: ५८ : आत्मधर्म २००१ : माह :
देवना तत्त्वज्ञाननो अृमत वरसाद धोधमार वरसावी रह्या छे अने तेनो लाभ अनेक मुमुक्षुओ लई रह्या छे.
आ ग्रंथनी तैयारी
२३. घणा मुमुक्षुजीवो अध्यात्म ज्ञानमां रस लेता थया तेथी धर्मनी खरी क्रिया शुं छे ते जाणवा तेमनी ईन्तेजारी
वधी. केटलाक उपदेशको शरीर–जडनी क्रियाथी धर्म थाय एम समजावी रह्या हता. लोको जे सामायक, प्रतिक्रमण,
पचखाण, तप, उपवास, दान, भक्ति, देवदर्शन, पूजा विगेरे करे छे ते ज भगवाने कहेली क्रिया छे अने ते करतां करतां
हळवे हळवे धर्म थशे एम समजाववा लाग्या. कुळ धर्मना गुरु जे कांई कहे ते मानी लेवानी टेव सांप्रदायिक
मनोवृत्तिवाळा जीवोमां होय छे तेथी ए क्रियाथी पोतानो उद्धार थई जशे एवी भ्रमित मान्यता तेओ सेव्या करे छे.
२४. केटलाक उपदेशको तो एम कहे छे के–अमे हाल चालती क्रियाना महा उपासक छीए. तेना अमे
उपदेशक छीए. लोको आ काळे धर्म समजी शके नहि माटे तेओ जेवी रीते क्रियाओ कर्या करे छे तेम तेओए कर्या
करवी. आवी रीते तेओ मूढताने पोषे छे. जो आ काळमां जीव धर्म पाळी शके नहीं तो तेओ साचा उपदेशको के
त्यागी शी रीते गणाय? धर्मने लायक काळ न होय तो दीवसे दीवसे साधुओनी संख्या वधारवाथी शुं लाभ छे?
आ काळे जीव धर्म न पामी शके तो तेओ खरी साधु दिक्षा शी रीते लई शके अने खरा साधु केम थई शके?
२प. आवी परिस्थितिमां केटलाक मुमुक्षुभाईओ ‘वीतरागदेवे परूपेली क्रिया कई छे तेने लगतुं एक
पुस्तक लखाय तो सारूं’ एम कहेवा लाग्या, तेमनी भावना व्याजबी लागतां परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री
कानजी स्वामीना मुखकमळथी नीकळती श्रुतगंगामांथी जे कांई आ संबंधमां हुं ग्रहण करी शक्यो छुं ते में आ
ग्रंथमां जणावेल छे. तेमां वीतराग विज्ञान अनुसार कथन करवा में काळजी राखी छे.
२६. आ ग्रंथमां नीचेना विषयो लेवामां आव्या छे:–
(१) ज्ञान क्रियाभ्याम मोक्ष. (२) ज्ञप्ति क्रिया (३) करोति क्रिया (४) मोक्षने कातरनारी क्रिया (प) कु
सामायिक क्रिया, सु सामायिक क्रिया. (६) कु प्रतिक्रमण–सु प्रतिक्रमण. (७) साचुं प्रत्याख्यान (पच्चखाण)
(८) साचुं तप (९) साची गुप्ति समिति (१०) धर्म–अनुप्रेक्षा, परिषहजयनुं स्वरूप (११) भक्ति (१२)
प्रशस्त दान, शील, तप, भाव (१३) देहदमन, ईन्द्रिय निग्रहनो खरो अर्थ (१४) मोक्षमार्गमां ज्ञान अने
क्रियाना केटला केटला टका. (१प) जीवे प्रथम शुं करवुं (१६) निमित्त परद्रव्यने कांई करी शके नहीं (१७)
निश्चय–व्यवहारनुं स्वरूप (१८) जीवनी अनादिथी चाली आवती भूलो, (१९) जीवना अनादिना सात
व्यसनो ए विगेरे विषयो लेवामां आव्या छे.
वांचकोने विनंति
२७. मुमुक्षुओने नीचेनी बाबतो खास लक्षमां राखवा विनंति छे:–
(१) सम्यग्दर्शनथी ज धर्मनी शरूआत थाय छे.
(२) सम्यग्दर्शन पाम्या सिवाय कोईपण जीवने साचां व्रत, सामायिक, प्रतिक्रमण, तप, प्रत्याखान
विगेरे होय नहीं. केमके ते क्रिया, प्रथम पांचमे गुणस्थाने शुभभाव रूपे होय छे.
(३) शुभभाव ज्ञानी अने अज्ञानीने बन्नेने थाय छे पण अज्ञानी तेनाथी धर्म थशे एम माने छे अने
ज्ञानी (ते हेय बुद्धिए होवाथी) तेनाथी कदी धर्म थाय नहीं एम माने छे.
(४) आ उपरथी शुभभाव करवानी ना पाडवामां आवे छे एम समजवुं नहीं पण तेने धर्म मानवो
नहीं के तेथी क्रमे क्रमे धर्म थशे एम मानवुं नहीं. केमके अनंत वीतरागोए तेने बंधनुं कारण कह्युं छे.
(प) एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहीं, परिणमावी शके नहीं, प्रेरणा करी शके नहीं, असर,
मदद के उपकार करी शके नहीं, लाभ नुकशान करी शके नहीं, मारी जीवाडी शके नहीं, सुख दुःख आपी शके नहीं
एवी दरेक द्रव्य–गुण पर्यायनी संपूर्ण स्वतंत्रता अनंत ज्ञानीओए पोकारी पोकारीने कही छे.
(६) जिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलांं सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय; हवे सम्यक्त्व तो
स्व–परनुं श्रद्धान थतां थाय छे, तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय छे; माटे पहेलांं
द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थवुं.
(७) पहेले गुणस्थाने जिज्ञासु जीवोने शास्त्रनो अभ्यास, वांचन मनन, ज्ञानी पुरुषनो धर्मोपदेश
सांभळवो, निरंतर तेमना समागममां रहेवुं, देव दर्शन, पूजा, भक्ति, दान वगेरे शुभ भावो होय छे. परंतु
पहेले गुणस्थाने साचां व्रत, तप वगेरे होतां नथी.