Atmadharma magazine - Ank 015
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २००१ : आत्मधर्म : ४७ :
तथा विश्व स्वरूपना ज्ञाता होईशके.
जैनधर्म कोई व्यक्तिना कथन, पुस्तक, चमत्कार के विशेष व्यक्ति पर निर्भर नथी. ते तो सत्यनो अखंड
भंडार, विश्वनो धर्म छे. अनुभव तेनो आधार छे. युक्तिवाद तेनो आत्मा छे. ए धर्मने काळनी मर्यादामां केद
करी शकाय नहि. पदार्थोना स्वरूपनो ते प्रकाशक छे. त्रिकाळ अबाधित सत्यरूप छे. वस्तुओ अनादि अनंत छे.
तेथी तेनुं स्वरूप प्रकाशक तत्त्वज्ञान अने तेना सत्य ज्ञाता पण अनादि अनंत छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्य ते मांहेना एक सत्यज्ञाता छे. जैन–तत्त्वज्ञान अनादि अनंत वस्तुओनुं यथार्थ
प्रकाशक छे अने आत्माने न ओळखे ते जैन नथी एम तेमणे बेधडकपणे दांडी पीटीने जाहेर कर्युं छे. पोताने
जैनना श्रमणो होवानुं जणावे छे छतां ‘कर्म आत्माने अज्ञानी करे’ विगेरे प्रकारे कही जैनोने कर्मवादी कहे छे
तेओ श्रमणाभासो छे, तेओ तेमनी बुद्धिना अपराधथी सूत्रना साचा अर्थने नहि जाणनारा छे–एम श्री
समयसारनी गाथा ३३० थी ३४४ सुधीमां तेओ कहे छे.
वळी तेओ कहे छे के–जेओ परनुं कांईपण कार्य आत्मा करी शके छे एम मानता होय तो, तेओ जैनना
साधुओ होय तो पण, तेओ अज्ञानी ज छे, केमके तेमने अने अज्ञानीओने अपसिद्धांतनी (ऊंधा सिद्धांतनी)
समानता छे. लोक ईश्वरने कर्ता माने छे अने ते मुनिओए आत्माने परनो कर्ता मान्यो एटले बन्नेनी
मान्यता समान थई. लोकनो अने श्रमणनो परद्रव्यमां कर्तापणानो व्यवसाय सिद्ध करे छे के आ व्यवसाय
सम्यग्दर्शन रहित पुरुषोनो छे. (जुओ समयसार गाथा ३२१ थी ३२७)
हाल जेओ कुळधर्मे जैन छे एवा प्ररूपकोनो मोटो भाग जडकर्म आत्माने दुःखी करे छे एम माने छे
तथा तेमनी अने समाजनी एवी मान्यता थई गई छे के जैनधर्म कर्मवादी छे–पण आ एक महान भुल छे.
संपूर्ण स्वतंत्रतानो
ढंढेरो

१–आ जगतमां छ द्रव्यो जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आकाश अने काळ छे. आचार्यदेवे
संपूर्ण स्वतंत्रतानो ढंढेरो पीटीने एम बताव्युं छे के एकपण वस्तु बीजी वस्तुनुं कांई करी शकती नथी, तेने
बदली शकती नथी, प्रेरणा करी शकती नथी, सहाय के मदद आपती नथी एटले के दरेक द्रव्य त्रणेकाळे
त्रणलोकमां स्वतंत्र ज छे. कोईपण द्रव्य तेना गुण के पर्याय कोईपण बीजा द्रव्य तेना गुण के पर्यायने किंचित्
मात्र लाभ के नुकशान करी शके ज नहि; आवुं परम सत्य वीतराग सर्वज्ञ देव अने तेमना यथार्थ अनुयायीओ
ज जाणी–कही शके.
२–आटलुं नक्की करतां आत्माने पोता तरफ ज लक्ष करवानुं रहे छे. पोते पोताना अनंतगुणनो अखंड
समाज छे. आत्मानो समाज (पछी ते ज्ञानदशामां होय के अत्यंत अज्ञानदशामां होय तो पण) त्रणेकाळ
आत्मामां ज अखंडपणे रहे छे. आत्मानो समाज आत्मानी बहार होई शके ज नहि, माटे आत्माना
शुद्धभावनुं सेवन ते एक ज खरी समाज सेवा छे. कोई परनुं तो करी शकतुं नथी, पछी ते परनी सेवा केम करी
शके? न ज करी शके. आत्मा जो पर उपर लक्ष करे के पोतानी अपूर्ण के विकारी अवस्था तरफ लक्ष करे तो तेने
विकार थया विना रहे नहि अने जो पोताना त्रिकाळी अखंड ज्ञायक स्वभाव तरफ लक्ष करे तो तेने शुद्धता
प्रगट्या विना रहे ज नहि. आत्माए पोताना त्रिकाळी ज्ञायक स्वभाव (निश्चयनय) नुं तथा पोतानी वर्तमान
विकारी–अपूर्ण अवस्था (व्यवहारनय) नुं ज्ञान करी पोताना त्रिकाळी ज्ञायक धु्रव स्वभाव (निश्चयनय) ने
आदरणीय मानी ते तरफ वळतां, ते धु्रव स्वभाव (निश्चयनय) ना आश्रये शुद्धता प्रगटे छे एम जणाव्युं छे.
३–एक जीव बीजा जीवनुं के जडनुं–शरीर–मकान–गाम के क्षेत्रनुं कांई करी शकतो नथी, छतां