समजाय? अवश्य समजाय. शरीर, मन वाणी, ते मारां नथी, ते तरफ थती लागणी ते मारी नथी, एम वीर्य
परमांथी अटक्युं अने मारुं ज्ञान–आनंदनुं वीर्य मारामां छे एम जाण्युं तो कया पुरुषने यथार्थ भान शीघ्र–
तत्त्काळ न थाय? थाय ज. जेणे पात्र थईने सांभळ्युं ते यथार्थपणाने केम न पामे?
चैतन्यनी वहेंचणी न पामे?
आ वात सांभळीने एवो क्यो जीव होय के जेने आत्मानुं भान न थाय? थाय ज.
जगत केम नहीं समजे? अवश्य समजशे. शुं कहीए समयसारनी वात! ए तो जेने समजायुं होय तेने खबर
पडे. जेमां केवळी तीर्थंकरना पेट भर्या छे, जे खरुं जिन शासन छे. आचार्यदेवे अद्भुत करुणा वरसावी छे. आ
समयसार कोई निमित्त–उपादानना बळवान योगे रचायुं छे.
निजरसथी खेंचाईने, अज्ञानमां जे राग अने आकुळताना रसनुं वेदन हतुं ते वेदनने तोडीने, पोताना ज्ञान
अने आनंद रसथी खेंचाईने प्रगट थाय छे, आवो प्रभु शांत मीठा, मधुर रसथी भरपूर छे. सम्यग्दर्शन प्रगट
थतां पुण्य–पापना आकुळतावाळा भाव तेने अंशे नाश करतो पोतामां एकाग्र थतो निजरस प्रगटे छे, आनुं
नाम सम्यग्दर्शन–आनुं नाम समक्ति, बाकी बधी सौनी मानेली वाडानी वात.
बताव्यो, तो एवुं जाणीने एवो कोण पुरुष छे के जेने भेदज्ञान न थाय? थाय ज. आचार्यदेवथी पंचमकाळना
प्राणीनी पात्रता जोईने शास्त्र लखायां छे. पंचमकाळना पात्र जीवो जड–चैतन्यनी वहेंचणी करीने जरूर स्वरूपने
मूळ पायो छे अने मोक्षनुं बीज छे. वीतराग थई गया तेनी आ वात नथी, आ तो चोथी भूमिकानी वात छे.
परथी भिन्नपणानुं भान अहीं बताव्युं छे. कोई दीर्घ संसारी होय तेनी तो अहीं वात ज नथी, ते तेने घरे रह्यो;
अहीं तो आ भान थईने एक बे भवे मोक्ष जवाना छे तेनी वात छे. जेणे आत्मानो अनंत पुरुषार्थ देख्यो नथी
तेने अनंत संसार रखडवानो छे. कोई कहे के कर्म नडे छे, काळ नडे छे, जड मने अवगुण करावे छे, तेम
माननार पाखंडद्रष्टि अनंत संसारी छे, तेनी अहीं वात नथी.
प्रवचन ३–७–०
मोक्षमार्ग प्रकाशक
सर्व सामान्य प्रतिक्रमण ०–८–०