: ५६ : आत्मधर्म २००१ : माह :
६. जैनधर्म ए कांई वाडो नथी छतां तेना अनुयायीओए धर्मने नामे वाडाओ उभा कर्या अने तेने
समर्थन आपवा माटे संप्रदायोनी परिषदो (conferences) भरावा लागी. ते परिषदोए पोतानुं लक्ष मुख्यपणे
(धार्मिक बनाववाने बदले) सामाजीक सुधारा तरफ राख्युं. लौकिक केळवणी माटे पण प्रचार अने फंडो थया
पण ते केळवणीमां वीतरागी विज्ञान विरूद्ध केटलुं शीखववामां आवे छे, ते जाणवानी दरकार करी नहीं.
परिणामे धर्म उपरनी बाह्यश्रद्धा पण लगभग नष्ट थई. परिषदना संचालकोनुं श्रीमद् राजचंद्रना नीचेनां
अमूल्य कथन उपर पण लक्ष न रह्युं.
गच्छ मतनी जे कल्पना ते नहीं सद् व्यवहार भान नहि निज रूपनुं ते निश्चय नहीं सार. १३३.
७. केळवणीना प्रचारना ठरावोनो अमल बराबर नहीं थतो होवानी फरियाद चालु रही अने समाज
सुधाराना बीजा ठरावो मात्र कागळ उपर रह्या.
८. सां. १९७४ मां आ देशमां ईन्फल्युएन्झा तावनी महा बीमारी आवी त्यारे समाज सेवा मंडळो (social
service laegues) शरू थयां अने सेवा तरफ जनसमाजनुं वलण थयुं. सां १९८७ थी राजकीय हिलचाले समाजना
हृदयमां प्रवेश कर्यो त्यारथी युवक वर्ग राष्ट्रसेवा, देशसेवा, समाज सेवा तरफ वळ्यो अने ते लौकिक कार्योने धर्मना
नामथी तेओ संबोधवा लाग्या. तेने तेओ राष्ट्रधर्म, देशधर्म, समाजधर्म एवां नवां नामो आपवा लाग्या.
९. आ हिलचालनी असर जेओ कुळधर्मथी जैनो छे तेने थया विना न रहे ए देखीतुं छे. ते हिलचालमां
‘अहिंसा’ ने स्थान आपवामां आव्युं छे एम जैनोने लागतां ते तरफ जैन समाज प्रेरायो. तेनुं परिणाम ए
आव्युं के:– जैन समाजनो केटलोक भाग ‘राष्ट्रधर्म’ ए ज वीतराग धर्म छे अथवा तेनो एक भाग छे एम
समजवा लाग्यो. परिणामे वीतराग–विज्ञानथी समाज विशेष दूर थयो.
१०. आ हिलचालने अंगे जैन युवक संघो स्थपाया. अने तेनो मुख्य कार्यक्रम समाज सुधारणा तेमज
समाज सेवानो रह्यो. ए प्रवृत्तिने धर्मनुं नाम आपी टेको आपवा माटे पुस्तको अने वर्तमान पत्रो प्रगट थयां;
तेमां तीर्थंकर भगवानोना चरित्रोमांथी तेमना कार्यक्रमने टेको मळे छे अने ते ज खरो जैनधर्म छे एवी
मतलबना लेखो आववा लाग्या.
११. समाज मुख्यपणे तत्त्वज्ञानथी रहित हतो अने तेने प्रिय लागतां कार्यो जैनधर्मने अनुकूळ छे एवा
लेखो वांचवा मळतां, पोते जैनधर्मना खरा अनुयायी छे एवी भ्रमणारूप मान्यता तेमनामां पेदा थई अने ते
द्रढ थई. तेओनी परीक्षा लेवामां आवे अने तेमां छ द्रव्योनां नाम शुं, पंचास्तिकायना नामो शुं, नव तत्त्वना
नामो शुं, सामायिक, प्रतिक्रमण, प्रत्याखान तप, क्रिया, विगेरेना खरा अर्थ शुं छे ते सवालो पुछया होय तो
तेनुं परिणाम लगभग शुन्यवत् आवे. ए प्रमाणे तत्त्वज्ञानना अजाणपणानी दशा होय त्यां निश्चयनय
अने व्यवहारनयना खरा अर्थनी खबर तो क्यांथी ज होय ते सहेजे कल्पी शकाय छे.
एक विचित्रता.
१२. संसारने लगता बधा धंधामां जेणे जे धंधानो पाको अभ्यास कर्यो होय ते ज तेने लगता लेखो
वर्तमानपत्रोमां लखे. जेमके वैदकशास्त्र उपर कोई वकील लेख न लखे; पण धर्मनुं क्षेत्र लोकोए एवुं मान्युं छे
के–गमे ते व्यक्ति, पछी ते तत्त्वज्ञानथी वंचित होय तो पण धर्म विषय उपर लेखो लखी शके अने ते लेखक
समाजमां कांईक प्रतिष्ठित होय तो तेनुं कथन आधारभूत मनाय. वळी एम पण मानवामां आवे छे के–आवी
चर्चाथी सत्य शुं छे तेनुं शोधन थई शके. आ मान्यता साची होय तो तेनो अर्थ ए थाय छे के धर्मने लगता
लेखो माटे ते विषयना खास अभ्यासनी जरूर नथी, अने धर्म तो जाणे साव फोगटियो ज छे!
१३. गृहस्थ समाजनी आ दशा छे त्यारे त्यागी समाजनी स्थिति शुं छे ते आपणे जोईए. केटलाक
संप्रदायोमां त्यागीओनी संख्या वधारवा तरफ खास ध्यान अपातुं होवानी फरियादो थवा लागी. युवक समाज
अने त्यागी समाज तथा तेने टेको आपनारा गृहस्थ समाज वच्चे घर्षण उत्पन्न थवा लाग्युं. त्यागीओ वच्चे
बाह्य बाबतोमां तीव्र कलेशरूप मतभेद उत्पन्न थवा लाग्या. तेने अंगे वर्तमान पत्रोमां खूब जोरथी सामसामा
आक्षेपो करवामां आवे छे. परिणामे साधु समाजनी संख्यामां वधारो थयो होय तोपण, अनेक कारणोए ते
समाज तत्त्वज्ञानथी मुख्यपणे वंचित रहेल छे. केटलाक त्यागीओ समाजने अनुकुळ विषयोने धर्मनुं स्वरूप
मनावे छे अने केटलाक उपदेशको कहे छे के–आ काळ धर्म पामवा माटे लायक नथी; छतां तेओ साधुओनी संख्या
वधारता ज जाय छे.