Atmadharma magazine - Ank 013
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 17

background image
आत्मधर्मनी प्रभावना करो
: ६ : आत्मधर्म २००१ : कारतक :
उग्र करवो के मंद करवो तेमां चैतन्य पोते स्वतंत्र छे, तेमां कर्मनुं कारण नथी, कोई परनुं कारण नथी, काळनुं
कारण नथी, अकारण पारिणामीक द्रव्यने कोईनुं कारण लागु पडतुं नथी. कर्म तो निमित्त मात्र छे. पोते अकारण
पारिणामीक द्रव्य छे तेमां कोईनुं कारण लागु पडतुं नथी. कोई द्रव्य कोई द्रव्यने अटकावतुं नथी, जो अटकावे तो
द्रव्य पराधीन थई जाय.
द्रव्यमां अनंतगुणो छे अने तेनी अनंती पर्याय छे ते बधी पर्याय समय समये क्रमबद्ध थाय छे, तेवा
द्रव्य स्वभावनी श्रद्धा ते पुरुषार्थ वडे थाय छे, तेवा श्रद्धा, ज्ञान थतां पुरुषार्थ स्वभाव तरफ वळ्‌यो पराश्रय टळी
गयो, कर्मनो, काळनो, गुरुनो, देवनो अने पुस्तकनो आश्रय द्रष्टिमांथी छूटी गयो अने मारी अवस्था मारामां
मारा कारणे थाय छे. एम प्रतित थई. आत्मामां पर्याय एक पछी एक पोतामांथी थाय छे एम प्रतित थतां
परद्रव्यनो आश्रय टळ्‌यो ते पुरुषार्थ थयो, ते पुरुषार्थ द्वारा जे स्वभाव प्रगट्यो ते स्वभाव, वगेरे पांचे
समवाय एक पुरुषार्थ करतां आवी जाय छे.
पोताना द्रव्यमां बधी क्रमसर अने क्रमवार अवस्था थाय छे आडी अवळी थती नथी एम प्रतित थई
एटले दुश्मननो अने मित्रनो पराश्रय गयो. वस्तु उपर द्रष्टि जतां अनंत पराक्रम खील्युं. जेनी द्रव्य उपर द्रष्टि
छे ते वस्तुमां अने पर्यायमां भेद भाळतो नथी, वस्तु ने वस्तुनी पर्याय वच्चे भेदनो विकल्प रहेतो नथी. वस्तु
उपर द्रष्टि जतां मुक्ति क्यारे थशे तेवो आकुळता अने खेदनो विकल्प टळी जाय छे, विकल्प गयो पछी द्रव्य
अने पर्यायमां भेद भाळतो नथी; तेमां ज्ञाता द्रष्टानुं अनंतु पराक्रम आव्युं. ते ज्ञाता द्रष्टाना जोरमां स्वरूपमां
स्थिर थई मुक्तिनी पर्याय लेशे.
मोक्षनी पर्याय अने मोक्षना मार्गमां पराश्रयपणुं नथी, मारामां जे अवस्था थाय छे ते क्रमसर थाय छे
एम पराश्रय द्रष्टि टळी अने स्वाश्रय द्रष्टि थई ते अनंतो पुरुषार्थ थयो. वस्तु उपर द्रष्टि जतां मोक्ष अने
मोक्षमार्गनी पर्यायमां भेद अने विकल्प रहेतो नथी, आमां अनंतु पराक्रम छे.
भगवान आत्मामां अनंतागुणो भर्या छे तेमां दरेक समये अवस्था क्रमसर, क्रमवार, क्रमबद्ध थाय छे ते
अवस्था शरीर के पर वगेरे कोई करतुं नथी एवी स्वाश्रय द्रष्टि थई अने ओशियाळी द्रष्टि टळी गई ते अनंतो
पुरुषार्थ थयो. द्रव्य उपर द्रष्टि जतां आकुळतानो विकल्प तूटी जाय छे, अने ज्ञाता द्रष्टानी तीखाश वडे स्थिर
थई मोक्षपर्यायने पामे छे. द्रव्य उपर द्रष्टि छे एटले तेना जोरमां मुक्तिनी पर्याय झट थई जाय छे, आकुळतानो
विकल्प तूटयो एटले मुक्तिनी पर्याय झट थई जाय छे. एक बे भवमां मुक्ति लेवानो छे.
अज्ञानीने ऊंधी द्रष्टि छे त्यां पण एनी पर्याय क्रमसर थाय छे. आवुं समजाय तेने अवळाई रहे नहीं.
साची समजण थई त्यां आणे आम कर्युं अने आणे तेम कर्युं एवा परना वांक काढवा मटी गया. वस्तु सामुं
जुए तो वस्तुमां राग–द्वेष नथी. पण नवो नवो जे राग–द्वेष थाय छे ते पोताना ऊंधा पुरुषार्थ वडे थाय छे,
तेमां बीजानो वांक नथी. जीवनी क्रमबद्ध पर्यायनुं भान थ्युं एटले जडनी क्रमबद्ध पर्यायनुं पण भान थाय छे.
हवे जडनी क्रमबद्ध पर्याय कहेवाय छे.
शरीरमां रोग आववानो होय त्यारे आवे छे. शरीरमां रोग ज्यारे ज्यारे आवे ते तेनी क्रमबद्ध
अवस्था प्रमाणे ज आवे छे, तेने फेरववा कोई समर्थ नथी.
मकाननी अवस्था जेम गोठवावानी होय तेम ज गोठवाय छे, एक माळ पछी बीजो माळ, पछी त्रीजो
माळ ते क्रमसर जेम थवाना होय तेम थाय छे. आरस पथरावाना होय तो आरस पथराय अने काच
पथरावाना होय तो काच पथराय, तेनी अवस्था जेम थवानी होय तेम क्रमबद्ध थाय छे.
दूधमां क्रमवार खटाश थवानुं टाणुं हतुं त्यारे ते तेना कारणे थाय छे, कोईए खटाश करी नथी. छाश
आवी माटे खटाश थवा मांडी तेम नथी, पण ते वखते दूधमां दहींनी अवस्था क्रमसर ते थवानी हती तेथी तेने
निमित्त मळी जाय छे. दरेके दरेक परमाणु स्वतंत्र कार्य करी रह्या छे. एक परमाणुने बीजो परमाणु परिणमावी