Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २००० : २०५ :
विषय अंक नं. पानुं विषय अंक नं. पानुं
भक्तिनुं स्वरूप १२ शील. १३६
भगवान योगीन्द्रदेव शुं कहे छे शुद्ध, शुभ, अने अशुभनो विवेक १३
भगवानना उपवासनुं स्वरूप ८८ शुद्धना लक्षे शुभरागनी हद
भगवाने परुपेली अहिंसा ९३ शुद्ध कारण पर्याय अथवा ध्रुवपर्याय १०–११ १८५
भगवाने कहेला तत्त्वनो उपदेश ९३ शुभलागणी ते तो राग छे. तेवडे १२८
भगवानना शासननी हालनी स्थीति ९६ धर्म माननार आत्माना स्वरूपनुं खुन करे छे,
भरतक्षेत्रे भव्य जीवोनी भीड भांगवा शुभ भाव करतां पाप बंध थाय छे
माटे भगवाने भोमियो मोकल्यो छे तेनुं कारण १५३
कोई भेटशो? ९८ शुभभाव पण झेर छे ते भावने १०–११ १७२
भाव १३८ भलो मानवो ते महापाप छे.
भेद ज्ञानीनुं पराक्रम ११ श्रावकना षट् आवश्यक कर्म १४०
भेद संवेदन १५६ श्री जीनवाणी स्तवन
मनोमर्कटने वश करवानो उपाय–ज्ञान ११० श्री महावीर स्वामीनुं जीवन चारित्र ८४
मफतमां कांई पण मलतुं नथी. ११९ श्री सद्गुरुदेवना अंतरोद्गार ७ ११५
महान उपकारी भगवान कुंदकुंद आचार्य २ ११ श्री जैन अतिथी सेवासमीति १४०
महासागरना मोती १२६ श्री जैन सनातन ब्रद्मचर्य आश्रम. १४०
महासागरना मोती १५९ श्री सनातन जैन पाठशाळा. १०–११ १६२
मान्यता बदलो श्री सनातन जैन शिक्षण वर्ग १४३
मारो आत्म स्वभाव के गुण मने श्री जैन स्वाध्याय मंदिरमां चोडेला १४६
कोई आपी दे, अथवा बीजा मदद करे उजवळता प्रगटावनार चाकळा १६०
तो उघडे एवी मान्यता तेज बंधन श्री षट्खंड आगम जयवंत हो! ११९
मासखमण १२ २०० सत्य त्यागनुं स्वरूप १७
मांगलिक दिवस २० सत्यनो आदर ने अज्ञाननो त्याग एज
मिथ्यात्व सहित अहिंसा आदीनुं फळ १४ प्रथममां प्रथम धर्म छे. ११२
मूळमार्ग रहस्य (श्रीमद् राजचंद्र) सद्गुरुनो संसर्ग होवो दुर्लभ छे ९६
मोक्षनी क्रिया सप्त भंगीनुं स्वरूप ९२
मोक्षनी क्रिया १४ समजण एज धर्म अने अज्ञान एज
मोक्षना साधनमां पुरुषार्थनी मुख्यता संसार
मोक्षना मेळववा माटे सम्यकदर्शननी समकितीने ईन्द्रपद मळे त्यारनी भावना १२ १९१
भावना करो. १२ समजणनुं फळ ११७
रत्न कणिका ११ सभामां अध्यात्मोपदेश.
रस १०–११ १८० सभामां अध्यात्मोपदेश.
रागनी व्याख्या ने तेनुं फळ १६ समाचार १२
वस्तुनो शाश्वत स्वभाव. समाचार
वीतराग कथननी तीव्रता समजवा माटे संसारिक सुखनी रुचि नथी, एम
हाल प्राप्त साधनो ९७ बोलवाथी ते रुचि टळे नहीं. १७
विनति. १६ संसारी टाळवा मिथ्यात्वनुं वमन करो १३
विश्व प्रेम (संवाद) १४१ संवत्सरी प्रतिक्रमण [गंभीर संवाद] १०–११ १७७
वेषधारी धर्मोपदेशक १४ सम्यक्दर्शनना निवासना छ पद
व्रतादि छोडवाथी व्यवहारनुं हेय पणुं सम्यक्त्वनी प्रतिज्ञा
थतुं नथी. सम्यक्दर्शननुं महात्म्य
व्यवहार–परनाकर्तृत्वना हेय पणुं सम्यग्द्रष्टि थया विना कदी कोईने धर्म थयो
अंहकाररूप–ते व्यवहार १५५ नथी, थतो नथी ने थशे नहीं १०–११
व्यवहारथी निश्चय न आवे १०–११ १६२ सम्यकत्वनुं महात्म्य १४७