माटे? तेवी ज रीते सूवामां पण छ, आठ के दस कलाक ऊंघशे पछी तेने सूवुं नहि गमे, कोईने प्रशंसा सांभळवी
गमती होय पण अमुक वखत पोतानां वखाण सांभळीने तेने ज कंटाळो आवी जशे. केमके एमां क्यांय खरेखर
सुख छे ज नहीं. जो संसारी कोई पण कार्योमां सुख होत तो ज्ञाननो उपयोग त्यांथी फेरवत शा माटे? सुखथी
कोई छूटवा मागे नहि. संसारमां सुख नथी तेथी ज त्यांथी उपयोगने पाछो फेरवे छे. संसारना कोई कार्योमां
उपयोग लांबो वखत टकी शकशे नहि अने आत्मामां सुख ने आनंद ज छे तेथी आत्मामां ज्ञाननो उपयोग
एकाग्र थाय छे तेने कोई फेरववा मागतुं नथी. कोई पण पर वस्तु उपर लक्ष जाय त्यां कंटाळो आवी जाय छे
तेथी उपयोगने त्यांथी फेरवीने फरी पाछो बीजी परवस्तुमां उपयोगने जोडे छे, अने ए रीते दुःखथी छूटवा मागे
छे, पण उपयोग क्यां थंभाववो जोईए तेना निश्चयनी खबर नथी तेथी साचो उपाय करतो नथी.
छूटवा तो मागे ज छे. परंतु मनना अवलंबन रहित स्व वस्तुनुं भान नथी तेथी पाछो पर वस्तुमां उपयोग
जोडे छे. तो क्यां उपयोगने थंभावीने एकाग्र थवुं के उपयोग फरीथी खसे नहि अने कदाच अस्थिरता पूरतो
खसे तो पण फेरवीने क्यां फरी मुकवो तेनी अज्ञानी जीवने खबर नथी. जीव परना उपयोगथी छूटवा तो मागे
छे पण परना उपयोगथी छूटीने एकाग्र क्यां थवुं तेनी तेने खबर नथी तेथी संसार तरफना उपयोगना
वेपारने वारंवार फेरव्या करे छे, पण यथार्थ वस्तुना भान वगर ते फरीने परमां उपयोगने एकाग्र करे छे.
एकाग्र थयो ते क्यां सुधी रहेशे? परलक्षे जे विचार आवे छे ते बधा कल्पनाना घोडा छे–ते आत्मानुं स्वरूप
नथी. दुःखथी आत्मा छूटवा मागे छे पण संसार तरफना उपयोगथी छूटीने स्वमां उपयोगने एकाग्र करवानी
खबर नथी.
ज शकतो नथी. अज्ञानी पर पदार्थ तरफनो उपयोग फेरवे छे त्यां तेनी मान्यतामां पण ऊंधाई छे. “आ
परपदार्थ अनिष्ट छे” एम सामी वस्तुने खराब मानीने ते तरफथी उपयोगने अज्ञानी जीव फेरवी ल्ये छे.
अज्ञानीनो भगवान उपरनो शुभराग छे ते पण “भगवान सारा छे” एम परद्रव्यने ईष्ट मानीने राग करे छे,
ज्यारे ज्ञानी पर द्रव्यने ईष्ट मानीने राग करता नथी के पर पदार्थने खराब मानीने द्वेष करता नथी.
पोताना पुरुषार्थनी नबळाईथी राग–द्वेष थई जाय छे एम ते माने छे अने ते पुरुषार्थनी नबळाईथी थता
राग–द्वेषने पण पोतानुं स्वरूप मानतां नथी. आत्माना स्वरूपमां राग छे नहि, पर वस्तु रागनुं कारण नथी
आवी द्रष्टिमां राग रह्यो छे तेने पण ते टाळवा मागे छे. राग टाळतां टाळतां जे राग रही गयो तेनुं कारण पर
वस्तुने मानता नथी पण पोताना पुरुषार्थनी नबळाई छे एम ज्ञानी जाणे छे. अज्ञानी जीव पोताना परिणाम
उपर न जोतां पर वस्तुने भली–बूरी माने छे अने पर वस्तुने कारणे राग–द्वेष माने छे; आ रीते ज्ञानी अने
अज्ञानीना रागद्वेषमां पण आंतरो छे.