Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: १६६ : पर्युषण अंक : भाद्रपद : २००० :
मानी शके पण परनुं करी तो शकतो ज नथी. आ समजे त्यारे परनुं करतो अटके एम पण नथी, पहेलांं पण
परनुं परने कारणे थतुं हतुं–त्रणे काळे परनुं परने कारणे थाय छे–एम ज छे.
‘मने बंधन छे, हुं पराधी न छुं.’ एवा संदेहने लईने जीवने क्यांय सुख थतुं नथी. ते ओशियाळा
जीवननी चिंतामां (भ्रांतिना भ्रमना मुळियाना फालमां) विकार थया करतो तेनो सम्यग्दर्शन वडे प्रथम छेद
कर्यो के कर्म वडे त्रण काळमां जीव बंधातो नथी. एम ते जाणे छे.
आत्मा वस्तु छे. तेनो गुण तेनाथी जुदो होय नहीं. फक्त मान्युं छे के मारा गुण परमां छे, एटले माने
छे के कर्मनुं बंधन छे अने कहे छे के कर्मनुं बंधन न होय तो मोक्ष केम न होय? तेने एम पूछवामां आवे छे के–
तुं बंधायो एम तें मान्युं छे? के कर्मे तने बांध्यो छे? जे बंधायो छे ते पोताने कारणे बंधायो छे. कोई तत्त्व
बीजा तत्त्वने बांधी शके नहीं.
प्रश्न:– एकला आत्मानी वात करे तो जीव पागल न थई जाय?
उत्तर:– आत्मा एटले सत्य असत्यनो विवेक जाणनार. जेने ते विवेक नथी आवडतो ते पागल छे–
विवेक जेणे जाण्यो ते पागल थाय नहीं. एक स्वतंत्र तत्त्व आत्मा तेने परथी बंधायेलो मानवो तेमां
स्वतंत्रतानुं खून छे. एक तत्त्व ‘छे’ एम कहेवुं अने वळी कहेवुं के ‘परथी बंधायेलो’ छुं तो ते बन्ने विरोध छे
‘तुं छो’ तो तारा गुण तारामां छे, परमां गया नथी. परमाणुमां के शरीरमां तारा गुण नथी. तारा गुण
तारामां न होय तो तुं लावीश क्यांथी? भगवान! तारी महीमा ते सांभळी नथी, संसारनी वातो करी छे, मोटा
मोटा भार उपाड्यो पण बधुं जळोजथा छे.
पराधीनता ए ज दु:ख
आत्मा ज्ञान, शांति आदि अनंत गुणनो पिंड छे. आत्मामां जे रागद्वेष आदि भाव थाय छे ते
आत्मानो त्रिकाळी टकाउ स्वभाव नथी, पण क्षणिक विकारी भाव छे. आत्माना स्वभावने भूलीने परने
पोतापणे मानवुं एटले गुणने भूली जवा; गुणने भूली जवा एटले स्वतंत्रताने खोवी. स्वतंत्रताने खोवी
एटले दुःख भोगववानुं रह्युं. पोताना गुण जाणवामां न आवे एटले क्यांय पोताने मानशे तो खरो ने! एटले
शरीर, रागद्वेष विकाररूप ते हुं छुं एम परमां पोतानी हैयाति स्वीकारी, एटले तेणे एम मान्युं के हुं परनो
ओशियाळो छुं, मारामां माल नथी; शरीरादि, रागादिने छोडीश तो हुं नहि रहुं, जो मारामांथी विकार नीकळी
जाय तो मारामां कांई रहे नहि एम पोताने माल वगरनो माननार पोताना आत्मानो अनादर करे छे ने
पोताना गुणनुं खून करे छे. पोताना गुणनुं खून करनार ते परनो ओशियाळो कोई दी मटे नहि अने
पराधीनतानुं दुःख तेने कोई दी टळे नहि. आत्मा ज्ञान, दर्शन, स्वतंत्र सुख, आनंद, वीर्यनी मूर्ति छे, तेने जेम
छे तेम माने नहि अने परने पोतापणे माननारो रहे त्यां सुधी स्वतंत्र धर्म न थाय, स्वतंत्र धर्म न थाय एटले
परतंत्र विकार थाय एटले दुःख थाय.
आत्मा तद्न छूटो परथी निराळो छे. तेने परनो आश्रय जोईए एम बने नहीं.
(समयसार प्रवचन गा. ३३)
हुं––एक तत्त्व परथी बंधायेलो छुं एम मान्युं त्यां हुं स्वतंत्र तत्त्व नथी एम मान्युं तेज सर्व पापनुं
मूळ छे. कहेवाय छे के “पापमूल अभिमान” तेनो अर्थ:– हुं––एक आत्मा परनुं करी शकुं अने पर मने मदद करे
छे एम मान्युं तेने स्वतंत्र वस्तुनी खबर नथी एटले ते बधानो खीचडो करे छे तेनुं ज नाम अहंकार अने तेज
पापनुं मूळ छे. ‘परथी बंधायो छुं’ एवी मान्यता ते स्वतंत्र तत्त्वनुं खून करे छे. तेज सर्व पापनी जड छे अने
तेमांथी ज दुःखनु झाड फाले छे परथी कांई लाभ नुकसान नथी. परमां मोह, भासपणानी मान्यता ते ज
नुकसाननुं मूळीयुं छे.
पैसा मळवा ते लाभनुकसाननुं कारण नथी पण आ पर वस्तु होय तो मने ठीक एवी मान्यता एटले हुं
नमालो छुं एवी मान्यता ज दुःख अने मोह छे.
प्रश्न:– आ समजे के तरत ज बधुं छोडी देता हशे?
उत्तर:– अंतरथी ऊंधाई छूटी जाय बाकी समज्या वगर तो (आत्माना भान वगर) अनंत वार साधु
थाय–त्यागी थाय के पाटे बेसे तेथी कांई धर्म थाय