करी शकाय नहि. पदार्थोना स्वरूपनो ते प्रकाशक छे. त्रिकाळ अबाधित सत्यरूप छे. वस्तुओ अनादि अनंत छे.
तेथी तेनुं स्वरूप प्रकाशक तत्त्वज्ञान अने तेना सत्य ज्ञाता पण अनादि अनंत छे.
जैनना श्रमणो होवानुं जणावे छे छतां ‘कर्म आत्माने अज्ञानी करे’ विगेरे प्रकारे कही जैनोने कर्मवादी कहे छे
तेओ श्रमणाभासो छे, तेओ तेमनी बुद्धिना अपराधथी सूत्रना साचा अर्थने नहि जाणनारा छे–एम श्री
समयसारनी गाथा ३३० थी ३४४ सुधीमां तेओ कहे छे.
समानता छे. लोक ईश्वरने कर्ता माने छे अने ते मुनिओए आत्माने परनो कर्ता मान्यो एटले बन्नेनी
मान्यता समान थई. लोकनो अने श्रमणनो परद्रव्यमां कर्तापणानो व्यवसाय सिद्ध करे छे के आ व्यवसाय
सम्यग्दर्शन रहित पुरुषोनो छे. (जुओ समयसार गाथा ३२१ थी ३२७)
१–आ जगतमां छ द्रव्यो जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आकाश अने काळ छे. आचार्यदेवे
बदली शकती नथी, प्रेरणा करी शकती नथी, सहाय के मदद आपती नथी एटले के दरेक द्रव्य त्रणेकाळे
त्रणलोकमां स्वतंत्र ज छे. कोईपण द्रव्य तेना गुण के पर्याय कोईपण बीजा द्रव्य तेना गुण के पर्यायने किंचित्
मात्र लाभ के नुकशान करी शके ज नहि; आवुं परम सत्य वीतराग सर्वज्ञ देव अने तेमना यथार्थ अनुयायीओ
ज जाणी–कही शके.
आत्मामां ज अखंडपणे रहे छे. आत्मानो समाज आत्मानी बहार होई शके ज नहि, माटे आत्माना
शुद्धभावनुं सेवन ते एक ज खरी समाज सेवा छे. कोई परनुं तो करी शकतुं नथी, पछी ते परनी सेवा केम करी
शके? न ज करी शके. आत्मा जो पर उपर लक्ष करे के पोतानी अपूर्ण के विकारी अवस्था तरफ लक्ष करे तो तेने
विकार थया विना रहे नहि अने जो पोताना त्रिकाळी अखंड ज्ञायक स्वभाव तरफ लक्ष करे तो तेने शुद्धता
प्रगट्या विना रहे ज नहि. आत्माए पोताना त्रिकाळी ज्ञायक स्वभाव (निश्चयनय) नुं तथा पोतानी वर्तमान
विकारी–अपूर्ण अवस्था (व्यवहारनय) नुं ज्ञान करी पोताना त्रिकाळी ज्ञायक धु्रव स्वभाव (निश्चयनय) ने
आदरणीय मानी ते तरफ वळतां, ते धु्रव स्वभाव (निश्चयनय) ना आश्रये शुद्धता प्रगटे छे एम जणाव्युं छे.