तमारी नकल पांच ने वंचावो
: कारतक : २००१ आत्मधर्म : ९ :
अने परिपूर्ण छे. दरेक आत्मा पण शुद्ध सिद्ध भगवान समान परिपूर्ण छे; आम जे स्वभावनी स्वतंत्रता
उपर–शुद्धता उपर द्रष्टि करीने परभावने टाळे छे तेने अनंतदर्शन–ज्ञानादि स्वचतुष्टय प्रगटे छे.
८–आजना मंगळ प्रभात बाबत श्रीमद् राजचंद्र कहे छे के:–
‘रात्रि व्यतीत थई, प्रभात थयुं; द्रव्य निद्राथी जागृत थया हवे भाव निद्रा टाळवानो प्रयत्न करो’ मोह
अंधकार टाळी संपूर्ण ज्ञान प्रकाश फेलावो.
९–आजना मंगळ प्रभात बाबत श्री अमृतचंद्राचार्य कहे छे के:– जेम परमां ऊंधी मान्यताथी सुखनो
भरोसो कर्यो छे तेम पोतामां अनंतज्ञान दर्शन भर्या छे तेनी श्रद्धा करे तो चैतन्य निरर्गल (जेमां कोई जातनो
मेल नथी, आगळीयो नथी, विघ्न नथी.) एवा विलसता (विकासरूप) चैतन्य स्वभावनुं खीलवुं अर्थात्
विकसवुं थाय छे. ते चैतन्य ज्योतरूप सुमंगळ खील्युं ते खील्युं–ते कदी पण अस्त थवानुं नथी एवा सादि
अनंत मंगळ प्रभातने (केवळज्ञानने) ज्ञानीओ बेसतुं वर्ष अथवा ‘सुमंगळ प्रभात’ कहे छे.
अनंतज्ञाननुं प्रगटवुं एटले के जेनो प्रकाश अनंत छे एवा केवळज्ञाननुं प्रगटवुं ते ज सुप्रभात छे.
१०–श्री पद्मनंदी आचार्य सुप्रभातनुं वर्णन करतां कहे छे के:– जेम रात्रिनो अंत आवतां अंधकारनो
नाश थई प्रभातनो प्रकाश प्रगटे छे तेम आत्मामां राग–द्वेष–मोहरूपी अनादिना अंधकारनो चैतन्य स्वभाव
वडे अंत आवे छे. हुं चैतन्यमूर्ति झळहळती पूर्ण प्रकाशमान स्व–पर प्रकाशक ज्ञानज्योत छुं एवी श्रद्धाना जोरे
एकाग्रतामां वधतां वधतां छेवट पूर्ण केवळज्ञानरूपी सुप्रभात उदय पामे छे, ते केवळज्ञानना झळहळता
प्रकाशमां अज्ञानरूपी कोईपण अंधकार के कर्मना आवरण एक क्षणमात्र रही शकता नथी–नाश ज थई जाय छे.
(पद्मनंदी पंचविंशतिका पानुं ४४२)
११–उपर कह्युं तेवा सुप्रभातनी प्राप्ति अर्थे वंदना:–
अनंत वीर्यना विघ्नरूप वीर्यावरण कर्मनो नाश करवाथी जेने अनंतवीर्य प्रगट्युं छे, अने
चारित्रमोहनीय आदि आवरणोनो नाश करतां जेने अनंतदर्शन, अनंतज्ञान अने अनंतआनंदरूप चक्षुओ
ऊघडी गयां छे अर्थात् जेओ कर्मना आवरणोने भेदीने–नाश करीने केवळज्ञानरूपी सुप्रभातना संपूर्ण प्रकाशने
पाम्या छे ते भगवंतोने तेवा प्रकाशनी प्राप्ति अर्थे नमस्कार करूं छुं; सुप्रभातना सुप्रकाशनी प्राप्ति अर्थे (ज्यां
सुधी तेवी दशा प्राप्त न थाय त्यां सुधी) फरी फरी नमस्कार करूं छुं.
वीर भगवाननी मुक्ति (सिद्धपदनी प्राप्ति) अने गौतम स्वामीने केवळज्ञान एक ज समये थया हता. जगत
कहे ‘भगवान निर्वाण पाम्या’ ज्यारे ज्ञानीओ कहे ‘भगवान जीवन पाम्या’ केमके सिद्धदशा ए ज जीवन छे.
१२–सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्राप्ति अर्थे वंदना जेम प्रभातनो प्रकाश थतां रात्रिना अंधकारनो
संपूर्ण नाश थाय छे, अने निद्रित प्राणीओना निद्रा त्यागीने बे चक्षुओ खूली जाय छे तेम–ज्ञानावरणीय अने
दर्शनावरणीय एवा जे बे कर्मो छे ते कर्मोरूपी मोहनिद्राने टाळीने जे ज्ञानीओ–महात्मा पुरुषो सम्यग्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञानरूपी बे चक्षुओ खोलीने स्वभावमां जागृत थया छे एवा जे मुनिश्वरो–ज्ञानी महात्माओ तेओने तेवा
पदनी प्राप्ति अर्थे नमस्कार! ज्यां सुधी ते पदनी प्राप्ति न थाय त्यां सुधी फरी फरी अनंतवार नमस्कार हो!
१३–श्री आनंदघनजी पोताना ज आत्माने वंदन करीने धन्य कहे छे–
अहो अहो हुं मुजने कहुं, नमो मुज नमो मुज रे
अमित फळ दातारनी, जेथी भेट थई तूज रे!
अहो अहो!... (अमित=अमर्यादित, बेहद)
१४– श्रीमद् राजचंद्र पोताने वंदन करतां कहे छे के:–
‘अविषमपणे ज्यां आत्मध्यान वर्ते छे एवा जे ‘श्री रायचंद’ ते प्रत्ये फरी फरी नमस्कार. ’ मारा
आत्माने शुं कहुं? मारा आत्माने तो बस! नमस्कार हो, वंदन हो, विनय हो.