Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : पोष : २००१ :
मोक्ष अने पुण्य, पाप ए नव तत्त्वोनुं क्रम प्रमाणे विस्तारथी कथन कर्युं छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान चारित्ररूप
रत्नत्रयीनी व्याख्या आपीने तेने मोक्षप्राप्तिनुं साधन साबित कर्युं छे.
जीव अने अजीवनो परस्पर संबंध (निमित्तपणुं) बतावीने पुण्यने शुभ अने पापने अशुभ
परिणामरूप कह्या छे, शुभभावने शुभकर्मबंधनुं अने अशुभ भावने अशुभ कर्मबंधनुं कारण बताव्युं छे; परंतु
आ शुभ अशुभ कर्मबंधथी छुटवा माटे शुभ–अशुभ बन्ने प्रकारना भावोनो समस्त प्रकारे त्याग करवानो
उपदेश आप्यो छे.
शुद्धोपयोग द्वारा परमपद (मोक्ष) तथा उत्कृष्ट अवस्था प्राप्त करीने अनंतदर्शन, अनंतज्ञान,
अनंतवीर्य, तथा अनंत सुख, ए अनंतचतुष्टयरूप पोताना स्वभावमां आत्मा स्थित थई जाय छे. अनादि
काळनी पोतानी विकारी अवस्थानो समस्त प्रकारे नाश करीने पोतानी स्वाभाविक निर्विकार अवस्थाने आत्मा
प्राप्त करे छे.
• नयमसर •
आ अध्यात्मज्ञानथी भरपूर ग्रंथमां कुल १२ अधिकार अने १८७ गाथाओ छे.
पहेलां ओगणीस गाथाना जीवाधिकारमां आचार्यदेवे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नत्रय ने ‘नियम’
कह्यो छे के जे साक्षात् मोक्षमार्ग छे. ए ज ‘सार’ पणुं छे–ए रीते ‘नियमसार’ नो अर्थ रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग
कर्यो छे.
क्षुधा, तृषा, भय, क्रोध, राग, मोह, चिंता, जरा, रोग, मृत्यु, खेद, स्वेद, मद, रति, अरति, आश्चर्य,
निंद्रा, जन्म अने आकुळता ए अढार दोषोथी रहित अने केवळज्ञान वगेरे परम ऐश्वर्य (शक्ति) सहित
परमात्मा आप्त अर्थात् पूज्य कहेवाय छे. पूर्वापर विरोध रहित शुद्ध, हितकर अने मधुर एवा आप्त वचनोने
आगम कहे छे; अने आगममां कहेला गुणपर्यायो सहित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ ए छ
द्रव्यो ज तत्त्वार्थ छे. आवा आप्त, आगम अने तत्त्वार्थनी श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे.
आ छ द्रव्योमांथी जीव द्रव्य चैतन्यस्वरूप छे. आत्माना चैतन्य गुणनी साथे वर्तवावाळा परिणामने
उपयोग कहे छे, जे (उपयोग) दर्शन अने ज्ञान एवा भेदथी बे प्रकारनो छे. अतीन्द्रिय, असहाय एवुं
केवळज्ञान ते आत्मानो स्वभाव छे. मति, श्रुत, अवधि अने मनःपर्ययज्ञान ते अपूर्ण ज्ञान छे. एज प्रमाणे
दर्शनोपयोग पण स्वभाव अने विभाव एवा भेदथी बे प्रकारनो छे. केवळदर्शन ते स्वभाव उपयोग छे अने
चक्षु, अचक्षु तथा अवधि दर्शन ते अपूर्ण दर्शनोपयोग छे.
पर्याय बे प्रकारनी छे:– (१) स्व पर अपेक्षित (२) निरपेक्ष. ते पर्यायोनुं स्वरूप बताव्युं छे.
बीजा अढार गाथाना अजीवाधिकारमां पुद्गल द्रव्यना एक छूटो परमाणु अने स्कंध एवा बे भेद कह्या
छे. पुद्गल द्रव्य आत्माना स्वरूपथी सर्वथा जुदुं छे पछी ते पुद्गल छूटो परमाणु होय के स्कंधरूप होय. तेना
लक्षे वर्ततो आत्मा अशुद्ध, विभावसहित अने विकाररूप छे–एम कह्या पछी धर्म, अधर्म, आकाश अने काळ
द्रव्योना लक्षण तथा तेना भेद अने विशेष भेदनुं वर्णन कर्युं छे.
त्रीजा अढार गाथाना शुद्धभाव अधिकारमां मोक्षार्थी जीवोने निरंतर आ प्रकारनी भावना करवानो
उपदेश आप्यो छे के:– मान, अपमान, हर्ष, विषाद, बंध, उदय, जन्म, जरा, रोग, मृत्यु, शोक, भय, कुळ, जाति,
योनि, शरीर, समास, मार्गणा, दंड, द्वंद, रागद्वेष, शल्य, मूढता विषय, कषाय, काम, मोह, गोत्र, वेद, संस्थान,
संहनन वगेरे बधा विकारोथी आ शुद्धस्वरूपी आत्मा तद्न रहित छे, ए रीते विभाव भावोथी जुदो शुद्ध
आत्मा ए ज उपादेय छे, बाकीना बाह्य तत्त्वो होय छे. आठ गुण सहित जेवा सिद्धभगवानना आत्मा
अविनाशी, निर्मळ, लोकना अग्रभागे बिराजे छे तेवा ज शुद्धस्वरूपी बधा संसारी जीवो पण निश्चयनयथी छे.
विपरीत अभिप्रायथी रहित तत्त्व श्रद्धान ते सम्यग्दर्शन छे अने संशय, मोह विभ्रमथी रहित हेय उपादेयनुं
ज्ञान ते सम्यग्ज्ञान छे.
चोथा अढार गाथाना व्यवहार चारित्र अधिकारमां ए बताव्युं छे के जीव अने अजीवना भेद विज्ञाननो
अभ्यास करवाथी वीत