: आसो : २००० : २०१ :
सुवर्णपुरीमां पर्वाधिराज पर्युषण पर्वनो
मांगलिक महोत्सव
पर्युषणना दिवासोमां आ धर्मक्षेत्रमां धर्मनो लाभ लेवा माटे सेंकडो धर्मप्रमीओ आव्यां हतां, अने ए
दिवसोमां तो खरेखर सुवर्णपुरीमां धर्मनो उत्सव ज उजवायो हतो. मुमुक्षुओनो धर्मप्रेम अजब हतो. धोधमार
वरसता वरसाद वच्चे भींजाता पण अनेक बंधु–भगिनीओ भरतक्षेत्रना ए महत्पुरुषना मुखेथी वहेता
धर्मधोधना प्रवाहने झीलवा माटे हर्षभेर आवता हता–अने दिव्यमूर्ति श्री कहानप्रभु अत्यंत सुमधुर वाणी
द्वारा तद्न स्पष्टपणे आत्मानुं स्वरूप, धर्मनी दुर्लभता ईत्यादि अनेक बाबतो समजावता हता.... जेनो
अल्पसार नीचे आपवामां आवे छे.
१–त्रिकाळ स्पष्ट निर्मळानंद चैतन्यज्योत एकरूप वस्तु तुं छो, तेमां बंध–मोक्षना भेद नथी, एम
पंचमआराना अज्ञानी शिष्यने आचार्यदेवे कह्युं छे.
२–आत्मवस्तु स्वरूपना माहात्मय विना अने तेने जाण्या विना अनंतकाळमां बधुं करी चूक्यो छे; दान,
दया, तप, व्रत, हिंसा, चोरी वगेरे बधुं अनंतवार करी चूक्यो छे, पण ते बधाथी पेले पार आत्मानो स्वभाव
शुं छे ते अनंतकाळमां कदी समज्यो नथी. साचुं स्वरूप समजे तो रुचि थाय. रुचि थाय तो ठरे अने ठरे तो
संसार न होय.
३–‘प्रभु! तुं छो, त्रिकाळ छो, अनंतकाळमां अनंत शरीरो धारण कर्यां’ एम कहेतां तेनी हा पाडी तेमां
‘अनंता शरीर धारण कर्यां’ ते अनंतनो ख्याल एक सेकन्डमां आव्यो छे; ‘जो अनंत भव न कर्या होय तो
अत्यारे मुक्ति होय तेथी अनंता भव थया’ एम नक्की करनारूं ज्ञान अनंतने जाणनारूं छे, अने जे ज्ञाने
अनंतने जाण्युं छे तेमां वीर्य अनंतु छे, स्थिरता अनंती छे, श्रद्धा अनंती छे; बधा गुणोनी अनंतता एक साथे
ज छे.
जे ज्ञान एक सेकन्डमां अनंतने जाणे छे ते एक समयमां पण अनंतने जाणे छे; केमके एक सेकन्डमां
असंख्याता समय छे अने एक सेकन्डमां ज्ञाने अनंतने जाण्युं छे ते अनंतना असंख्य भाग पाडो तो अनंत आवे,
माटे ज्ञान एक समयमां–वर्तमानमां अनंतने जाणे छे. प्रभु! तारी प्रभुता तो जो! आ तारी प्रभुता गवाय छे.
४–प्रभु! तुं आत्मा! अने तने कर्मनो बंध कहेवो ते शरम लागे छे. तुं एक अने तने कर्मनो बंध कहेवो
ते कलंक छे.–कलंक छे. प्रभु! तुं एक स्वतंत्र वस्तु! तने राग–द्वेष के कर्मनो संग कहेवो ते व्याजबी लागतुं नथी,
बंधन कहेवुं पडे ते खेद छे.
अमने आ बंधनी वात कहेता पण शरम आवे छे तो तने सांभळतां एम थई जवुं जोईए के–नहीं!
मने कर्मनो संग नथी छोड प्रभु? तारा स्वरूपमां कर्म नथी. एक तत्त्वने परनो संग कहेवो ते स्वतंत्रतानी लूंट
पडे छे, पराधीनता आवे छे. प्रभु! तारा आत्माने कर्मनो संग त्रणकाळमां नथी.
५–सम्यग्दर्शनमां नथी भरोसो राग द्वेषनो, नथी भरोसो निर्मळ पर्यायनो के नथी भरोसो सम्यग्दर्शननो
पोतानो, पण एक क्षणमां परिपूर्ण अनंत गुणनो पिंड अखंड वस्तु ते ज सम्यग्दर्शननो विषय छे.
६–अन्य पांच द्रव्यो [धर्मास्ति, अधर्मास्ति, आकाश, काळ अने परमाणु] ने दुःख नहीं अने तने दुःख
कहेवुं–बंधन कहेवुं ते शरम छे–खेद छे. तने तारा शाश्वत टंकोत्कीर्ण स्वरूपनी स्वाधीनतानुं भान न मळे अने
परनो आश्रय मान ते तने शोभतुं नथी. माटे हवे तुं तारा एकलापणामां आवी जा अने बेकलापणुं छोडी दे!
तुं चैतन्य राजा अने तने परनो ताबेदार कहेवो ते वात बंधबेसती नथी.
७–स्वरूपना भान सहित परिग्रहनी मर्यादा करनारने द्रष्टिमां तो अभाव छे ज. अस्थिरता होवाने
कारणे मर्यादा करे छे. द्रष्टितो वीतरागता उपर ज छे–अनंत गुण उपरनी रुचि छे. परपदार्थनी रुचिवाळाने
अनंत