: १९८ : आत्मधर्म : १२
पण ५ोताना भला माटे–एटले के अशुभराग टाळवा माटे पुण्य भाव करे छे; राग हंमेशां परलक्षे थाय छे. तेथी
परने लाभ थवानो होय तो परना पोताना कारणे थाय छे.
ए हुं समज्यो. ए रीते आ विषय पूरो थाय छे.
बीजो मित्र–तमे समजवानी जिज्ञासा धरावो छो ते अनुमोदनने पात्र छे. आ मान्यताने लक्षमां राखी
तेने खूब घुंटवी–ते माटे स्वाध्याय वगेरे करवां, शास्त्रोना अर्थोनी पद्धति बराबर समजवी, तेथी तेनी मान्यता
अने ज्ञान वधारे निर्मळ थशे जो पोते सत् केवी रीते छे ते जाणशे तो ते असत्ने टाळशे.
(विशेष हवे पछी)
परम पूज्य सद्गुरुदेव पासे
रात्रिचर्चा वखते थयेल प्रश्नोत्तर विज्यादसमी सं. १९९९ ता. ८–१०–४३. राजकोट सदर
प्रश्न:–संसारीओए सुख माटे प्रथम शुं करवुं?
उत्तर:–आत्माने ओळखवो ते ज प्रथम करवुं.
प्रश्न:–आत्माने आळख्या पछी शुं करवुं?
उत्तर:–आत्मानी ओळखाण थया पछी शुं करवुं
ते प्रश्न ज नथी रहेतो; ज्ञान थतां ज्ञानथी ज ज्ञान
प्रगटे छे.
प्रश्न:–आत्मानी ओळखाण करवानुं साधन
शुं?
उत्तर:–सत्समागम.
प्रश्न:–सत्समागम केवी रीते थाय?
उत्तर:–निवृत्ति लईने थाय; बाह्य क्रियाथी न
थाय.
प्रश्न:–कोई कहे के ‘मारे आत्मज्ञान प्राप्त करवुं
छे, हुं समजुं छुं के आ ज उत्तम छे;’ एम कहेनारनो
छोकरो मांदो पडे त्यारे ते जाणे छे के ‘आ छोकरो मारो
नथी’–त्यारे तेणे शुं करवुं?
उत्तर:–तेने पहेलांं ओळखाण थवी जोईए के
आ छोकरानुं माराथी कांई पण थई शकवानुं नथी;
छतां पोते हजी वीतराग नथी थयो त्यांसुधी
बचाववानो भाव आवे, शुभभावनो निषेध नथी
पण शुभभावथी धर्म न थाय एम मानवुं.
प्रश्न:–कोई जीव पुण्य वगर प्रथमथी ज धर्म न
करी शके?
उत्तर:–धर्म करतां वच्चे पुण्य तो आवे ज.
पण पुण्य करतां करतां धर्म थाय एम त्रणकाळमां
बनतुं नथी.
प्रश्न:–समज्या पछी शुं करवानुं रह्युं?
उत्तर:–समज्या पछी ज घणुं करवानुं होय छे–
एटले के समज्या पछी स्वस्वरूपमां स्थिरता करवानी
होय छे.
धर्म माटे आत्मा परथी जुदो छे तथा परनुं ते
कांईपण करी शकतो नथी एवी श्रद्धा ते प्रथम कर्तव्य
छे. चक्रवर्ती राज भोगवतो होय पण अंदरमां परथी
जुदापणानुं भान वर्ततुं होय. साची ओळखाण जुदी
वस्तु छे अने शुभ क्रिया जुदी वस्तु छे.
प्रश्न:–ओळखाण करवा माटे कांईक शुभभाव
तो करवा जोईएने?
उत्तर:–ओळखाण अंदरना शुद्धभावथी थाय
छे; शुभभाव करतां करतां धर्म थाय एम बनतुं नथी.
प्रश्न:–एक माणस पाप न करे अने पुण्य पण
न करे तो शुं थाय?
उत्तर:–जो पुण्य के पाप कांई न करे तो तेने
आत्मानी संपूर्ण ओळखाण थई कहेवाय अने ते
वीतराग कहेवाय. धर्म तो आत्मानुं स्वरूप छे ते
बहारमां नथी.
प्रश्न:–एम बधा श्रावक तो कहेवाईए ने?
उत्तर:–नामथी श्रावक कही शकाय, खरेखर तो
सर्वज्ञ भगवानना अनुयायी ते ज साचा श्रावक छे.
प्रश्न:–अमारा बाळकोने धर्म पमाडवो ते
अमारी फरज छे ने?
उत्तर:–कोई कोईने धर्म पमाडी शकतो ज नथी.
प्रश्न:–बधा संसारीओए धर्म समजवा शुं
करवुं?
उत्तर:–बधानी वात मूकी देवी, पोतानी एकनी
वात करवी.
प्रश्न:–मारे धर्म समजवा शुं करवुं?
उत्तर:–शास्त्रनो अभ्यास अने सत्समागम करवो.
सवारमां