Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : पोष : २००१ :
ए बधानो हेतु भव्य जीवोने यथार्थ मोक्षमार्ग बताववानो छे. आ शास्त्रनी महत्ता जोईने उल्लास
आवी जतां श्री जयसेन आचार्यवर कहे छे के ‘जयवंत वर्तो ते पद्मनंदी आचार्य अर्थात् कुंदकुंद आचार्य के
जेमणे महातत्त्वथी भरेलो प्राभ्रतरूपी पर्वत बुद्धिरूपी शिर पर उपाडीने भव्य जीवोने समर्पित कर्यो छे. ’
खरेखर आ काळे आ शास्त्र मुमुक्षु भव्यजीवोनो परम आधार छे. आवा दुषमकाळमां पण आवुं अद्भुत
अनन्य–शरणभूत शास्त्र–तीर्थंकरदेवना मुखमांथी नीकळेलुं अमृत–विद्यमान छे ते आपणुं महा सद्भाग्य छे.
निश्चय व्यवहारनी संधिपूर्वक यथार्थ मोक्षमार्गनी आवी संकलनाबद्ध प्ररूपणा बीजा कोई पण ग्रंथमां नथी.
परमपूज्य सद्गुरुदेवना शब्दोमां कहुं तो– ‘आ समयसार शास्त्र आगमोनुं पण आगम छे; लाखो शास्त्रोनो
निचोड एमां रहेलो छे, जैन शासननो ए स्थंभ छे; साधकनी ए कामधेनुं छे, कल्पवृक्ष छे. चौद पूर्वनुं रहस्य
एमां समायेलुं छे. एनी दरेक गाथा छठ्ठा–सातमां गुणस्थाने झुलता महामुनिना आत्म–अनुभवमांथी नीकळेली
छे. आ शास्त्रना कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव महाविदेह क्षेत्रमां सर्वज्ञ वीतराग श्री सीमंधर भगवानना
समवसरणमां गया हता अने त्यां अठवाडियुं रह्या हता ए वात यथातथ्य छे, अक्षरश: सत्य छे, प्रमाण–सिद्ध
छे, तेमां लेशमात्र शंकाने स्थान नथी. ते परम उपकारी आचार्य भगवाने देवनी निरक्षरी “कारध्वनिमांथी
रचेला आ समयसारमां तीर्थंकर नीकळेलो ज उपदेश छे.’
समयसार – पर – प्रवचनो
आ पुस्तकमां परमपूज्य सद्गुरुदेवना समयसारनी पहेली तेर गाथाओनां प्रवचनो छे, जेमां अद्भुत
शैलीथी तद्न सरळ भाषामां समयसारना शब्दे शब्दनी छणावट करीने तेनुं मूळ रहस्य समजाववामां आव्युं
छे, अने तेना ६०० उपरांत पाना छे. तेनी किंमत रू. ३–०–० छे, टुंक वखतमां आ ग्रंथ तैयार थई जशे. आ
ग्रंथनी किंमत भरीने अगाउथी ग्राहक थई शकाय छे.
प्र व च न स र
गूंथ्या पाहुड ने गूंथ्युं पंचास्ति, गूंथ्युं प्रवचनसार रे जीवजीनी वाणी भली.


(आ ग्रंथमां) आचार्यदेवे सौथी पहेलांं पंचपरमेष्ठिओने नमस्कार करीने आत्मा अने तेना गुणोना
विकासनुं वर्णन कर्युं छे. सराग चारित्र कर्मबंधनुं कारण होवाथी ते हेय छे अने विराग चारित्र मोक्षप्राप्तिनुं
साधन होवाथी ते उपादेय छे. आत्मस्वरूपनी सन्मुखनुं चारित्र तेज वस्तुनो स्वभाव होवाथी धर्म छे.
आकुळता–रहित आत्माना परिणामने समभाव कहे छे अर्थात् रागरहित स्वरूप स्थिरता ए ज आत्मानो
स्वभाव के आत्मानो धर्म छे.
शुभोपयोग अर्थात् पंचपरमेष्ठिनुं ध्यान, (विकल्पद्वारा) आत्मानुं चिंतन, व्रतनो अभ्यास अने
तपश्चरण वगेरे परिणामो थवा ते शुभ छे. तेना फळरूपे आत्मा देव अथवा मनुष्य पर्यायमां अनेक प्रकारनी
बाह्य सगवडो पामे छे, परंतु ते बाह्य सामग्रीमां आत्मानुं वास्तविक के अविनाशी सुख नथी.
शुद्धोपयोग धारण करवाथी बधा दुःख अने कलेशनो स्वयं नाश थई जाय छे. जे जीव अरिहंत
भगवानना स्वरूपने पूर्ण रीते जाणे छे ते पोताना आत्मानुं स्वरूप पण जाणी ले छे, आत्मा अने परमात्मानो
भ्रम (भेद) तेना मनमांथी दूर थई जाय छे. आ भ्रांति (आत्मा अने परमात्मा वच्चेनो भेद) टळी जवाथी
आत्मा पोते ज अर्हंतदशा (परमात्मदशा) ने पामे छे अने बधा कर्मोनो नाश करीने मोक्षनी प्राप्तिनो लाभ
करी ले छे. आत्मा अने परमात्माना (साचा ज्ञानरूप) विवेकथी ज सम्यग्ज्ञाननो विकास थाय छे.
विश्वमां जेटला द्रव्यो छे ते बधा, जुदा जुदा गुण–पर्याय सहित ज्ञेय छे; उत्पाद्–व्यय