Atmadharma magazine - Ank 016
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २००१ आत्मधर्म : ५७ :
१४. आ प्रमाणे श्रीमदे जणावेला १२ मुदओमांथी नं–६–७–११–१२ मुदओ विशेषपणे पुष्ट थया छे
एम तटस्थ विचारकने लाग्या विना रहेशे नहीं.
त्त्ज्ञ ि
१प. उपरना कथननो अर्थ एवो नथी के तत्त्वज्ञानना रसिकजनो कोई छे ज नहीं. वीतरागनुं शासन पांचमा
आराना छेडा सुधी रहेवानुं छे. पांचमो आरो २१००० वर्षनो छे. तेमां हजु २प०० वर्ष मात्र थयां छे तेथी वीतरागी
धर्मने समजवानी रुचिवाळा जीवो होवा ज जोईए. एटले आ बाबतमां शुं शुं थयुं छे ते हवे आपणे जोईए.
१६. श्रीमद् राजचंद्रे गुजरात काठियावाडमां जैनसमाजने अध्यात्म समजाव्युं अने अध्यात्मना प्रचार
अर्थे ‘श्री परमश्रुत प्रभावक मंडळ स्थाप्युं. ’ ए रीते जन समाज उपर (मुख्यत्वे गुजरात काठियावाड पर)
तेमनो महान उपकार वर्ती रह्यो छे.
१७. श्री परम श्रुत प्रभावक मंडळ तरफथी श्री कुंदकुंदाचार्ये बनावेला परमागमो श्री समयसार,
प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, श्री योगीन्द्र देवकृत श्री परमात्मा प्रकाश, श्री उमास्वामीकृत तत्त्वार्थ सुत्र, श्री
अमृतचंद्र आचार्य कृत पुरुषार्थ सिद्धिउपाय, श्री नेमीचंद सिद्धांत चक्रवर्ती कृत द्रव्यसंग्रह, गोमटसार विगेरे ग्रंथो
हींदी भाषामां प्रगट कर्या; अने ‘श्रीमद् राजचंद्र’ गुजरातीमां प्रगट कर्युं.
१८. कलकत्ता अने बीजा स्थळोएथी अर्थ प्रकाशिका, समाधिशतक, सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, रत्नकरंड
श्रावकाचार, नियमसार अने अष्टपाहुड, समयसार नाटक, मोक्षमार्ग प्रकाशक, जैनसिद्धांत प्रवेशिका, जैनसिद्धांत
दर्पणादि अनेक तत्त्वना ग्रंथो हींदी भाषामां प्रगट थयां.
१९. गुजरात काठियावाडना जैनधर्मना जुदा जुदा फीरकाना संघोए आ पुस्तको (अगर तेमांना
केटलाक) तेमनी लाईब्रेरी माटे खरीद कर्यां तेमज गुजरात काठियावाडना केटलाक जैनोए पण ते खरीद कर्यां.
लोकोना हाथमां आ साहित्य आवतां केटलाके तेनुं वांचन कर्युं. अने ते उपरथी तत्त्वने लगता प्रश्नो उठवा
लाग्या. तेमज तटस्थवृत्तिना जीवो तेमां रस लेवा लाग्या. ए रीते गुजरात काठियावाडमां अध्यात्म रसनां जे
बीज श्रीमदे वाव्यां हतां ते उगता देखावा लाग्यां.
एक पवित्र प्रसंग
२०. संवत १९७८ मां श्री वीरशासनना उद्धारनो, अनेक मुमुक्षुओना महान पुण्योदयने सूचवतो एक
पवित्र प्रसंग बन्यो. कोई धन्य पळे श्रीमद् भगवत्कुंदकुंदाचार्य कृत श्री समयसार नामनो महान ग्रंथ
परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीना हस्त कमळमां आव्यो;
समयसार वांचतांज तेमना हर्षनो पार
न रह्यो. जेनी शोधमां तेओ हता ते तेओने मळी गयुं. (श्वेतांबर आगमो तेनी टीकाओ अने ग्रंथोनो अभ्यास
ते पहेलांं तेओए कर्यो हतो.) श्री समयसारजीमां अमृतनां सरोवर छलकातां महाराजश्रीना अंतर नयने
जोयां. एक पछी एक गाथा–टीका वांचतां घुंटडा भरी भरीने ते अमृत पीधुं. ग्रंथाधिराज समयसारजीए
महाराजश्री पर अलौकिक अनुपम उपकार कर्यो. अने तेमना आत्मानंदनो पार न रह्यो. महाराजश्रीना
अंतर्जीवनमां परमपवित्र परिवर्तन थयुं. भुली पडेली परिणतिए निजघर देख्युं, उपयोग झरणानां
वहेण अमृतमय थयां; जिनेश्वर देवना सुनंदन गुरुदेवनी ज्ञानकळा हवे अपूर्व रीते खीलवा लागी.
अध्यात्म – ज्ञानी प्रभावना
२१. परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनुं चातुर्मास सां १९९० मां राजकोट सदरमां हतुं. ते
वखते तेओए श्री समयसारनी शरूआतथी ९९ गाथा सुधीनो अर्थ–तेमनी मधुर अने बाळ गोपाळने समजाय
तेवी घरगथ्थु भाषामां समजावी तेना अति गहन आशयो प्रगट कर्या, त्यारथी समाजनी अध्यात्म वृत्ति
जागृत थवा लागी.
२२. सां १९९० नुं चातुर्मास पूरुं थतां तेओश्री जामनगर पधार्या. त्यां श्री समयसारनुं व्याख्यान चालु
रह्युं. ए रीते काठियावाडमां अध्यात्मनो प्रचार चालवा लाग्यो. जैनधर्मना तत्त्वने लगती तेओश्रीनी मान्यता
बदलेली होवाथी तेओए सं. १९९१ ना चैत्र सु. १३ना पवित्र दिवसे स्थानक संप्रदायनो त्याग सोनगढ
मुकामे कर्यो. तेओश्रीनो मुख्य निवास सोनगढमां ज छे. सां १९९प मां दसमास सुधी अने सां १९९९ मां
लगभग नव मास तेओश्री राजकोट सदरमां बीराज्या हता. ते वखत तथा विहारनो काळ बाद करतां बाकीनो
वखत तेओश्री सोनगढमां ज रही छेल्ला दश वर्षथी काठियावाडमां वीतराग