जेमणे महातत्त्वथी भरेलो प्राभ्रतरूपी पर्वत बुद्धिरूपी शिर पर उपाडीने भव्य जीवोने समर्पित कर्यो छे. ’
खरेखर आ काळे आ शास्त्र मुमुक्षु भव्यजीवोनो परम आधार छे. आवा दुषमकाळमां पण आवुं अद्भुत
निश्चय व्यवहारनी संधिपूर्वक यथार्थ मोक्षमार्गनी आवी संकलनाबद्ध प्ररूपणा बीजा कोई पण ग्रंथमां नथी.
परमपूज्य सद्गुरुदेवना शब्दोमां कहुं तो– ‘आ समयसार शास्त्र आगमोनुं पण आगम छे; लाखो शास्त्रोनो
निचोड एमां रहेलो छे, जैन शासननो ए स्थंभ छे; साधकनी ए कामधेनुं छे, कल्पवृक्ष छे. चौद पूर्वनुं रहस्य
एमां समायेलुं छे. एनी दरेक गाथा छठ्ठा–सातमां गुणस्थाने झुलता महामुनिना आत्म–अनुभवमांथी नीकळेली
छे. आ शास्त्रना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना
समवसरणमां गया हता अने त्यां अठवाडियुं रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरश: सत्य छे, प्रमाण–सिद्ध
छे, तेमां लेशमात्र शंकाने स्थान नथी. ते परम उपकारी आचार्य भगवाने देवनी निरक्षरी “कारध्वनिमांथी
रचेला आ समयसारमां तीर्थंकर नीकळेलो ज उपदेश छे.’
छे, अने तेना ६०० उपरांत पाना छे. तेनी किंमत रू. ३–०–० छे, टुंक वखतमां आ ग्रंथ तैयार थई जशे. आ
ग्रंथनी किंमत भरीने अगाउथी ग्राहक थई शकाय छे.
(आ ग्रंथमां) आचार्यदेवे सौथी पहेलांं पंचपरमेष्ठिओने नमस्कार करीने आत्मा अने तेना गुणोना
आकुळता–रहित आत्माना परिणामने समभाव कहे छे अर्थात् रागरहित स्वरूप स्थिरता ए ज आत्मानो
स्वभाव के आत्मानो धर्म छे.
बाह्य सगवडो पामे छे, परंतु ते बाह्य सामग्रीमां आत्मानुं वास्तविक के अविनाशी सुख नथी.
भ्रम (भेद) तेना मनमांथी दूर थई जाय छे. आ भ्रांति (आत्मा अने परमात्मा वच्चेनो भेद) टळी जवाथी
करी ले छे. आत्मा अने परमात्माना (साचा ज्ञानरूप) विवेकथी ज सम्यग्ज्ञाननो विकास थाय छे.