Atmadharma magazine - Ank 012
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 21

background image
: १९४ : आत्मधर्म : १२
अपराध शुं अने केटलो?
आत्माए परमां सुख मान्युं ते ज अपराध, अने तेनुं फळ ते संसारनी जेल. आ भूल नानी सूनी नथी,
अनंत–बेहद केवळज्ञान, बेहद वीर्य आदि अनंत गुणोथी भरेला स्वरूपनो अनादर कर्यो छे. निर्मळ सहज
चिदानंद स्वरूपमां सुख नहि मानतां परमां सुखनी मान्यता ए गुन्हो नानो नथी, पण स्वरूपना अनादरनो
महान अपराध छे.
पोताना स्वरूपनुं अजाणपणुं, स्वरूपना अभानने लईने परमां सुख बुद्धि ए आत्मानो महान
अपराध छे. स्वरूपनुं अभान, परमां लीनता तथा परमां सुखनी लालच ए ज अपराधनुं कारण छे. शाश्वत
कायमी स्भावना भान विना पर वस्तुथी सुख थशे एवी नाशवान बुद्धिमां अविनाशीना अनादरनो महान
अपराध छे. आत्माना अविनाशी स्वरूपमां माल न मानतां, परवस्तुनो संयोग के जे नाशवान छे तेमां माल
मान्यो ते ज चोराशीनी जेलनुं मूळियुं छे.
मूळ गुन्हो शुं अने क्यां सुधी?
मारामां सुख–शांति नथी एम स्वरूपनुं अभान अने पुण्य, आबरू, शरीर, स्त्री, राज्य वगेरेमां सुखनी
मान्यातानो भाव ते आत्मानो परम अपराध छे; तेना फळमां जन्म–जरा–मरण फाटे छे.
जे भाव राधरहित होय ते अपराध छे; गुन्हारहित भाव ते आत्मस्वभाव छे, अने ते गुन्हारहितपणा
वगरनो जे भाव (अर्थात् गुन्हासहीत जे भाव) ते अपराध छे.
आत्मा स्वतंत्र परना आधार विनानो छे, ते द्रष्टि चूकीने परमां सुख माने ते आत्मा अपराधी छे. जे
आत्मा स्वयं अशुद्धपणे परिणमे ते विराधक छे. ज्यारे पोतामांथी सुखशांतिनो निर्णय खस्यो त्यारे परनी ईच्छा
थई अने तेथी तेने शुद्ध आत्मानी सिद्धिनो अभाव छे. जे बाह्य द्रष्टिमां अटवाणो तेने साक्षीस्वरूपनी अंतरद्रष्टिनो
अभाव छे. परना ग्रहणना सद्भाव वडे शुद्ध आत्मानी सिद्धिनो–शुद्ध आत्माना विकासनो–अभाव छे.
आत्मामां सुख छे अने आत्मा अबंध (निरपराध) छे एम ज्यां सुधी जीव नथी जाणतो त्यां सुधी ते
अपराधी छे–गुन्हेगार छे.
स्वभावनी शंका एज गुन्हो
स्वभावमां संदेह अने परमां निःसंदेह एवा अपराधना कारणे पोताना सुख स्वरूप स्वभावमां संदेह
पड्यो छे, अने ज्यां सुख नथी त्यां सुख मानी बेठो छे, तेथी सुखनो अनुभव नथी.
हे चैतन्य भगवान! जो तारी मालवाळी वस्तुना धणीपणा (माटीपणा)नुं तने भान होय तो शरीरादि
पर–माटीनुं धणीपणुं तुं करे नहीं.
परने ग्रहण करवानी बुद्धि वडे अने आत्मामां ‘मारे पर विना चालशे नहीं’ एवो संदेह छे तेने बंधनी
शंका छे; ते ज अपराध छे.
आत्मामां जेने सुख–संतोषनी शंका छे तेने अंदरमां एम छे के–‘पुण्य करी लउं, नहितर भविष्यमां
सगवडता नहीं मळे, एटले के हुं तो सगवडता वगरनो धोयेल मूळा जेवो छुं.’ एम आत्मानुं धणीपणुं करतो
नथी अने परथी सुख थशे एवा भावमां तेने बंधनी शंका छे; मारा घरनी चैतन्य शांतिने खोलीने तेनो आनंद
भोगवुं एवा स्वभावमां ते संतोष करतो नथी, ए ज गुन्हो छे.
भगवान आत्मा देहदेवळमां आनंदनो खाजो (स्वादिष्ट वस्तु) छे तेनी जेने खबर नथी ते बीजामांथी
भीख मांगी तेनाथी आनंद लेवा मागे छे. आत्मा सिवाय परने ग्रहण करवानो भाव अने परने लईने सुखनी
मान्यता छे त्यां ज अपराध लागी चूक्यो छे.
परमां उपाय करवाथी भुल टळे नहीं.
आ अंतरमां क्यां भूल छे तेनी वात छे, ज्यां भूल छे त्यां टाळवानो उपाय करे तो भूल टळी शके:–
पडिमा ग्रहण
जेतपुरवाळा भाईश्री मुळशंकर काळीदास देशाईए श्रावण वद २ ना रोज सुवर्णपुरी
मुकामे पूज्य सद्गुरुदेव पासे पहेली बे पडिमा (–दर्शन पडिमा अने व्रत पडिमा) ग्रहण करेल छे.
भाईश्री मुळशंकर भाईए सां–१९९८ मां पूज्य सद्गुरुदेव पासे ब्रद्मचर्यव्रत अंगीकार
कर्युं हतुं ते पण अत्रे जणाववामां आवे छे.