Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २००० : १९९ :
हमेश धर्मशास्त्रनो एक पाठ वांची तेनो अर्थ समजवो. स्तुति वगेरे करीने तेनो बराबर अर्थ समजवो जोईए.
समज्या वगर जिंदगी आखी बोल्या करे अने वांच्या करे तोपण कांई लाभ थाय नहीं.
प्रश्न:–पहेलांं कयुं पुस्तक वांचवुं?
उत्तर:–जैन सिद्धांत प्रवेशिका, मोक्षमार्ग प्रकाशक, तत्त्वज्ञान, आत्मसिद्धि शास्त्र वगेरे–समजण पूर्वक
वांचवा जोईए.
प्रश्न:–शुभभाव करे ते अज्ञानता छे?
उत्तर:–शुभभावने धर्म मानीने के लाभकारक मानीने करे तो अज्ञानता छे, अशुभ टाळवाना ज्ञानथी
आत्मानी ओळखाण सहित शुभभाव करे ते योग्य छे, पण ओळखाण वगरना शुभभाव निश्चये पापनी ज
जातना छे; आत्माना गुण माटे तो शुभभाव पण सारो नथी. पुण्य–पाप बन्ने विकार छे, धर्म तो अविकारी
स्वरूप छे. अशुभथी बचवा पुण्य करवानी ना नथी पण आत्मानी ओळखाण तो धर्मथी ज थाय छे.
प्रश्न–मोक्ष न जई शकाय अने संसार न जोईतो होय तो वचलो रस्तो छे के नहीं?
उत्तर–बीजो कोई मार्ग नथी. कांतो संसार अने कांतोल मोक्ष.
प्रश्न–कोई पुण्य ज करे अने पाप न ज करे तो पुण्य सारां छे ने?
उत्तर–भान वगर एकलां पुण्य थाय नहीं कदी विशेषपणे शुभभाव करे तो एकाद भव स्वर्गादिनो करी पछीना
भवमां आत्माना भावनगर (शुभ भाव ते विकार होवाथी–अने विकार कायम एकरूप नहीं टकतो होवाथी ते
शुभभाव बदलीने) अशुभभाव करी अनंत संसार वधारशे. आत्माना भान सहित जे पुण्य भाव करे छे ते पुण्य
भावने पोताना मानतो नथी, तेथी ते पुण्य भाव छोडीने शुद्ध भावमां स्थिर थशे. कोई पण–ज्ञानी के अज्ञानी–एकला
पुण्यमां टकी शके नहीं. नीचली दशामां पुण्य बंध साथे पापबंध पण थाय छे. पुण्य बंध एकलो होई शके नहीं.
धर्मने माटे आ बधी वात प्रथम एकडो छे. पुण्यना मार्गो अनेक छे, धर्मनो मार्ग त्रणेकाळ एक ज छे.
समकिती जीवोने पूर्ण स्वरूपनुं भान छे, पण चारित्रमां पूर्णता न होय तेने पर भावनुं (शुभाशुभ भावनुं)
धणीपणुं छूटी गयुं छे, छतां शुभभाव आवे खरा, पण अंदरमां तेनो नकार होय के ‘आ मारुं स्वरूप नथी’
प्रश्नो:–अशुभ कर्मो टाळवा तीर्थंकर भगववाने पण शुभभाव करवा पडे ने?
उत्तर:–आ प्रश्न ज योग्य नथी; केमके तीर्थंकर तो वीतराग छे. वीतरागने शुभाशुभ भाव होई शके ज नहीं.
प्रश्न:–समकितीने स्वरूपनुं भान होवा छतां लडाई केम करे? तथा राग केम आवे?
उत्तर:–पूर्ण वीतराग न थाय त्यां सुधी समकितीने पण राग आवे खरो, पण ते रागने पोतानो मानतो
नथी, अर्थात् तेनो कर्ता थतो नथी. तोपण जेटलो राग छे तेटली पुरुषार्थनी नबळाई छे.
प्रश्न–पूजा धर्म माटे आवश्यक खरी के नहीं?
उत्तर–अशुभभाव छोडवा पूरती शुभभावमां निमित्त छे, पण तेनाथी धर्म नथी, केमके पूजामां भगवान
उपरनो राग छे अने जे राग छे ते धर्म नथी.
प्रश्न:–केवळी भगवानने पूर्ण ज्ञान प्रगट्युं होवा छतां हजी संसारमां केम अटक्या छे?
उत्तर:–हजी जोगनुं कंपन छे ते पुरती अपूर्णता छे.
पू. गुरुदेवना उद्गारो;–
आत्मानी दरकार ज्यां सुधी न थाय त्यां सुधी गोटा ज ऊठे. मारुं शुं? मारो आत्मा ते शुं आम
रझळावानो ज? बीजुं कांई नहि? एम अंतरथी समजवानी जिज्ञासा न जागे त्यांसुधी तेने साचुं भान थाय नहीं.
प्रश्न– आत्मभान थया पछी गुरुनी जरूर रहे?
उत्तर–छठ्ठा गुणस्थान सुधी होय.
[होय अने जरूर रहे एमां फेर छे] अहा! लोकोने धर्मनुं स्वरूप
समजवुं कठण थई पड्युं छे.
सं. १९५२ मां श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के–“हाल जैनमां घणो वखत थयां अवावरू कूवानी माफक
आवरण आवी गयुं छे; कोई ज्ञानी पुरुष छे नहीं. केटलोक वखत थयां ज्ञानी थया नथी; केमके नहीं तो तेमां
आटला बधा कदाग्रह थई जात नहीं.”
चालु दिवसना व्याख्यानना साररूपे पूज्य सद्गुरुदेव:–
कर्म अने आत्मानुं एक क्षेत्रे रहेवुं ते अवगाह क्षेत्रसंबंध छे. आत्माना एकेक प्रदेश साथे कर्मना
रजकणो रहेलां छे, पण आत्मामां गरी गया नथी. आका–