‘मारे परना आश्रय वगर न चाले’
एवो जे निश्चय ते ज अज्ञान अने ऊंधी बुद्धि छे. कोई कोईने मदद आपतुं नथी छतां अज्ञानथी जीव तेम मात्र
माने छे.
आत्मा जाणनार छे तेमां कर्मबंध नथी. बंधायो छुं एवो भ्रम ज्ञानीने नथी.
प्रश्न:– बंधायेलो नथी तो शुं मुक्त थई गयो छे?
उत्तर:– अनादिथी आत्मा तो मुक्त ज छे पण ‘मारामां स्वतंत्रता छे तेमां ठरूं तो स्वाधीन छुं’ एम
जेने भान नथी, तेणे पोताने पराधीन मान्यो छे. ‘हुं स्वाधीन छुं’ एवुं यथार्थ भान थतां हालतमां स्वाधीनता
उघडे छे. वस्तु तो स्वतंत्र छे ज, पराधीनतानी मान्यता सिवाय बीजुं कांई अनादिनुं जीवे कर्युं ज नथी. आ
वात कोई कबुल न करे तो पण त्रण काळमां फरे तेम नथी. आ सिवाय बीजुं