Atmadharma magazine - Ank 016
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: ५२ : आत्मधर्म २००१ : माह :
आत्मा शुद्ध अथवा अशुद्ध उपयोग सिवाय बीजाुं कांई करी शकतो ज नथी.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक पान ४९ उपरना परमपूज्य सद्गुरुदेवश्रीना व्याख्यानमांथी १९ – १ – ४)
‘...कारणके जो संसारमां पण सुख होत तो संसारथी छुटवानो उपाय शा माटे करीए?’ आ
लीटीनुं विवेचन चाले छे.
दुःखथी छुटवानो उपाय दरेक जीव क्षणे क्षणे करी रह्यो छे. सारो दूधपाक खावामां सुख मान्युं होय छे
पण अमुक दूधपाक खाधा पछी ते पोते ज ना पाडी देशे. जो दूधपाक खावामां सुख होत तो सुखथी कोई छूटे शा
माटे? तेवी ज रीते सूवामां पण छ, आठ के दस कलाक ऊंघशे पछी तेने सूवुं नहि गमे, कोईने प्रशंसा सांभळवी
गमती होय पण अमुक वखत पोतानां वखाण सांभळीने तेने ज कंटाळो आवी जशे. केमके एमां क्यांय खरेखर
सुख छे ज नहीं. जो संसारी कोई पण कार्योमां सुख होत तो ज्ञाननो उपयोग त्यांथी फेरवत शा माटे? सुखथी
कोई छूटवा मागे नहि. संसारमां सुख नथी तेथी ज त्यांथी उपयोगने पाछो फेरवे छे. संसारना कोई कार्योमां
उपयोग लांबो वखत टकी शकशे नहि अने आत्मामां सुख ने आनंद ज छे तेथी आत्मामां ज्ञाननो उपयोग
एकाग्र थाय छे तेने कोई फेरववा मागतुं नथी. कोई पण पर वस्तु उपर लक्ष जाय त्यां कंटाळो आवी जाय छे
तेथी उपयोगने त्यांथी फेरवीने फरी पाछो बीजी परवस्तुमां उपयोगने जोडे छे, अने ए रीते दुःखथी छूटवा मागे
छे, पण उपयोग क्यां थंभाववो जोईए तेना निश्चयनी खबर नथी तेथी साचो उपाय करतो नथी.
पर वस्तुमां ज्ञाननो उपयोग मूके छे त्यां भंग पडे छे. मनना विचार पण बहु थाय त्यां कंटाळीने
उपयोगने फेरवीने बीजामां उपयोग जोडे छे: तेथी एटलुं सिद्ध थाय छे के मनना अवलंबनथी पण जीव
छूटवा तो मागे ज छे.
परंतु मनना अवलंबन रहित स्व वस्तुनुं भान नथी तेथी पाछो पर वस्तुमां उपयोग
जोडे छे. तो क्यां उपयोगने थंभावीने एकाग्र थवुं के उपयोग फरीथी खसे नहि अने कदाच अस्थिरता पूरतो
खसे तो पण फेरवीने क्यां फरी मुकवो तेनी अज्ञानी जीवने खबर नथी. जीव परना उपयोगथी छूटवा तो मागे
छे पण परना उपयोगथी छूटीने एकाग्र क्यां थवुं तेनी तेने खबर नथी तेथी संसार तरफना उपयोगना
वेपारने वारंवार फेरव्या करे छे, पण यथार्थ वस्तुना भान वगर ते फरीने परमां उपयोगने एकाग्र करे छे.
जुओ! (दृष्टांत) एडीसन फोनोग्राफनी शोधनी पाछळना विचारमां त्रण दिवस सुधी एकाग्र रह्यो
परंतु चोथे दिवसे तो ते विचारनी एकाग्रताथी पाछो खसी गयो, केमके परलक्षे एकाग्र थयो हतो! परलक्षे
एकाग्र थयो ते क्यां सुधी रहेशे? परलक्षे जे विचार आवे छे ते बधा कल्पनाना घोडा छे–ते आत्मानुं स्वरूप
नथी. दुःखथी आत्मा छूटवा मागे छे पण संसार तरफना उपयोगथी छूटीने स्वमां उपयोगने एकाग्र करवानी
खबर नथी.
सिद्धांत ए लीधो के–आत्मा पोताना उपयोग सिवाय परमां तो कांई पण करी शकतो नथी. कां तो स्व
तरफनो शुद्ध उपयोग करे अने कां पर तरफनो अशुद्ध उपयोग करे, उपयोग सिवाय बीजुं तो आत्मा कदी करी
ज शकतो नथी. अज्ञानी पर पदार्थ तरफनो उपयोग फेरवे छे त्यां तेनी मान्यतामां पण ऊंधाई छे. “
परपदार्थ अनिष्ट छे”
एम सामी वस्तुने खराब मानीने ते तरफथी उपयोगने अज्ञानी जीव फेरवी ल्ये छे.
अज्ञानीनो भगवान उपरनो शुभराग छे ते पण “भगवान सारा छे” एम परद्रव्यने ईष्ट मानीने राग करे छे,
ज्यारे ज्ञानी पर द्रव्यने ईष्ट मानीने राग करता नथी के पर पदार्थने खराब मानीने द्वेष करता नथी.
पोताना पुरुषार्थनी नबळाईथी राग–द्वेष थई जाय छे एम ते माने छे अने ते पुरुषार्थनी नबळाईथी थता
राग–द्वेषने पण पोतानुं स्वरूप मानतां नथी. आत्माना स्वरूपमां राग छे नहि, पर वस्तु रागनुं कारण नथी
आवी द्रष्टिमां राग रह्यो छे तेने पण ते टाळवा मागे छे. राग टाळतां टाळतां जे राग रही गयो तेनुं कारण पर
वस्तुने मानता नथी पण पोताना पुरुषार्थनी नबळाई छे एम ज्ञानी जाणे छे. अज्ञानी जीव पोताना परिणाम
उपर न जोतां पर वस्तुने भली–बूरी माने छे अने पर वस्तुने कारणे राग–द्वेष माने छे; आ रीते ज्ञानी अने
अज्ञानीना रागद्वेषमां पण आंतरो छे.