: ४० : आत्मधर्म : पोष : २००१ :
जैन शास्त्रोना अथर् करवानी पद्धित
जैन शास्त्रोमां वस्तुनुं स्वरूप समजाववाना बे प्रकार छे. निश्चयनय अने व्यवहारनय.
(१) निश्चयनय एटले के:– वस्तु सत्यार्थपणे जेम होय तेमज कहेवुं ते; एटले निश्चयनयनी मुख्यताथी
ज्यां कथन होय त्यां तेनो तो सत्यार्थ एम ज छे एम जाणवुं. अने
(२) व्यवहारनय एटले के:– वस्तु सत्यार्थपणे तेम न होय पण पर वस्तु साथेनो संबंध बताववा
माटे कथन होय–जेम के ‘घीनो घडो’ ते घीनो नथी पण माटीनो छे, छतां बन्ने एक जगोए रहे छे तेटलुं
बताववा तेने ‘घीनो घडो’ कहेवामां आवे छे. एवी रीते ज्यां व्य्वहारनयथी कथन होय त्यां खरेखर तेम नथी
पण निमित्तादि बताववा माटे ते उपचारथी कथन छे, एम समजवुं.
बन्ने नयोना कथनने सत्यार्थ जाणवुं एटले के ‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’ एम
मानवुं ते भ्रम छे. माटे निश्चय कथनने सत्यार्थ जाणवुं अने व्यवहार कथनने सत्यार्थ न जाणवुं पण निमित्तादि
बतावनारुं ते कथन छे एम समजवुं.
आ प्रमाणे बन्ने नयोना कथननो अर्थ करवो ते बन्ने नयोनुं ग्रहण छे. बन्ने ने आदरवा लायक
गणवा ते भ्रम छे. सत्यार्थ ने ज आदरवा–लायक गणवुं जोईए. (मोक्षमार्ग प्रकाशक–पा. २५६ ना आधारे)
नय=ज्ञाननुं पडखुं. निमित्त=हाजररूप अनुकुळ परवस्तु.
मुख्य, बहिरतत्त्व गौण प्रतिपादन करवा अर्थे अथवा शिवकुमारादि संक्षेप रूचि शिष्यना प्रतिबोधन
अर्थे पंचास्तिकाय प्राभ्रत शास्त्र रच्युं”
सातमे अने छठ्ठा गुणस्थाने बीराजता आ बन्ने महान आचार्यो हता एटले तेमनुं कथन संपूर्ण
विश्वासनिय छे. भगवान कुंदकुंदाचार्यने चारण ऋद्धि हती एम चंद्रगिरी अने विंध्यगीरी उपरना शीलालेखो
उपरथी जाणी शकाय छे.
वर्तमान पौद्गलिक विज्ञान अने विमानयंत्रोना युगमां आध्यात्मिक विज्ञान अने ऋधिधारीओनी
शक्तिथी अपरिचित जीवो पोताना ज्ञानना गजथी माप करे तो तेमने आ बनाव न पण समजाय पण
चारणऋद्धि जेवी असाधारण शक्ति धरावनार महात्मा विदेहक्षेत्रनी दुर्गमयात्रा करी ले ए तेमने माटे एक
साधारण कार्य छे. ऋद्धिधारीओ माटे सुदुरवर्ती क्षेत्रोमां स्वयं या कोई आकाशगामी व्यक्ति साथे जवाने माटे
मार्गनी विषमता के दुर्गमता जरापण बाधक थती नथी.
भगवान कुंदकुंदाचार्ये बनावेलां शास्त्रोमां पोतानुं नाम कर्ता तरीके (बार अनुप्रेक्षा सिवाय) कोई
ठेकाणे आप्युं नथी तेमज तेमना गुरु के संघनुं नाम पण आप्युं नथी. आत्मलीन पुरुषो ए बाह्य वस्तुओने
गौण करे ए न्यायसर छे अने तेथी भगवान कुंदकुंद आचार्ये पोतानी आ विदेहगमन यात्रा पण जणावी नथी.
पण तेमणे बनावेला शास्त्रोमां “सर्वज्ञ वीतराग देव कहे छे के” एम जणावी घणे ठेकाणे पोताना कथनने
वीतराग देवनी साक्षीथी द्रढ कर्युं छे. अने श्री प्रवचनसारनी ३जी गाथामां विदेह क्षेत्रना वर्तमान तीर्थंकर देवोने
नमस्कार कर्यो छे तथा श्रुतकेवळी भद्रबाहुना तेओ अनुयायी (परंपरा) शिष्य छे एम अष्ट पाहुडमां जणावी
नमस्कार कर्या छे ए लक्षमां राखवा योग्य छे.
तेमनां बनावेलां शास्त्रो
भगवान कुंदकुंदाचार्यना बनावेलां अनेक शास्त्रो छे जेमांथी थोडाक हालमां विद्यमान छे. त्रिलोकनाथ
सर्वज्ञदेवना मुखमांथी वहेली श्रुतामृतनी सरितामांथी भरी लीधेलां ते अमृत भाजनो हालमां पण अनेक
आत्मार्थीओने आत्म जीवन अर्पे छे. हाल तेमना जे शास्त्रो विद्यमान छे तेनां नाम नीचे मुजब छे.
(१) समयसार (२) प्रवचनसार (३) पंचास्तिकाय (४) नियमसार (५) अष्टपाहुड (६)
दशभक्ति आदि. आ बधां शास्त्रो उत्तम प्रकारनां छे अने तेमां सर्वोत्तम श्री समयसार छे.
बनावुं पत्र कुंदनना, रत्नोना अक्षरो लखी;
तथापि कुंदसूत्रोनां अंकाये मूल्य ना कदी.