: पोष : २००१ : आत्मधर्म : ४३ :
धु्रव (ते द्रव्यनुं लक्षण छे) तेना कारणे द्रव्यनी अवस्था दरेक समये बदलाया करे छे, अर्थात् एक अवस्थानो
व्यय थाय छे ते ज वखते बीजी अवस्थानो उत्पाद थाय छे तेथी बधी वस्तुओ पोत–पोताना गुण पर्याय सहित
पोताथी छे.
द्रव्य बे प्रकारना छे:– चेतन अने अचेतन; जीव अर्थात् चेतन ज्ञानस्वरूप छे अने अजीव अर्थात्
अचेतन ज्ञान वगरना छे; पुद्गल धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए पांच भेदो अजीव द्रव्यना छे. आ बधा
द्रव्यो (छ ए द्रव्यो) लोकाकाशमां रहेला छे. अलोकाकाशमां एक मात्र आकाश द्रव्य छे. बीजुं कोई द्रव्य त्यां
नथी. काळद्रव्य बहुप्रदेशी नथी, बाकीना पांचे द्रव्यो बहुप्रदेशी छे तेथी तेमने अस्तिकाय कहेवाय छे.
आत्मा चेतना स्वरूप छे. शुभ अने अशुभ ए बे प्रकारनो रागसहित उपयोग ते अशुद्धचेतनास्वरूप
छे; रागरहित उपयोग शुद्धरूप ज होय छे ते शुद्ध चेतनास्वरूप छे.
पोताना गुण के अवगुणना विकासनुं (अर्थात् निर्मळ पर्याय थवानुं के मलिन थवानुं) कारण आत्मा
पोते ज छे. ज्यारे रागद्वेषरूप बधा भावोथी सर्वथा जुदो थई जाय त्यारे आत्मा पोताना स्वरूपमां एकाकार
थाय छे. आत्मा पोताना स्वभावथी जाणनार छे. अने बधी वस्तुओ साथे तेने ज्ञेय–ज्ञायक संबंध छे (अर्थात्
तेना ज्ञानमां बधी वस्तुओ जणावा योग्य छे) पण कोई वस्तुनी साथे आत्माने स्वामीपणानो संबंध नथी
(एटले आत्मा कोईनो कर्ता नथी.)
• पंचास्तिकाय •
आ ग्रंथमां आचार्यदेवे १७२ गाथाओ द्वारा जीव, पुद्गल धर्म, अधर्म अने आकाश ए पांच द्रव्योने, ते
द्रव्यो हमेशां पोतपोताना अनेक गुणो अने फेरफारवाळी पर्यायमां वर्तता होवाथी अस्ति स्वभाववाळा अने
घणा प्रदेशोवाळा होवाथी कायवाळा बतावीने ते (उपर कहेला पांच द्रव्यो) ने ‘पंचास्तिकाय’ एवा नामथी
ओळखाव्या छे अने तेने उत्पाद–व्यय धु्रवने आधीन होवाथी त्रण लोकनी रचनानुं कारण सिद्ध कर्युं छे.
आ पंचास्तिकाय द्रव्यना सदा बदलवाथी काळ द्रव्यनुं होवापणुं पण नक्की थई जाय छे. ते काळ द्रव्य
असंख्यात छे. दरेक एक प्रदेशी होवाने लीधे ‘अस्तिकाय’ द्रव्योनी गणतरीमां तेने लीधुं नथी, छतां पण
प्रकरणवश जरूरियात प्रमाणे कोई कोई ठेकाणे गौण रूपथी तेनुं वर्णन करवामां आव्युं छे.
दरेक द्रव्यनी सत्ता बीजा द्रव्योनी सत्ताथी बिलकुल अलग छे.
त्यार पछी आचार्यदेवे जीव द्रव्यनी संसारी अने मुक्त अवस्थाओनुं विस्तारथी वर्णन कर्युं छे.
पुद्गल द्रव्यना परमाणुओ अने तेनो स्कंध (जथ्थो) ए वगेरेनुं कथन कर्युं छे, पछी धर्म अने अधर्म
ए बे द्रव्योनुं दृष्टांत सहित वर्णन कर्युं छे आकाश द्रव्यने लोकाकाश अने अलोकाकाश नी अपेक्षाथी समजाव्युं छे
अने काळद्रव्यनी व्याख्या पण टुंकमां करी छे.
प्रवचनसार – गुजराती
प्रवचनसारनी मूळ संस्कृत टीकाना आधारे तेनुं गुजराती भाषांतर भाईश्री हिंमतलाल जेठालाल शाह
(जेमणे समयसारनुं गुजराती अनुवादन कर्युं छे तेओ) करी रह्या छे, आ ग्रंथ कुंदकुंदभगवाननुं अलौकिकरत्न
छे. पू. सद्गुरुदेव आ ग्रंथ संबंधे कहे छे के “आ एक अपूर्व ग्रंथ तैयार थशे, बे हजार वर्षमां गुजराती
भाषामां नहि थयेलो एवो अपूर्व आ ग्रंथ तैयार थशे” वळी साथे साथे हर्षनी वात तो ए छे के श्री
हिंमतलाल भाई तेमनी अद्भुत कवित्व शक्तिनो लाभ आपी मूळगाथाओने वळगीने तेनो गुजराती
पद्यानुवाद हरिगीत छंदमां तैयार करे छे... आ–महान ग्रंथनी किंमत रूा. ३–०–० छे. अगाउथी किंमत भरी
ग्राहक थई शकाय छे.