: १९२ : आत्मधर्म : १२
पोताना स्वरूपनुं अजाणपणुं अने स्वरूपना अभानने लईने परवस्तुमां सुख बुद्धि
परम पूज्य सद्गुरुदेवनुं व्याख्यान. थोराळा
ता. १२–३–४४
फागण वदी ३ रविवार
आत्माना अविनाशी स्वरूपमां माल न मानतां
पर वस्तुनो संयोग के जे नाशवान छे, तेमां
माल मान्यो तेज चोराशीनी जेलनुं मूळियुं छे.
मोक्ष अधिकारनी छेल्ली बे गाथाओ
आ राजकोटनी तळेटीमां [थोराळामां] वंचाय छे.
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अपराध एटले शुं?
आ आत्मा अनादिथी संसारमां रझळे छे. परमां सुख बुद्धि माने छे ए रीते आत्मा पोतानो गुन्हो करे
छे. परथी सुख मान्युं एटले “ मारामां संतोष थाय तेवुं नथी तेथी पर होय तो मने संतोष थाय” एम मान्युं
ते पोतानो अपराध छे.
आत्मा अनादि अनंत वस्तु छे; तेनो वीतरागी स्वभाव छे–छतां तेनी खबर नथी एटले मारा संतोष
खातर जाणे पर पदार्थ होय तो ठीक थाय एम माने छे. आत्मा “ मारुं सुख मारामां छे ” एम नथी मानतो ते
ज पोतानो अपराध छे.
चोराशीनी जेलनुं कारण अपराध छे.
आत्म संतोषने पामेला एवा श्री गुरुने जन्म–मरणना त्रासथी घा नांखतो शिष्य पूछे छे के हे देव! हे
प्रभु! जन्म–मरणनो त्रास ए अपराधनुं फळ छे, ए अपराध ते शुं चीज हशे? अंतरमां जेने चोराशीना
अवतारनो त्रास थयो छे अने एम लाग्युं छे के जरूर गून्हो कांईक छे, कारणके जो हुं अपराधी न होउं तो मने
माराथी संतोष होवो जोईए. हुं अनादिथी अत्यार सुधी अपराध करतो आव्यो छुं पण अपराधनुं स्वरूप जाण्युं
नथी; तेथी अहीं अपराधनुं स्वरूप शिष्ये पूछयुं छे. जो अपराध न करतो आव्यो होत अर्थात् निरपराध होत तो
आ पराधीनता होत नहीं; पराधीनता तो छे पण अपराधनुं स्वरूप जाणवामां आव्युं नथी. जो अपराधनुं स्वरूप
जाण्युं होत तो अपराध टाळीने निरपराध रहेत. जगतमां पण अपराधीने जेल मळे छे; तेम शिष्यने जन्म–मरण
ते जेल समान लाग्यां छे अने जेलनुं कारण जे अपराध तेनुं स्वरूप जाणवा ते तैयार थयो छे.
आत्मा सिवाय परमां सुख हशे एम जेणे मान्युं ते बधा गुन्हेगार छे अने चोराशीनी जेलमां पड्या छे.
अंतःकरणमां लाग्युं के शरीरादि के पुण्य सरखां [अनुकूळ] रहेने, तो सुख मळे, एम परनी ओशियाळना
कारणे–पराधीनतामां सुख मानीने चोराशीनी जेलमां फसाईपड्यो, ए जेलनुं कारण अपराध छे अपराध वगर
जेल होय नहीं. शिष्य कहे छे–भगवान! मने मारा सच्चिदानंद स्वरूपनुं भान होय तो आ चोराशीनी जेल होय
नहीं. माटे अपराध तो छे; ते अपराध एटले शुं? गुन्हो शुं अने केटलो?
अपराधने अपराध तरीके जाणे तो अपराध टाळे
जेलमां पडेलांने जेम जेलनी टेव पडी गई होय अने जेलनुं दुःख तेने न लागे; एवा जेलना बंधनमां
जेणे सुख मान्युं छे तेने गुन्हो के गुन्हाना फळनो त्रास ज लागतो नथी, एम संसारनी रुचिवाळो जीव
चोराशीना जन्म मरणमां एक भव पूरो कर्यो–देहनी स्थिति पूरी थई–त्यांथी ज देह छोडतां साथे एवी भावना
लई जाय छे के आ शरीर वगर मारे चाले नहीं, मारे भव वगर चाले नहीं; अने भवनी लाळ कापवी नथी
अने एक पछी एक देह धारण करीने चोराशीना जन्म मरणमां रखडवुं छे; अहीं शिष्यने भवनो त्रास लाग्यो
छे, अपराधनुं स्वरूप जाणवा तैयार थयो छे; भगवान आत्मा चैतन्य ज्योत ज्ञानमूर्ति स्वरूप छे,
चैतन्यस्वरूपने पोताना सुख माटे परनी जरूर पडे एम मानवुं ते चैतन्यनो अपराध छे. प्रभु! ते अपराधनुं
स्वरूप जाणवुं छे अने ते टाळीने निरपराधी थवुं छे. (निरपराध एटले मोक्ष)
आ तो जेने गरज पडी छे तेने माटे छे; कोईने पराणे समजाववुं नथी. जेने अंतरथी