: कारतक : २००१ आत्मधर्म : ३ :
वीर प्रभुजी मोक्ष पधार्या गौतम केवळज्ञान रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
देव देवेन्द्र महोत्सव करे ज्यां दिन दिवाळी उजवाय रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
शैलेशी करणे चडया प्रभुजी अयोगी पद धर्युं आज रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
सर्वे कर्मनो क्षय करीने सिद्धपद प्राप्त थाय रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
पावापुरी सिद्धक्षेत्र प्रभुजी समश्रेणी कहेवाय रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
पंच कल्याणक सुरपति उजवे स्वर्गेथी उतरी आज रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
अखंडानंद स्वरूप प्रगटावी पहोंच्या शिवपुर धाम रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
देवदुदुंभी वाजींत्र वागे निर्वाण महोत्सव थाय रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
त्रीस वर्ष प्रभु दिव्य ध्वनिनो अपूर्व छुटयो धोध रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
ध्वनि सूणीने भव्य जीवोना हृदयपट पलटाय रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
वीरना वारस कहान प्रभुजी वर्तावे जय जयकार रे,
वीरजीनुं शासन झुले रे.
(जिनेन्द्र स्तवन मंजरी पानुं – २६२)