: माह : २००१ आत्मधर्म : ५३ :
भूलनुं मूळ मिथ्यात्व ज छे. वर्तनना कारणे भूल नथी, कषायना कारणे भूल नथी के प्रमाद अने
योगना कारणे भूल नथी. पण मिथ्या मान्यताना कारणे ज भूल छे, सौथी पहेलुं बंधन मिथ्यात्व ज छे, अने
सौथी पहेलांं मिथ्यात्व ज छूटे छे. मिथ्यात्व छूटया पछी ज प्रमाद कषाय अने योग छूटे छे. मिथ्यात्व छूटयां
पहेलांं ते छूटतां नथी. ए मिथ्यात्व छोडवा माटे आत्मस्वरूपनुं भान करवुं जोईए.
सुवर्णपुरीमां स्वाध्याय मंदिरमां पूज्य श्री सद्गुरुदेवे शीखवेलो
ता. २ – १ – ४ नी रात्रि र्चा • जैन दर्शनो कक्को •
वीतरागनो मार्ग–जैनदर्शननुं रहस्य–वस्तुनुं स्वरूप अनेकान्त छे. वीतरागनो मार्ग अर्थात् वस्तुनुं स्वरूप
‘छे’ थी उपडे छे. ‘तुं छो’ ए पहेलांं नक्की कर. कोई एम कहे के हुं हईश के नहि एनी मने शंका छे! तो तेने कहे छे
के भाई! ‘हुं हईश के नहि’ एवी जे शंका थई ते कोणे करी? जे होय ते शंका करे के न होय ते? न होय ते कांई करी
शके नहि, तेथी शंका थई तेनो करनार तुं छो. एटले ‘हुं हईश के नहि’ एवी शंका थई त्यां ज तारुं होवापणुं नक्की
थई गयुं छे. जो तुं न हो तो आ शंका कोणे करी? माटे ‘तुं छो’ ए पहेलो निश्चय कर! पछी...
तुं छो, तुं छो तो ताराथी छो–परथी नथी. एटले हुं छुं एटली कबुलातमां हुं परथी स्वतंत्र–जुदो छुं एम
हवे ‘आत्मा छे’ एम नक्की कर्युं त्यां तेने त्रिकाळ लागु पडी गया. ‘छे’ कहेतां तेनी उत्पत्ति नथी अने
हवे वस्तु होय तेमां स्वाश्रये विकार न होय अने वस्तु त्रिकाळ रहीने तेनी अवस्था समये समये
वस्तुथी पोताथी थाय छे. एकली वस्तुमां स्वथी विकार होय नहि–छतां अवस्थामां विकार छे, ते विकार परने
आश्रये छे–पण ते विकार परवस्तुए कराव्यो नथी. आत्मामां ‘अविकारी’ गुण त्रिकाळ छे. अवस्थामां विकार
छे तेनी पाछळ अविकारी गुण त्रिकाळ छे. एक समयनी अवस्था पूरतो विकार छे तेमां आखो अविकारी गुण
आवी गयो नथी अर्थात् विकारी दशामां अविकारी गुणनी नास्ति छे, अने ते गुणमां विकारी पर्याय आवी गई
नथी एटले के गुणमां पर्यायनी नास्ति छे.
घणी वखत जीव विकल्प करे छे के “मारे विकार न जोईए” ते ज एम बतावे छे के विकार ते गुण नथी
पण क्षणिक अवस्था छे, तेथी ते टाळी शकाय छे. विकार क्षणिक अवस्था छे तेने टाळनार आखो निर्विकारी
स्वभाव छे. त्रिकाळी गुणमां एक समयनी अवस्थानी नास्ति छे अने एक अवस्थामां आखो स्वभाव आवी
जतो नथी (नास्तिरूप छे).
विकार हालत छे ते वर्तमानकाळ पूरती छे तेनी बीजा समयनी हालतमां नास्ति छे; अने विकारने
वस्तु स्वतंत्र, वस्तुना अनंतगुणो दरेक स्वतंत्र, वस्तुनी एक पर्याय [विकारी होय तोपण]
स्वतंत्र अने क्षणिक पर्यायथी त्रिकाळ गुण स्वतंत्र छे. अनंत गुणनो पिंड ते द्रव्य छे, तेथी एक गुण जेटलुं
आखुं द्रव्य नथी एटले एक गुणमां आखा द्रव्यनी नास्ति छे.
[१] आखा द्रव्यमां एक गुणनी नास्ति छे (केमके द्रव्यमां एक ज गुण नथी पण अनंत गुणो छे);
[२] एक गुणमां आखा द्रव्यनी नास्ति छे (केमके जो एक ज गुणमां आखुं द्रव्य आवी जाय तो बीजा गुणनो
अभाव थाय); [३] एक गुणमां बीजा गुणनी नास्ति छे (केमके जो एक गुणमां बीजा गुणनी अस्ति होय तो
बे गुण एक थई जाय एटले के गुणनो अभाव थई जाय); [४] आखा गुणमां एक पर्यायनी नास्ति छे
(केमके जो आखा गुणमां एक पर्याय आवी जाय तो विकार अवस्था टाणे आखो गुण पण