: आसो : २००० : २०५ :
विषय अंक नं. पानुं विषय अंक नं. पानुं
भक्तिनुं स्वरूप २ १२ शील. ८ १३६
भगवान योगीन्द्रदेव शुं कहे छे २ ५ शुद्ध, शुभ, अने अशुभनो विवेक २ १३
भगवानना उपवासनुं स्वरूप ६ ८८ शुद्धना लक्षे शुभरागनी हद ५ ३
भगवाने परुपेली अहिंसा ६ ९३ शुद्ध कारण पर्याय अथवा ध्रुवपर्याय १०–११ १८५
भगवाने कहेला तत्त्वनो उपदेश ६ ९३ शुभलागणी ते तो राग छे. तेवडे ८ १२८
भगवानना शासननी हालनी स्थीति ६ ९६ धर्म माननार आत्माना स्वरूपनुं खुन करे छे,
भरतक्षेत्रे भव्य जीवोनी भीड भांगवा शुभ भाव करतां पाप बंध थाय छे
माटे भगवाने भोमियो मोकल्यो छे तेनुं कारण ९ १५३
कोई भेटशो? ६ ९८ शुभभाव पण झेर छे ते भावने १०–११ १७२
भाव ८ १३८ भलो मानवो ते महापाप छे.
भेद ज्ञानीनुं पराक्रम १ ११ श्रावकना षट् आवश्यक कर्म ८ १४०
भेद संवेदन ९ १५६ श्री जीनवाणी स्तवन २ ३
मनोमर्कटने वश करवानो उपाय–ज्ञान ७ ११० श्री महावीर स्वामीनुं जीवन चारित्र ६ ८४
मफतमां कांई पण मलतुं नथी. ७ ११९ श्री सद्गुरुदेवना अंतरोद्गार ७ ११५
महान उपकारी भगवान कुंदकुंद आचार्य २ ११ श्री जैन अतिथी सेवासमीति ८ १४०
महासागरना मोती ८ १२६ श्री जैन सनातन ब्रद्मचर्य आश्रम. ८ १४०
महासागरना मोती ९ १५९ श्री सनातन जैन पाठशाळा. १०–११ १६२
मान्यता बदलो ४ ३ श्री सनातन जैन शिक्षण वर्ग ८ १४३
मारो आत्म स्वभाव के गुण मने श्री जैन स्वाध्याय मंदिरमां चोडेला ९ १४६
कोई आपी दे, अथवा बीजा मदद करे उजवळता प्रगटावनार चाकळा १६०
तो उघडे एवी मान्यता तेज बंधन ४ श्री षट्खंड आगम जयवंत हो! ७ ११९
मासखमण १२ २०० सत्य त्यागनुं स्वरूप ४ १७
मांगलिक दिवस ४ २० सत्यनो आदर ने अज्ञाननो त्याग एज
मिथ्यात्व सहित अहिंसा आदीनुं फळ ३ १४ प्रथममां प्रथम धर्म छे. ७ ११२
मूळमार्ग रहस्य (श्रीमद् राजचंद्र) १ ३ सद्गुरुनो संसर्ग होवो दुर्लभ छे ६ ९६
मोक्षनी क्रिया १ ४ सप्त भंगीनुं स्वरूप ६ ९२
मोक्षनी क्रिया २ १४ समजण एज धर्म अने अज्ञान एज
मोक्षना साधनमां पुरुषार्थनी मुख्यता ३ २ संसार ५ २
मोक्षना मेळववा माटे सम्यकदर्शननी समकितीने ईन्द्रपद मळे त्यारनी भावना १२ १९१
भावना करो. ५ १२ समजणनुं फळ ७ ११७
रत्न कणिका १ ११ सभामां अध्यात्मोपदेश. १ ७
रस १०–११ १८० सभामां अध्यात्मोपदेश. २ ५
रागनी व्याख्या ने तेनुं फळ ४ १६ समाचार १ १२
वस्तुनो शाश्वत स्वभाव. ४ ७ समाचार २
वीतराग कथननी तीव्रता समजवा माटे संसारिक सुखनी रुचि नथी, एम
हाल प्राप्त साधनो ६ ९७ बोलवाथी ते रुचि टळे नहीं. ४ १७
विनति. ५ १६ संसारी टाळवा मिथ्यात्वनुं वमन करो ५ १३
विश्व प्रेम (संवाद) ८ १४१ संवत्सरी प्रतिक्रमण [गंभीर संवाद] १०–११ १७७
वेषधारी धर्मोपदेशक २ १४ सम्यक्दर्शनना निवासना छ पद १ ७
व्रतादि छोडवाथी व्यवहारनुं हेय पणुं सम्यक्त्वनी प्रतिज्ञा ६ १
थतुं नथी. १ २ सम्यक्दर्शननुं महात्म्य १
व्यवहार–परनाकर्तृत्वना हेय पणुं सम्यग्द्रष्टि थया विना कदी कोईने धर्म थयो
अंहकाररूप–ते व्यवहार ९ १५५ नथी, थतो नथी ने थशे नहीं १०–११
व्यवहारथी निश्चय न आवे १०–११ १६२ सम्यकत्वनुं महात्म्य ९ १४७