: आसो : २००० : १९५ :
जेम–मोढा उपरनो डाघ अरीसामां देखातो होय, ते डाघ टाळवा अरीसानो काच पचास वर्ष सुधी घस्या
करे तो पण मोढानो डाघ टळे नहीं. ज्यां मेल छे त्यां टाळवानो उपाय करे नहीं अने परमां मथ्या करे तो ते
मेल टळे नहीं. एम आत्मामां ज्यां भूल छे तेने न जाणे अने शरीरादिने घस्या करे, तो तेथी भूल टळे नहीं.
आत्मा अरूपी वस्तु छे तेने पर वगर चाले नहीं. एवी बुद्धि ते मेल छे–भूल छे–अपराध छे.
अपराध क्यां छे, तेनुं स्वरूप शुं?
परनी मने जरूर छे, पुण्य वगर मने मोक्ष मळे नहीं एवी मान्यता ते ज अपराध छे, ते अपराधनुं फळ
चोराशीनी जेल छे.
बहारनी सामग्री मळे तो सुख थाय एटले मारा एकलामां तो कांई लागतुं नथी, तेथी बंधन वगर
चालशे नहीं एवी मान्यताना कारणे मलिनता छे, तेने पोतानी अशुद्धता भासे छे, ते अशुद्धता पर्यायमां छे,
वस्तु तो त्रणेकाळ शुद्ध ज छे.
आराधना एटले शुं?
आत्माना दर्शन, ज्ञान, चारित्र अने तप बहारनी क्रियामां नथी पण आत्मामां ज छे.
मारामां मारुं सुख छे एवी स्वाश्रित श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन.
परथी भिन्न स्वतंत्र स्वरूप जाण्युं ते सम्यग्ज्ञान.
परथी जुदा स्वरूपमां एकाग्र थवुं ते सम्यक्चारित्र.
स्वरूपना भानसहित परनी ईच्छाने तोडी नांखवी ते साचुं तप.
आ चारनी आराधना लईने जे जेशे ते ज्यां जशे त्यां जईने आराधना साथे लई गयो छे तेथी
आराधना पूर्ण करी पूर्ण स्वतंत्र स्वरूपने प्रगट करशे.
स्वतंत्र स्वरूपनो निश्चय, तेनुं ज्ञान, तेमां अंतर लीनता अने तेनाथी विरुद्ध ईच्छानो त्याग ए चार
आराधना छे. पर विना चाले नहीं एवी मिथ्याबुद्धि लईने गयो अने पाछळथी तेना हाडकांने नवरावीने
‘पवित्रता थई मरनारने लाभ थयो’ एम माने छे, पण मरनारने नवरावनार (पवित्र करनार) तो तेनो
पोतानो आत्मा ज छे. ज्यां जाऊं त्यां मारा आत्मामां पूर्णानंद भर्यो छे, तेमां लीनता–एकाग्रता करीने गमे ते
काळे के गमे ते क्षेत्रे शांति मेळवीश, मारी शांति माटे परनी जरूर मारे नथी, हुं तो ज्ञाता –द्रष्टा साक्षी –स्वरूप
छुं, वृत्तिओनो संयोग बधो वृथा छे. अविनाशी ज्ञाता द्रष्टा जेनुं स्वरूप छे एवो उपयोग स्वरूप चैतन्य जागृत
ज्योत छुं एवा निश्चयनुं जोर आव्युं तेनी एक–बे भवमां चोक्कस मुक्ति छे.
आत्माना निर्दोष ज्ञानस्वरूप स्वभावमां लीनता करवी ते आत्मानो व्यापार छे.
ज्यां निश्चयनुं जोर वध्युं त्यां निर्णयने वधारतो वधारतो “शुद्ध आत्मा स्वरूप ए ज सुख छे” एम
निःसंदेह थईने वारंवार “मारुं सुख मारामां ज छे.” एम निर्णय करतो–वधतो वधतो मोक्षमां चाल्यो जाय छे.
अर्थात् पूर्ण निर्मळ दशा प्रगटी जाय छे.
निश्चय मार्ग एक ज छे, कोई पण भेदना प्रकार विना एकलो परिपूर्ण छुं, वस्तु अधूरी, ऊणी होय नहीं
एम स्वरूपना निश्चयने घुंटता घुंटता पूर्ण परमात्म पद पामी जाय छे. आत्मामां परमात्म पद भर्युं छे, तेना
निर्णयने घुंटता घुंटता पोते ज प्रगट परमात्मा थई जाय छे.
आत्मा शांति आनंदनो कंद छे, तेना निश्चयने द्रढ करतां रागादि अज्ञाननो नाश थई आत्मानी
स्वाधीन पूर्णानंद दशा अर्थात् मोक्ष प्रगटी जाय छे. आमां ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप बधुं आवी जाय छे.
आत्माना स्वभावनो निश्चय करतां करतां, तेने घुंटता एटले तेमां एकाग्र थतां ते परमानंद स्वरूप थई
जशे, तेने कोई विघ्न के अडचण आवशे नहीं, अनुं नाम स्वरूप–आराधक छे, अने ते ज आत्मा निरपराधी छे.
आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत
गया पर्युषणना दिवसो दरम्यान बोटादना कामदार मनसुखलाल
मगनलाल अने राजकोटना भाईश्री लक्ष्मीचंद लीलाधर महेता तेओ बंनेए सजोडे
ब्रह्मचर्यव्रत परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामी समीपे अंगीकार कर्युं छे.