Atmadharma magazine - Ank 013
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म २००१ : कारतक :
क्रमबद्ध पर्यायनुं स्पष्टीकरण
(आत्मधर्मना पर्युषण अंक १०–११ मां आवेला ‘क्रमबद्ध पर्याय’ लेखनुं सविशेष स्पष्टीकरण)
परम कृपाळु श्री सद्गुरुदेवना श्री समयसार सर्व विशुद्ध ज्ञान अधिकार
गाथा ३०८ थी ३११ ना व्याख्यानमांथी
(मागशर सुद ३ संवत् २०००)
जे कांई कार्य थाय ते कर्ताने आश्रये होय, अने कर्ता ते कार्यने आश्रये होय, कार्यने अवलंबीने कर्ता
होय, पण कार्य क्यांक थाय, अने कर्ता क्यांक रही जाय एम न बने. जडनी अवस्थाने आश्रये जड अने
आत्मानी अवस्थाने आश्रये आत्मा होय, कर्ता जुदो रही जाय अने अवस्था जुदी रही जाय तेम न बने. कर्ता
अने कार्य चैतन्यना चैतन्यमां, अने जडना जडमां, स्वतंत्र छे कोई परद्रव्य कोई परद्रव्यनी हालत फेरववा
समर्थ नथी.
जीव क्रमबद्ध एवा पोताना परिणामोथी उपजतुं थकुं जीव ज छे अजीव नथी. भगवान आत्मामां
क्रमबद्ध एक समय पछी बीजा समयनी पर्याय अने बीजा समय पछी त्रीजा समयनी पर्याय एम क्रमेक्रमे
उत्पन्न थाय छे, एक समयमां बधी त्रणेकाळनी पर्याय आवी जती नथी. आत्मा अनादि अनंत छे तेमां
अनादिकाळनी जेटली अवस्था थाय छे ते एक पछी एक थाय छे, वस्तुमांथी क्रमबद्धपणुं छूटतुं नथी. आत्मामां
ज्ञानादि अनंतगुणो छे तेमां एक गुणनी एक समयमां एक अवस्था होय छे, अनंतागुणोनी थईने एक
समयमां अनंती अवस्था होय छे, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अस्तित्व, वस्तुत्व, आदि आत्मामां अनंतगुणो छे,
दरेक गुण समय समयमां बदले छे; गुण बदले नहीं तेम बने नहीं माटे दरेक गुणो समय समये क्रमबद्ध बदले
छे. पण गुणोनी त्रणेकाळनी बधी अवस्था एक साथे आवी जती नथी.
अनंतगुणनो पिंड ते वस्तु छे. वस्तुमां जे अवस्था थाय छे ते एक पछी एक थाय छे, क्रमबद्ध थाय छे,
क्रमसर थाय छे, क्रमवार थाय छे.
आत्मामां जे अवस्था थाय छे तेमां आत्मा पोते क्रमसर परिणमतो थको पोते ज छे, बीजी कोई चीज
परिणमती नथी. कर्ता आत्मा अने एनी अवस्था ते एनुं कार्य, ते कार्य आत्मामां क्रमसर थाय छे, जोडेवाळो
बीजो माणस करे शुं? बीजो बीजानी अवस्थाने करे तो वस्तु पराधीन थई जाय. जोडे तीर्थंकर ऊभा होय तो
पण शुं करे? पोतानी रुचि पोता वडे जो स्वभावमां गई तो स्वभावनी क्रमबद्ध अवस्था थाय छे, अने पोतानी
रुचि जो परमां गई तो विकारनी क्रमबद्ध अवस्था थाय छे तेमां बीजो शुं करे?
पोते पोतानी अवस्थाथी उपजतो थको पोते ज छे बीजो कोई नथी. कर्म कारण अने आत्मा कार्य छे
एम नथी, पोते ज पोतानुं कारण अने पोते ज पोतानुं कार्य छे.
जडमां पण क्रमबद्ध पर्याय थाय छे. जेम माटीमांथी घडो थवानी पर्याय जे थाय छे ते क्रमबद्ध थाय छे,
तेमां कुंभार कांई करी शकतो नथी. माटे अजीवनो कर्ता जीव नथी, पण अजीव पोतानी अवस्थाथी एक पछी
एक उपजतुं थकुं अजीव ज छे.
पोतानी क्रमसर अवस्था थाय छे एवी जेने प्रतिती थई तेने पर मारुं करी दे छे एवो भाव टळी जाय
छे. एमां अनंता जीव अने अनंता जड मारुं करी दे छे एवी पराधिनतानी द्रष्टि टळी जाय छे. आ महा सूक्ष्म
वात छे. आ कर्ता–कर्मनो महा सिद्धांत छे.
वस्तुमां पर्याय एक पछी एक क्रमसर थाय छे तेनो कर्ता बीजो कोई नथी पोते ज छे. बंध टाणे मुक्ति
न होय अने मुक्ति टाणे बंध न होय, ते पर्याय एक पछी एक होय, परंतु बन्ने साथे न होय. वस्तु तो कायम
एकरूप छे तेमां एक पछी एक एवो क्रम पडतो नथी. माटे वस्तु ते अक्रम छे; अने पर्याय ते क्रमरूप छे.