: २०० : आत्मधर्म : १२
शनी जग्यानी अपेक्षाए आत्मामां
कर्म गरी गया एम कहेवाय.
ज्ञाननी क्रियाने निषेधवामां
आवी नथी. शुभराग के
अशुभरागनी क्रियाने तथा क्रोधादिने
निषेधवामां आव्यां छे, कर्मना
संबंधने निषेधवामां आव्यो छे.
प्रश्न:–ज्यां कर्म जाय त्यां
आत्माने साथे लई जाय?
उत्तर:–ज्यारे एकनी एवी
अवस्था होय त्यारे बीजानी पण
तेवी ज अवस्था निमित्त–नैमित्तिक
संबंधने लईने होय, छतां बन्ने
पोतपोताना स्वतंत्र कारणे साथे
जाय छे.
पोते ऊंधो पडी विकारी भाव
करे त्यारे कर्म निमित्त कहेवाय;
परमार्थे कर्म आत्माने कांई करी
शकता नथी.
प्रश्न:–वस्तु स्वरूप समज्या
पछी पण कर्मनुं फळ तो भोगववुं
पडे ने?
उत्तर:–कर्मनुं फळ तो बाह्य संयोग
मळे ते पूरतुं छे; पण जीव
विकारीभाव टाळवा मागे तो
अंतरना शुद्धभावथी टाळी शकाय छे.
पूज्य गुरुदेवना उद्गारो
अहो! आत्मानुं स्वरूप
त्रिकाळ पवित्र छे. अनादिथी कदी
मनुष्यपणुं न पाम्या होय तेवा
जीवो पण अनंत छे, छतां तेओनो
आत्मा पण शक्तिमां त्रिकाळ
पवित्र मूर्ति छे.
ऊंधी मान्यता ए संसार
अने सवळी मान्यता ए मोक्ष.
संसार मोक्ष बन्ने पर्यायमां छे.
स्वभाव तो त्रिकाळ निर्मळ छे.
निर्मळ छे ते त्रिकाळ निर्मळ ज छे.
पुण्य धर्मनो नाशक
(रोकनार) छे, अने धर्म पुण्यनो
नाशक छे.
पर उपर लक्ष छोडी
स्वउपर लक्ष करे ते साची मान्यता
छे.
आ काळमां जैनधर्मनुं
वहाण खराबे चडयुं छे, तेने
बचाववा सारा नाविक [सद्गुरु,
सत्समागम] नी जरूर छे.
पापने पाप तो सर्वे कहे छे, पण
ज्ञानीओ पुण्यने पण पाप कहे छे.
कारणके पुण्य अने पाप बन्ने बंधन
भाव छे. स्वभावने रोकनार छे.
–: पर्युषण अंकनो सुधारो :–
पानुं कोलम लीटी अशुद्ध शुद्ध
१६२ ३ २४ क्षेत्रे भेगा पण भावे.
भेगा नथी क्षेत्रे भेगा पण भावे भेगा
नथी, १६२ ३ १ अवस्थामां ज अवस्थामां छे.
१६६ ३ २७ भासपणानी मान्यता मारापणानी मान्यता
१७० २ १५ बंध बन्यो अंध बन्यो
१७३ ३ १० राग छे, पण राग आवे छे, पण
१८३ १ १२ स्वर्गादि गतिमांय. स्थानक द्रव्यस्वभाव.
१८३ १ ३७ चीज न होय तो बीजी चीज न होय तो
१८५ ३ १९ ते उपर लक्ष न थाय. ते उपर लक्ष थाय.
सु
वर्णपुरी एक तीर्थधाम तो छे
ज, परंतु पर्युषणना दिवसोमां तो
ए एक साक्षात् धर्मक्षेत्र बनी गयुं
हतुं. पर्युषणना ए दिवसो
सुवर्णपुरीमां पांचमो नहि पण
चोथो काळ छे एवो ख्याल करावता
हता.
सुवर्णपुरीमां शुं नथी? बधुं
ज छे. एक तरफ भव्य जिनालय
जेमां मूळ नायक तरीके श्री
सीमंधर भगवाननी अत्यंत
भाववाहिनी प्रतिमाजी बिराजे छे;
जिनालयना पाछळना भागमां
अद्भुत समवसरण (धर्मसभा)
छे. जेमां कुंदकुंद आचार्यदेव
सीमंधर भगवाननो उपदेश
झीली रह्या छे. ए पवित्र द्रश्य
द्रश्यमान थाय छे; अने बीजी तरफ
जन्म–मरणनो भयंकर रोग टाळवा
माटे महामंगल–मंदिर श्री जैन
स्वाध्याय मंदिर जेमां वीतरागनी
साक्षात् वाणीसमुं परमागम श्री
समयसारजी–तेनी विधिपूर्वक
प्रतिष्ठा करवामां आवी छे अने ए
रीते सत्देव–गुरु–शास्त्रनो अपूर्व
सुमेळ वर्ते छे. वळी अहींनी
विशिष्ठता तो ए छे के–अहीं
साक्षात् चैतन्य मूर्तिसमा श्री
कहान प्रभु बिराजी रह्या छे.... अहा! कहान प्रभु! तेओश्री
वीतराग प्रभुनी छत्रछाया नीचे
व्याख्यान पीठिका पर बिराजीने
एकधारा प्रवाही सत्धर्म उपदेश
वडे भरत क्षेत्रने पडेली साक्षात्
तीर्थंकर भगवाननी खोट पूरी पाडी
रह्या छे, अने ए रीते धर्मक्षेत्र
सुवर्णपुरीमां धर्मकाळ वर्ती रह्यो छे.
नोट:– पानां १७२–७३ उपर छपायेल छे ते पूज्य सद्गुरुदेवनुं ता. १७–६–४४नुं नियमसार उपरनुं
व्याख्यान छे.
१८५ मे पाने छपायेल लखाण पूज्य सद्गुरुदेव पासे थयेली जुदे जुदे वखते चर्चाओमांथी लीधेलुं छे.
ते लखाणमां ज्यां “ [१] [२] वगेरे नंबर लख्या छे ते” चर्चा–[१] चर्चा [२] एम जुदी जुदी चर्चानां
नंबर समजवा.