: कारतक : २००१ आत्मधर्म : ५ :
केवळज्ञाननी पर्याय पहेलांं आवे अने सम्यग्दर्शननी पर्याय पछी आवे, एम आडी अवळी पर्याय न
प्रगटे पण सम्यग्दर्शन पहेलांं थाय अने केवळज्ञान पछी ज थाय एम क्रमसर पर्याय प्रगटे एवो वस्तुनो
स्वभाव ज छे.
पुरुषार्थने स्वीकार्या वगर, पुरुषार्थने उपाड्या विना, मोक्षमार्ग तरफनी क्रमबद्ध पर्याय थती नथी अने
मोक्षनी पण क्रमबद्ध पर्याय थती नथी.
जेना ज्ञानमां पुरुषार्थनो स्वीकार नथी ते पुरुषार्थने पोतावडे उपाडतो नथी अने तेथी तेने पुरुषार्थ
विना सम्यकदर्शन नहीं थाय अने केवळज्ञान पण नहीं थाय. जे पुरुषार्थने स्वीकारतो नथी तेने निर्मळ क्रमबद्ध
पर्याय नहीं थाय, पण विकारी क्रमबद्ध पर्याय थया करशे.
जे अवस्था जे वस्तुमांथी थाय ते वस्तु उपर द्रष्टि मूकवाथी मुक्ति थाय छे, पर द्रव्य मारी अवस्था करी
देशे, एवी द्रष्टि तूटी जवाथी, वस्तु उपर द्रष्टि मूकवाथी राग थतो नथी वस्तुनी क्रमबद्ध अवस्था थाय छे एम
द्रष्टि थतां पोते ज्ञाता द्रष्टा थई जाय छे, अने ज्ञाता द्रष्टाना जोर वडे अस्थिरता छूटीने स्थिर थई अल्प काळे
मुक्ति थाय छे. आमां अनंतो पुरुषार्थ छे.
पुरुषार्थ वडे स्वरूप द्रष्टि करवाथी अने ते द्रष्टि वडे स्वरूपमां रमणता करवाथी चैतन्यमां शुद्ध क्रमबद्ध
पर्याय थाय छे, ते शुद्ध क्रमबद्ध पर्याय प्रयत्न विना थती नथी.
अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान पामे छे तेमां पण चैतन्यना वीर्यनी उग्रतानुं कारण छे, परंतु अंतर्मुहूर्तमां पण
बधी पर्याय क्रमसर ज थाय छे. कोई पर्याय आडी अवळी थती नथी, पहेलांं थवानी होय ते पर्याय पछी थाय,
अने पछी थवानी होय ते पर्याय पहेलांं थाय तेम बनतुं नथी. जेमके पहेलांं केवळज्ञान थाय अने पछी
वीतरागता थाय तेम बनतुं नथी, परंतु जे पर्याय जेम थवानी होय तेम ज थाय छे; तेम बधी पर्याय एक साथे
पण थती नथी सम्यग्दर्शननी पर्याय अने केवळज्ञाननी पर्याय वच्चे अंतर्मुहूर्तनुं आंतरूं तो पडे ज छे, परंतु
अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान थयुं ते कोईए करी दीधुं नथी; एनी मेळे काळलब्धि पाकी तेथी थयुं तेम नथी. परंतु
चैतन्यना उग्र पुरुषार्थनुं ते कार्य छे.
चैतन्यना एक क्षणना पुरुषार्थनी उग्रतामां पांचे समवाय आवी जाय छे. वस्तु उपर यथार्थ द्रष्टि थई ते
पुरुषार्थ वडे थई ते पुरुषार्थ–१. ते पुरुषार्थ वडे जे स्वभाव हतो ते पर्याय प्रगटी ते स्वभाव–२. जे वखते
पर्याय प्रगटी ते स्वकाळ एटले के काळ–३. अने पुरुषार्थ वडे जे पर्याय थवानी हती ते थई ते नियत–४. अने
स्वभाव पर्याय प्रगटती वखते जे कर्मनो अभाव थयो ते कर्म–प. चार समवाय अस्तिरूपे पोतामां आवी जाय
छे अने छेल्लुं कर्मनो अभाव ते नास्ति परिणमनरूपे पोतामां आवी जाय छे. आमां बधा सिद्धांत आवी गया.
वस्तुनी पर्याय प्रगटवामां पांच कारण होय छे ते बधामां पुरुषार्थ मुख्य छे. जेवी वीर्यनी उग्रता के
मंदता होय छे ते प्रमाणे कार्य आवे छे.
जे पुरुषार्थ करे तेने बीजा चारे कारणो आवी जाय छे, जे पुरुषार्थने स्वीकारतो नथी एने एके कारण
लागु पडता नथी.
प्रथम सम्यग्दर्शन थवामां अनंतो पुरुषार्थ छे. सम्यग्दर्शन थतां अनंतो संसार कापी नाख्यो, सम्यग्दर्शन
थ्युं त्यां अनंतु पराक्रम प्रगट्युं, द्रव्य द्रष्टि ते सम्यग्द्रष्टि छे. वस्तुद्रष्टिना जोरमां अवश्य वीतराग थवानो छे,
अवश्य केवळज्ञान लेवानो छे. वस्तुद्रष्टिना जोरमां प्रयत्न वडे स्थिर थाय छे, अने पछी–वीतराग थाय छे.
वस्तुनी पर्यायनो आधार द्रव्य छे तेमां परनो आधार नथी, एवी ज्यां द्रष्टि थई त्यां जे ठेकाणेथी
पर्याय थाय छे त्यां जोवानुं रह्युं. पर वडे मारी पर्याय थाय छे एवा रागनो विकल्प टळ्यो, वीतराग द्रष्टि थई,
अनंती पर्यायनो पिंड भरचक द्रव्य पड्युं छे तेना उपर द्रष्टि जतां विकारनी द्रष्टि टळी जाय छे, पराश्रय द्रष्टि
टळतां अंदर क्रमबद्ध पर्यायथी भरचक द्रव्य छे तेना उपर मीट मांडता पुरुषार्थ वडे क्रमबद्ध पर्याय उघडया करे
छे. उग्र वीर्य के मंद वीर्यना कारण प्रमाणे जे वखते जे पर्याय थई तेनो ते स्वकाळ छे. बीजो कोई काळ चैतन्यने
अटकावतो नथी. कोई कहेशे के कोई उग्र पुरुषार्थ करे कोई मंद पुरुषार्थ करे तेनुं शुं कारण? तेनुं कारण चैतन्यनुं
पोतानुं छे. उग्र के मंद पुरुषार्थे पोते परिणम्यो छे, पुरुषार्थने