Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २००० : २०३ :
मासिकना अंक १ थी १२
सुधीमां आवेला लेखोनी
कक्कावारी
विषय अंक नं. पानुं विषय अंक नं. पानुं
अरिहंतनुं स्वरूप आत्मामां जे एक समय पुरती विकारी
अरिहंत प्रभुने प्रथम नमस्कार करवानुं अवस्था ते संसार ने अविकारी
कारण अवस्था ते मोक्ष
अंग्रेजी परमात्म प्रकाशमांथी नोंध [आत्मा] ऊंधाईमां पण स्वतंत्र छे
अनेकांत धर्म अने समजण करवामां पण स्व–
अहिंसानुं स्वरूप (व्याख्यान नोंध) तंत्र छे ११६
अल्प बुद्धि माटे श्री समयसार छे ऊंधी मान्यता ए ज संसार ११६
अनेकान्त द्रष्टि ९२ करोति क्रिया भाग १–२ १४–१५
अध्यात्ममूर्ति श्री सद्गुरु देवने [काव्य]१०१ करोति क्रियानी व्याख्या ९५
अज्ञानी जीवनुं आडापणुं अने पुद्गलनी कर्मनो खोटो वांक काढी ऊंधा पुरुषार्थमां
सरलता ११० न रोकाता, पोतानी स्वतंत्रतानुं
अनादिथी धर्म केम न समजयो? ११४ भान करी लेवुं एज मुक्तिनो उपाय छे १२०
अज्ञानी परथी धर्म माने छे ११४ कर्म द्रव्य. १०–११ १८२
अविरत सम्यग्द्रष्टि पण ज्ञानी छे ७ १२० क्रमबद्ध पर्याय १०–११ १६३
अंतरथी सत्ना हकार वगर धर्म कारण परमात्मा ने कार्य परमात्मा १४८
समजाशे नहीं १२३ काळ द्रव्य. १०–११ १८४
अंतरात्मा प्रत्ये १२७ कुदेव, कुगुरु, कुधर्मनो त्याग करो ११४
अरिहंत देवना स्वरूपनुं वर्णन खुशखबर
(नियमसार) १४९ गुरुदेवना उपकार [काव्य] १००
अजैन कोण? १५३ गुरुदेवना व्याख्यानमांथी तारवेलुं १०३
एकवार हा तो पाड! १०–११ १६१ ग्रंथ प्रकाशन [यादी] १४४
अंध बनी अज्ञानथी कर्यो अतिशय जड अने चेतन १२१
क्रोध, ते सवि मिच्छामि दुककडं १०–११ १६७ जगतना अहोभाग्य छे के
अधर्म द्रव्य १०–११ १८४ वीतरागनी वाणी रही गई! १२ २०६
अनेकान्त शुं बतावे छे? १०–११ १८६ जय समयसार १०–११ १८८
अठ्ठाईओ १२ २०० जीव स्तवन
आकाश द्रव्य १२ १८४ जेने पुण्यनी रुचि छे, तेने जडनी
आजीवन ब्रद्मचर्यव्रत १२ १९५ रुचि छे १५
आजीवन ब्रद्मचर्य व्रत (प्रतिज्ञा) जे भावे संसारना सुख मळे ते भावनी
आजीवन ब्रद्मचर्य व्रत (प्रतिज्ञा) ८५ रुचिपण खरा सुखना
आत्मधर्मनी प्रभावना करो १०–११ १६७ ईच्छनारने होय नहीं १४
आत्मस्वरूपनुं अजाणपणुं ए ज जेम जेम मति अल्पता अने मोह
महा पाप छे १२ १९६ उघोत, तेम तेम भव शंकता, अपात्र
आत्मानो धर्म आत्माना आधारे छे ११२ अंतर ज्योत १०–११ १७९
आत्मामां कर्मनी सत्ता बीलकुल नथी १२५ जैन धर्म [श्री रामजी भाईनुं व्याख्यान]
आत्मानी अनादिनी सात भूलो जैन धर्म (श्री रामजी भाईनुं व्याख्यान)
आचार्य, उपाध्याय अने साधुनुं स्वरूप जैन शास्त्रोनी कथा पद्धति
आत्मानुं हित एक मोक्ष ज छे १६ जैन दर्शननी अनादिता
आमंत्रण ४ जैन शासन ९४
आत्मानी जेने खबर नथी तेने जैन शासन १२६
रागनी रुचि छे जैन कोण? १५२