Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: २०४ : आत्मधर्म : १२
विषय अंक नं. पानुं विषय अंक नं. पानुं
जैन धर्म विश्व धर्म छे १३ नीचली दशाए प्रवृत्तिमां शुभ भावने
जैन शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति १५१ छोडवानुं फळ.
जैनो कर्मवादी नथी नीचली दशावाळाने स्वरूप उपदेश योग्य
तप १३६ नीचली दशावाळाने स्वरूप भासे के केम?
तीर्थंकर प्रकृति उपादेय नथी पंच परमेष्टीनुं स्वरूप
त्याग एटले शुं? १३२ पडिमा ग्रहण १२ १९४
त्रासनुं साम्राज्य (संवाद) परम पूज्य सद्गुरुदेवनी अमृतवाणी १७६
त्रासनुं साम्राज्य (संवाद) १२२ पर्युषण अंकनो सुधारो १२ २००
दाननी विगत १३ पराधीनता स्वप्नेय सुख नहीं
दान प्रभावना विगेरेनी विगत १३४ पराधीनता एक दुःख १०–११ १६६
दिव्य ध्वनिनुं स्वरूप ८९ परिपूर्ण आत्म स्वभावनी श्रद्धा
दुःख एटले शुं? १५४ वगर परिपूर्णनो पुरुषार्थ
देववाणी १२ १९० होई शके नहीं १२
द्रष्टिनो विषय १०–११ १६२ परिभ्रमणनुं कारण १८१
द्रष्टि भेद १०–११ १७१ परिषह १८४
धर्म १४५ पाप टाळवानो साचो उपाय शुं? १५०
धर्म द्रव्य. १०–११ १८३ पापनो नाश कोण करी शके? १५१
धर्म साधन. १६ पुण्यने आदरवा योग्य अने पापने
धर्म क्यां छे? धर्मनुं स्वरूप ११२ त्यागवा योग्य कोण जाणे छे?
धर्मनुं स्वरूप समजवामां महा पुरुषार्थनी पुण्यनुं स्वरूप १५०
जरूर छे. ९७ पू. सद्गुरुदेवना हृदयोद्गार ४
धर्मनी अपूर्वता. ११७ पू. सद्गुरुदेवना व्याख्यानमांथी
धर्म माटे पहेलांं ऊंधी रुचि फेरववी तारवेला वचनामृतो
पडशे. १०–११ १६७ पू. सद्गुरुदेवे लाखाणी भुवनमां
धर्मनो उपाय, स्वभाव समज्या विना आपेलो उपदेश ८३
थाय नहीं. ११६ पू. सद्गुरुदेवनी जयंति प्रसंगे
धर्मनी व्याख्या ११५ श्री रवाणीना उद्गारो. ८३
धर्मनी शरुआत क्यारे थाय? ११६ पू. सद्गुरुदेवनी रात्रि चर्चामांथी
धर्मी जीवने ज्ञानीनो उपदेश छे के मेळवेलुं. १०३
आत्माने ओळखो. पू. सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनुं
धर्मीनुं रुचि, ज्ञान, अने श्रद्धा जीवन चरित्र ९८
केवां होय. १४ पू. श्री सद्गुरुदेवना उद्गार! १०९
धर्मीनुं स्वरूप १७ पोताना स्वरूपनुं अजाणपणुं ए
धर्मीने आहार केम? ११२ आत्मानो महान अपराध छे १२ १९२
नवनीत. १२ प्रभावना १५९
निमित्त–उपादान दोहा. १४४ प्रभावनाना कार्यो १४०
निमित्त नैमित्तिक संबंध. १०–११ १८२ प्रश्नोत्तर १२ १९८
नियमो (मासिकना) प्रश्नोतर [लेखक श्री रामजीभाई] १६
निवेदन १ प्रश्नोतरी [लेखक श्री रामजीभाई] १०–११ १६९
निश्चय–व्यवहार नयनुं स्वरूप बे मित्रो वच्चे गंभीर संवाद
निश्चय–व्यवहारनुं स्वरूप. ८६,८७,८८,८९ [तपविषे]
निश्चयव्यवहारनुं स्वरूप. ११७ बे मित्रो वच्चे गंभीर संवाद
निश्चय अने व्यवहार १२ २०८ गतांकथी चालु
निःशंकता १०–११ १७१ बे बोल १२४