Atmadharma magazine - Ank 010-011
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २००० : पर्युषण अंक : १६७ :
नहि–ऊंचो बेसे तेमां धर्म नथी. ऊंचो तो क्यारे? के मारो आत्मा उर्ध्व स्वभावी छे तेमां परथी लाभ नुकसान
थाय एवी हीणी मान्यतानो नाश ते उर्ध्व तत्त्वनुं भान छे. ते साचा ज्ञान वगर थाय नहि. मान्यता फरी गई
तेज क्षणे विषय कषाय बधा टळी जाय एम बनतुं नथी. फक्त पूर्ण स्वतंत्रता थवानुं कारण प्रगट्युं.
पहेली मोंकाण एज हती के “परथी बंधायो छुं एटले छूटवा माटे पण परथी उपाय मांडया हता; पण
ज्यां मान्यता फरी के:– हुं मारी उंधी मान्यताथी बंधायो छुं त्यां पोते मान्यता फेरव्या विना रहे नहीं, एटले के
ऊंधी मान्यता फेरववी एज धर्म छे. बापु! आ वात बधे नहि मळे–वारंवार नहि मळे.
आत्मा परथी बंधायो एम जेणे मान्युं ते छूटवानो उपाय परमां कर्या करे छे. जो हुं–––एक वस्तु छुं तो
वस्तुना गुणो पण वस्तुमां भर्या ज छे. फक्त “परथी गुण थाय” एम मान्युं ते भ्रमणा ज पोताना गुण जोवा
देती नथी. गुण अने गुणी तो त्रिकाळ छे. मात्र अवस्थामां भूल एटले मलिनता ते संसार छे–अने अवस्थामां
भूल टळवी ते मुक्ति छे. पोते चिदानंद स्वरूप ध्रुव छे. क्रोडो रूपिया आप्याथी पण आ एक शब्द मळे तेम नथी.
मुक्त थवानो उपाय ‘मुक्त छुं’ एवी प्रतीति वगर मुक्त थवानुं वीर्य स्फूरे नहि अने मुक्ति थाय नहि.
“हुं परथी बंधायो छुं” एवा मिथ्यात्व, अविरत, प्रमाद अने कषाय भावने समकीति छेदी नांखे छे.
पोताने ‘बंधायेलो’ मान्यो छे तेज मान्यता स्वतंत्र थवानी रूची थवा देती नथी.
सादा अने सहेलां सूत्रो आवे छे. समजवा मांगे तो आठ वर्षनुं बाळक पण समजी जाय नहितर ८०
वर्षनो पंडित (थोथां भणेलो) पण न समजे.
सारुं करवुं छे कोनुं? जे होय तेनुं के न होय तेनुं? जे होय ते परथी बंधायेलो न होय समकीति भ्रमने
छेदी नाखे छे. हुं परथी बंधायो नथी. एक तत्त्व परथी पराधीन थयुं नथी. “निश्चयथी कर्मथी बंधायो छुं” एवी
ऊंधी मान्यताना चार पायारूप मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद अने कषायने सम्यग्द्रष्टि छेदी नाखे छे.
– : आत्मधर्मनी प्रभावना करो. : –
मिथ्यात्व=परथी बंधायेलो छुं एवो भ्रम. ए भ्रम टळ्‌या पछी जे अव्रत, कषाय, प्रमाद सम्यग्द्रष्टिने
होय तेमां तेनी बुद्धि नीचे प्रमाणे होय छे; अव्रत एटले आसकित छे पण ते मारुं स्वरूप नथी. नबळाईनी
भूमिका प्रमाणे राग–द्वेष थाय छतां ते मारां छे एवी बुद्धि तेने नथी.
कषाय–एटले क्रोधआदि थाय छतां ते मारुं स्वरूप नथी अने तेथी तेनी रुचि नथी.
प्रमाद–एटले पुरुषार्थनी नबळाई ते पण मारुं स्वरूप नथी. आ राग मारा पुरुषार्थनी नबळाईने कारणे
वीर्यनी हीनतामां अवस्थामां थाय छे. वस्तुना स्वभावमां नथी–एवा निर्णयथी ते रागादिने द्रष्टिमांथी काढी
नाखे छे. आ धर्मीनुं पहेलुं चिह्न–पहेलुं लक्षण. आ न होय तो मोटा चकरडा (मींडा).
आत्माए अनंतकाळथी कर्युं छे शुं?
‘पर मारां, हुं परनो’ ए मान्यता ज अने ते मान्यताने कारणे रागद्वेष भाव ज अनादिथी कर्यां छे. ते
सिवाय परनुं कोई आत्माए कांई कर्युं नथी, ‘करी शकतो ज नथी.’
एकली ऊंधाई करी छे, ज्यां गुण होय त्यां अवगुण थाय. आत्मामां पर नथी तेथी पर आत्मानुं करतो
नथी के परनुं आत्मा करतो नथी. एक तत्त्व बीजा तत्त्वमां संक्रमे (तेरूप परिणमे) एम त्रण काळमां बनतुं
नथी. अत्यार सुधी उंधी रुचि–अने रागद्वेष कर्या छे एटले ‘धर्म माटे पहेलांं उंधी रुचिने फेरववी पडशे.’
आत्मा अनादि अनंत शाश्वत तत्त्व छे–तेनी रुचि थई त्यां मने बंध थशे एवी शंका नथी. वस्तु जुदी
छे बंधन में मान्युं हतुं–पण वस्तुमां बंधन नथी–मात्र मान्यता हती. परनुं करवाने–एक परमाणु पण फेरववाने
आत्मा समर्थ नथी. ‘में परने आप्युं’ तेम अभिमान जीव करे पण एक तत्त्व बीजा तत्त्वनुं कांई करी शके एम
त्रण काळमां बने नहि.
आ पोताना घरनी चीज छे, घरनी चीज मोंघी नथी; मोंघुं मान्युं छे ते मान्यता ज समजवा