Atmadharma magazine - Ank 013
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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आचार्यदेव कहे छे के, अमारी कहेली वात सांभळीने कया पुरुषने यथार्थ ज्ञान न थाय? थाय ज. कोण
कथनार छे अने कोने कहेवाय छे ते वात अहीं बतावाय छे. कहेनार ज्ञानी अने समजनार पात्र छे तो केम न
समजाय? अवश्य समजाय. शरीर, मन वाणी, ते मारां नथी, ते तरफ थती लागणी ते मारी नथी, एम वीर्य
परमांथी अटक्युं अने मारुं ज्ञान–आनंदनुं वीर्य मारामां छे एम जाण्युं तो कया पुरुषने यथार्थ भान शीघ्र–
तत्त्काळ न थाय? थाय ज. जेणे पात्र थईने सांभळ्‌युं ते यथार्थपणाने केम न पामे?
आचार्यदेव कहे छे के, जरूर अमारी कहेली वात जगतने मोक्ष आपशे. अमे शरीर अने आत्माना
भिन्नपणानां गाणां गायां छे, पृथक्पणाने पींखी पींखीने बताव्युं छे, तो हवे एवो क्यो पुरुष छे के जड–
चैतन्यनी वहेंचणी न पामे?
आचार्यदेव कहे छे के, आवी अपूर्व वातने पाम्या विना पंचमकाळना जीवो केम रही जाय? एम
पंचमकाळमां आवो शास्त्र रचवानो विकल्प अमने आव्यो अने शास्त्र रचायुं तो क्यो पुरुष स्वरूप न पामे?
आ वात सांभळीने एवो क्यो जीव होय के जेने आत्मानुं भान न थाय? थाय ज.
स्वसत्तानी सन्मुख थयेलो स्वरूपने ओळखे छे, अने पर सत्तामां रहेलो स्वरूपने चूके छे. आचार्यदेव
कहे छे के, पंचमकाळमां जीवो क्रियाकांडमां सलवाई गया छे. अमने आ पुस्तक रचवानो विकल्प ऊठ्यो तो
जगत केम नहीं समजे? अवश्य समजशे. शुं कहीए समयसारनी वात! ए तो जेने समजायुं होय तेने खबर
पडे. जेमां केवळी तीर्थंकरना पेट भर्या छे, जे खरुं जिन शासन छे. आचार्यदेवे अद्भुत करुणा वरसावी छे. आ
समयसार कोई निमित्त–उपादानना बळवान योगे रचायुं छे.
आचार्यदेव कहे छे के, अमे अमारा स्वस्वभावना जोरथी कहीए छीए, तो पछी अमारुं निमित्त ज एवुं
छे के जीवो यथार्थ तत्त्वने अवश्य पामशे, एवो कोलकरार कर्यो छे. केवुं ज्ञान यथार्थपणाने पामशे? पोताना
निजरसथी खेंचाईने, अज्ञानमां जे राग अने आकुळताना रसनुं वेदन हतुं ते वेदनने तोडीने, पोताना ज्ञान
अने आनंद रसथी खेंचाईने प्रगट थाय छे, आवो प्रभु शांत मीठा, मधुर रसथी भरपूर छे. सम्यग्दर्शन प्रगट
थतां पुण्य–पापना आकुळतावाळा भाव तेने अंशे नाश करतो पोतामां एकाग्र थतो निजरस प्रगटे छे, आनुं
नाम सम्यग्दर्शन–आनुं नाम समक्ति, बाकी बधी सौनी मानेली वाडानी वात.
व्यवहार एटले पराश्रित द्रष्टि तेनाथी आत्माने जुदो बताव्यो. ते पराश्रित द्रष्टिथी कदी पुरुषार्थ पमातो
नथी. एम वहेंचणी करी आत्माने जुदो बताव्यो. व्यवहारथी परमार्थ कोई दिवस पमातो नथी तेम विभाग
बताव्यो, तो एवुं जाणीने एवो कोण पुरुष छे के जेने भेदज्ञान न थाय? थाय ज. आचार्यदेवथी पंचमकाळना
प्राणीनी पात्रता जोईने शास्त्र लखायां छे. पंचमकाळना पात्र जीवो जड–चैतन्यनी वहेंचणी करीने जरूर स्वरूपने
पामवाना छे, एकावतारी थवाना छे. आ तो प्रथममां प्रथम सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननी वात छे के जे धर्मनो
मूळ पायो छे अने मोक्षनुं बीज छे. वीतराग थई गया तेनी आ वात नथी, आ तो चोथी भूमिकानी वात छे.
शरीर, मन, वाणीनी क्रिया ते हुं नहीं अने संसारना बहानानी थती वृत्तिओ ने धर्मना बहानानी थती
वृत्तिओ ते बधी पर तरफनी थती वृत्तिओ, ते पण हुं नहीं ; हुं तो एक चैतन्यमूर्ति अखंड ज्ञानस्वरूप छुं, एम
परथी भिन्नपणानुं भान अहीं बताव्युं छे. कोई दीर्घ संसारी होय तेनी तो अहीं वात ज नथी, ते तेने घरे रह्यो;
अहीं तो आ भान थईने एक बे भवे मोक्ष जवाना छे तेनी वात छे. जेणे आत्मानो अनंत पुरुषार्थ देख्यो नथी
तेने अनंत संसार रखडवानो छे. कोई कहे के कर्म नडे छे, काळ नडे छे, जड मने अवगुण करावे छे, तेम
माननार पाखंडद्रष्टि अनंत संसारी छे, तेनी अहीं वात नथी.
सत्शास्त्रनी नवी आवृत्तिओ
आत्मसिद्धि शास्त्रपर
प्रवचन ३–७–०
मोक्षमार्ग प्रकाशक
३–०–०
जैनसिद्धांत प्रवेशिका ०–८–०
सर्व सामान्य प्रतिक्रमण ०–८–०
(टपाल खर्च जुदुं.)