: ८ : आत्मधर्म २००१ : कारतक :
सुप्रभात मंगलिक
प्रात: स्मरणीय
पूज्य सद्गुरुदेवना सं. २०००नी दीपोत्सवीना मंगळिकनो टूंकसार
१–सुप्रभातनी व्याख्या:–
प्रभात तो घणां ऊगे छे, पण आ प्रभात (केवळज्ञान प्रकाश) ऊगे छे; ते कदी अस्त न थाय एवी
दशा प्रगटे छे–ते ज खरूं सुप्रभात छे. केवळज्ञाननो प्रकाश (उदय) ए ज आत्माने माटे सुप्रभातनो सादि–
अनंतकाळ छे.
२–आत्मामां अनंतज्ञानादि स्वचतुष्टयनी ‘अस्ति’ अने राग–द्वेष–मोहनी ‘नास्ति’ ते स्याद्वाद छे.
३–ज्ञाननो स्वभाव सुख, आनंद स्वरूप अने जगतना गमे तेवा अनुकूळ के प्रतिकूळ प्रसंगमां
समाधान करवानो छे. ज्ञान स्वभावने जाणवामां कांई पण अनुकूळ–प्रतिकूळ होई शके नहीं. ज्ञानथी
ज्ञानस्वभावने जाणतां रागद्वेषनो नाश थाय छे ते ज ज्ञान अने ज्ञाननी क्रिया छे. ज्ञान पोते दुःख नथी. जो
ज्ञान पोते दुःखरूप होय तो दुःख टाळवानो उपाय कयो? ज्ञान अंदर अने ज्ञाननी क्रिया बहार थाय एवुं नथी.
आत्मानुं ज्ञान अने ज्ञाननी क्रिया बधुं आत्मामां ज छे.
४–अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतवीर्य अने अनंतआनंद ए आत्माना स्वचतुष्टय छे.
(अ) अनंतदर्शन–ते सम्यक्श्रद्धाना फळमां प्रगटे छे.
(ब) अनंतज्ञान–जेणे सत् समागमे आत्मानी सत्तानुं भान कर्युं–तेनो आश्रय कर्यो; तेना फळमां प्रगटे
छे ते अनंतज्ञान अर्थात् केवळज्ञान.
(क) अनंतआनंद–जे आत्मानी यथार्थ श्रद्धा करीने तेमां टकी रह्यो (स्वभावमां एकाग्र थवा रूप चारित्र)
तेना फळमां अनंतकाळ रहेनार अस्खलित, जेमां कोईपण रीते अडचण नहीं एवो अनंतआनंद प्रगटे छे.
(ड) अनंतवीर्य–सम्यक्श्रद्धा पछी पुरुषार्थना फळमां आत्मानुं बेहद सामर्थ्य छे ते प्रगटे छे.
प–आत्मानी ज्योत (केवळज्ञान) अचळ छे, ते एकवार प्रगट्या पछी कदीपण नाश पामवानी नथी,
तेथी सादी–अनंत (शरूआतवाळी अने अंत वगरनी) कहेवाय छे. एवी केवळज्ञान ज्योतमां स्वचतुष्टयनुं
एकपणुं छे.
६–आत्मा शुद्ध, तेना अनंतगुणो शुद्ध अने आत्माना गुणनी जे अवस्था ते पण शुद्ध–त्रिकाळ शुद्ध–पूर्ण
शुद्ध लक्षमां लेनार सम्यग्दर्शन छे. निश्चयथी दरेक आत्मा द्रव्य–गुण–पर्याये त्रिकाळ एकरूप शुद्ध ज छे.
७–जेम आकाश, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने काळ स्वतंत्र पदार्थो छे अने पोतानी अवस्था
स्वतंत्रपणे रहीने बदले छे–शुद्ध ज रहे छे, तथा एक छूटो परमाणु पण शुद्ध पदार्थ छे अने पोतानी अवस्था
स्वतंत्रपणे बदलनार छे, तेवी ज रीते हुं–आत्मा पण शुद्ध अने स्वतंत्रपणे त्रिकाळ टकनार द्रव्य छुं अने मारी
अवस्था स्वतंत्रपणे शुद्ध रहीने हुं ज बदलावी शकुं छुं. आम दरेके दरेक वस्तु पोताना गुण पर्यायथी शुद्ध
चित्पिंड चंडिम विलासि विकासहासः
शुद्धप्रकाश भरनिर्भर सुप्रभातः।
आनंदसुस्थित सदास्खलितैकरूप–
स्तस्यैव चायमुदय त्यचलार्चिरात्मा।।
(समयसार कलश २६८)
स्याद्वाददीपितलसन्महसि प्रकाशे
शुद्धस्वभावमहिमन्युदिते मयीति।
किं बंधमोक्ष पथपातिभिरन्यभावै–
र्नित्योदयः परमयं स्फुरतु स्वभावः।।
(समयसार कलश २६९)