: १४ : आत्मधर्म २००१ : कारतक :
छे तेवा चैतन्य भगवानने जे संभारतो नथी, तेनी ओळखाण करतो नथी अने एक समय पूरता कर्मनी साथे
जेणे ओळखाण मांडी छे ते बधा मूर्ख ज छे, अज्ञानी छे, तेओ मुक्ति पामता नथी.
तने जे निमित्तनुं ज्ञान बताव्युं ते निमित्त (कर्म) नुं तारा उपर जोर बताववा कह्युं नथी, पण ते
निमित्तआधीन थतो विकार तारुं स्वरूप नथी एम कहीने तारो पुरुषार्थ उपाडवा तने कह्युं हतुं, त्यां निमित्तने
वळगी बेठो? माटे ते निमित्त कर्मनी द्रष्टि छोड! अने स्वभाव तरफ द्रष्टि कर! भगवाननो उपदेश धर्मनी वृद्धि
माटे छे तेम न लेतां ऊंधुंं माने तो तेने वीतरागनी वाणीना निमित्तनुं पण भान नथी. ‘सवी जीव करूं शासन
रसी’ एवा शुभभावे बंधायेल तीर्थंकर नामकर्मनो उदय थतां वीतरागनी ध्वनि नीकळे छे ते स्वभाव–धर्मनी
वृद्धि माटे छे; ते ध्वनि कहे छे के ‘जाग! जाग! तारी मुक्ति अल्पकाळमां ज छे, तारो स्वभाव परिपूर्ण
पुरुषार्थथी भरेलो छे;’ आ रीते निमित्त–उपादाननी संधि तूटती नथी ते माटे तो उपदेश छे.
परम पूज्य श्री सद्गुरु देवना श्री समयसार मोक्ष अधिकार गाथा–२८८–८९–९० पर
प्रवचनोमांथी सं. १९९९ मागशर वद ९ राजकोट.
– : आत्मधर्म मासिक: –
गया अंकमां जणावेलुं के आवता वर्षथी आत्मधर्म पाक्षिक थशे, परंतु ते पछीथी विचारता केटलाक
कारणोसर हाल तुरत पाक्षिक करवानुं मुलतवी राखेल छे; एथी हवे आत्मधर्म मासिक ज रहेशे, अने तेनुं
लवाजम रूा. २–८–० अढी ज रहेशे.
• आचार्यदेव कहे छे के, आवी अपूर्व वातने पाम्या विना •
पंचमकाळना जीवो केम रही शके?
पू. सद्गुरुदेवना श्री समयसारजी गाथा ३ पर प्रवचनोमांथी
* संवत् १९ आसो सुद १ *
धर्म तेनुं नाम के धर्म जाण्यो, मान्यो, पछी प्रतिकूळ प्रसंग आवे त्यारे समजे के ते तेनामां ने हुं मारामां,
तेनामां मारो हाथ नहीं ने मारामां तेनो हाथ नहीं; पण हजी ज्यां सुधी पोतानी नबळाई छे त्यांसुधी
अशुभराग टाळीने शुभराग होय, ते शुभराग पण हदनो आवे छे कारणके स्वरूपनी हद चूकीने ते शुभराग
पण थतो नथी, पण अहीं तो ते हदना शुभरागने पण टाळवानी वात छे.
समयसारजीमां आचार्य देव कहे छे के:– शरीर, मन, वाणी, पुण्य–पापना भाव तारुं कांई पण करी
शकता नथी. तुं एनाथी पर छो, ताराथी अत्यंतपणे ते जुदा छे. तारामां पर नथी एम अत्यंतपणे निषेध्युं छे.
जेणे परथी जुदापणुं जाण्युं छे तेणे परथी एकपणुं उखेड्युं छे, एवा मुनिओए पर साथेना एकपणाने अत्यंत
निषेध्युं छे तो हवे कया पुरुषने ज्ञान तत्काळ न थाय? अवश्य थाय ज. × × × ×
भाई! पुण्य–पापना विकारी भाव ते नाशवान छे. तेनाथी तारुं अविनाशी स्वरूप जुदुं छे. ते
अविनाशी स्वरूप अमे प्रगट करीने बेठा छीए, ते तने कहीए छीए तो तने केम न समजाय? जरूर समजाय.
जरूर भान थाय ज. आ वस्तु तने काने पडे, तारी साची जिज्ञासा होय, रुचि होय ने तने केम न समजाय?
आचार्यदेव कहे छे के अमे अनेक पडखांथी आत्माने जुदो बताव्यो, तो हवे तत्काळ भान केम न थाय? तत्काळ
आबालवृद्ध सौने भान थाय ज. × × × ×
ते ज्ञान केवुं थईने प्रगट थाय छे? पोताना निजरसथी खेंचाईने एकरस थतुं प्रगट थाय छे. हुं
आनंदमूर्ति छुं एम श्रद्धावडे तेमां एकाग्र थाय तो ज्ञान केवुं प्रगट थाय? एकलुं ज्ञान नहीं पण (साथे) आनंदने
लेतुं प्रगट थाय, आकुळता अने पराधीनताने टाळतुं प्रगट थाय; भान थतां शांति थाय, आनंद थाय. भान थतां
आकुळता न टळे अने शांति न थाय एवुं आ शास्त्रमां छे नहीं. + × + (१९९९ आसो सुद २ शुक्र)