: माह : २००१ आत्मधर्म : ५५ :
आत्मधर्मनी शरूआतथी ज चालु अंकोमां आपवा धारेली मोक्षनी क्रियानी लेखमाळा आजे मोक्षनी क्रियाना नामथी
पुस्तक रूपे प्रगट थाय छे.
आ पुस्तकनी प्रस्तावनामां वर्तमान जैन समाज तथा वीतराग मार्गनी शी स्थिति छे तेमज जैन धर्म तथा मोक्षनी
क्रिया माटे केवी विचित्र मान्यताओ घर करी (रूढ थई) गई छे ते स्पष्ट अने सहेली भाषामां सरळ रीते समजावेलुं छे.
वळी आवी विषम परिस्थितिमां पण गुजरात काठियावाडमां अध्यात्म ज्ञाननो कई रीते फेलावो थयो छे ते सविस्तर
जणावेलुं छे. उपरांत आ पुस्तकमां रजु करेला विषयो अने मुमुक्षु जीवोए खास लक्षमां राखवा योग्य बाबतो दर्शावेली छे,
एथी मोक्षनी क्रियानी प्रस्तावना आत्मधर्मना वांचको मनन पूर्वक वांचे एवी विनंति छे.
अनादिथी संसारी जीवे नथी करेल ते मोक्षनी िक्रया
लेखक: रामजी माणेकचंद दोशी
श्री सर्वज्ञ वीतरागाय नमः । “। श्री सद्गुरुदेवाय नमः
– : प्रस्तावना : –
१. आ ग्रथं तैयार करवानो हेतु जणावतां पहेलांं जैन समाजनी परिस्थिति जाणवानी जरूर छे तेथी ते अहीं प्रथम
कहेवामां आवे छे.
सां. १९प२–प४ नी परिस्थिति
२. श्रीमान समीप समयवर्ती समयज्ञ श्रीमद्राजचंद्र कहे छे के:– हाल जैनमां घणो वखत थयां अवावरू कूवानी माफक आवरण
आवी गयुं छे; कोई ज्ञानी पुरुष छे नहीं. केटलोक वखत थयां ज्ञानी थया नथी केमके नहीं तो तेमां आटला बधा कदाग्रह थई जात नहीं.
(जुओ श्रीमद् राजचंद्र पा. प२९)
(१) आश्चर्यकारक भेद पडी गया छे. (२) खंडित छे. (३) संपूर्ण करवानुं कार्य दुर्गम्य लागे छे. (४) ते प्रभावने
विषे महत अंतराय छे. (प) देशकाळादि घणा प्रतिकूळ छे. (६) वीतरागोनो मत लोक प्रतिकूळ थई पड्यो छे. (७)
रूढीथी जे लोको तेने माने छे तेना लक्षमां पण ते प्रतीत जणातो नथी. अथवा अन्य मतने वीतरागनो मत समजी
प्रवर्त्ये जाय छे. (८) यथार्थ वीतरागोनो मत समजवानी तेमनामां योग्यतानी घणी खामी छे. (९) द्रष्टिरागनुं प्रबळ राज्य
वर्ते छे. (१०) वेषादि व्यवहारमां मोटी विटंबना करी मोक्षमार्गनो अंतराय करी बेठा छे. (११) तुच्छ पामर पुरुषो
विराधक वृत्तिना धणी अग्रभावे वर्ते छे. (१२) किंचित् सत्य बहार आवतां तेमने प्राणघात तुल्य दुःख लागतुं होय
तेम जणाय छे. (जुओ श्रीमद् राजचंद्र पा. ७०२)
३. श्री आत्मसिद्धि शास्त्रमां तेओ नीचे प्रमाणे कहे छे के:–
वर्तमान आ काळमां मोक्षमार्ग बहुलोप विचारवा आत्मार्थीने भाख्यो अत्र अगोप्य. २.
४. आ उपरथी सिद्ध थाय छे के (१) ते वखते मोक्षमार्गना जाणनारा बहु लोपरूप हता. (२) रूढीथी जेओ तेने
मानता तेने वीतराग धर्मनी प्रतीति (साची मान्यता) नहोती. (३) अन्यमतने वीतरागनो मत समजी तेओ प्रवर्तता.
त्यार पछीथी हाल सुधीनी परिस्थिति
प. आ देशमां त्यारपछी अंग्रेजी केळवणीनो घणो प्रचार थयो अने जीवन निर्वाह चलाववानां साधनो तंग थतां ते
मेळववामां लोको पोतानो मोटो भाग गाळवा लाग्या एटले वीतरागी तत्त्वज्ञानथी समाजनुं लक्ष विशेष दूरदूर थवा लाग्युं अने
चालती धर्मरूढीओ प्रत्ये केळवणी पामेला लोकोना मोटा भागने अरुचि थती चाली.
– : अर्पण : –
परम पूज्य परम उपकारी शासनोद्धारक अध्यात्म योगी श्री कानजी स्वामीनी परम पवित्र सेवामां
आपश्रीए आ पामर पर परम उपकार कर्यो छे. आपश्री वीतराग धर्मनी महा प्रभावना करी रह्या छो. अनंत
वीतरागोए कहेल मोक्षमार्ग शुं छे अने ते पामवानी खरी क्रिया शुं छे ते आप आ भरत भूमिमां आपनी श्रुत
गंगाना धोधमार प्रवाह द्वारा मुमुक्षु जीवोने प्रत्यक्ष समजावी रह्या छो. भगवाने कहेली क्रिया नुं आप स्थापन करी
रह्या छो. आपनो पवित्र उपदेश सांभळी अनेक जीवो पावन थया छे अने थता जाय छे तेथी ‘मोक्षनी क्रिया’ नुं आ
लघु पुस्तक अत्यंत भक्तिभावे आपश्रीने अर्पण करी आपना पवित्र चरण कमळमां रजु करुं छुं.
आपनो दासानुदास रामजी