: ७४ : : आत्मधर्म : १७
श्री समयसार शास्त्र अत्यंत अज्ञानीअोनुं अज्ञान टाळवा माटे रचायेलुं छे
संक्षिप्त अवलोकन रा. मा. दोशी
(दर्शन पहेलुं)
नथी. ‘प्रीतिथी सांभळी छे’ एम कह्युं तेमां सांभळनारमां परनी रुचिनो त्याग ए सांभळनारनुं उपादान अने
‘सांभळी’ एमां ज्ञानी गुरुनुं निमित्त बताव्युं छे. उपादान–निमित्त केवा जोईए तेनुं वर्णन ‘प्रीतिथी’ अने
‘सांभळी’ तेमां आवी गयुं छे. शास्त्रमां तो बधुं लख्युं छे पण जाणनार जाणे, अभणने तो धोळामां काळा
अक्षर लागे. वस्तुनो स्वभाव जेम छे ते तरफ ज्ञानने–आत्माने लई जवो ते न्याय.
आहाहा! आवो आत्मा! जे हुं प्रगट करवा मागुं छुं ते तो मारामां छे अने जे टाळवा मागुं छुं ते तो
नाशवान–कृत्रिम ज छे. आम जेने आत्मा परथी निराळो शुद्ध छे एवी प्रतीत थाय ते राग–द्वेष बधुं जतुं करीने
पण ते (आत्मानी शुद्धता) मेळव्या वगर रहे नहीं. आवो आत्मा जेम जे रीते कहेल छे तेम ते रीते जेणे
प्रीतिथी सांभळीने सत्नां बीजडां रोप्या छे ते भविष्यमां सहज शांति अकृत्रिम सुखरूपी फळ अवश्य पामे छे
अने कृत्रिम रागद्वेष–अशांति नाश पामी जाय छे.
पर पदार्थ उपर थती वृत्ति मारी नहि अने अविकारी शुद्ध ते हुं छुं एवी जेने रुचि थई तेने पछी स्थिर थवाना
वायदा न होय, रुचिवाळी चीज दरेक जीव झट मेळववा मागे छे. जेनी जेने रुचि थई तेनो तेने वायदो न होय.
जानीते यः परं ब्रह्म कर्मणः पृथगेकताम्।
गतं तब्दत बोधात्मा तत्स्वरूपं सगच्छत्ति।।
पद्मनंदी गाथा–२४
जेटली कर्मनी वृत्ति अने तेनुं फळ छे तेनाथी पृथकक (जुदुं) मारुं स्वरूप छे एम जेणे जाण्युं छे ते
आत्मा वारंवार तेमां ठरवानो प्रयत्न करे छे. पोतानी वस्तुनो एक–अंश पण पराधीन रहे ते ईच्छतो नथी.
बारणांनी भींसमां आंगळी चगदाय तो तरत राड नाखे छे केमके ‘मारी वस्तुनो एक अंश पण परमां दबाय ते
मने पालवतुं नथी, ’ एम जेने स्वरूपनी प्रीति छे ते ‘मारी एकपण पर्याय राग–द्वेषथी दबाय ते मने
पालवतुं नथी’ एम माने छे; अने जेवुं निर्मळ स्वरूप छे तेवुं पोते जाणीने पोतामां ठरतां ते परम ब्रह्मस्वरूप
पामी जाय छे, मुक्ति अने आत्मानो आनंद ते पामी जाय छे.
१. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे विक्रम संवतना पहेला सैकामां श्री समयसार शास्त्र प्राकृत भाषामां
बनाव्युं छे. तेमां कुल ९ अधिकार छे. अधिकारोनां नामो नीचे मुजब छे.
अधिकारनुं नाम गाथाओ
१. जीवाजीव अधिकार गाथा १ थी ६८
२. कर्ताकर्म अधिकार गाथा ६९ थी १४४
३. पुण्य पाप अधिकार गाथा १४५ थी १६३
४. आस्रव अधिकार गाथा १६४ थी १८०
अधिकारनुं नाम गाथाओ
५. संवर अधिकार गाथा १८१ थी १९२
६. निर्जरा अधिकार गाथा १९३ थी २३६
७. बंध अधिकार गाथा २३७ थी २८७
८. मोक्ष अधिकार गाथा २८८ थी ३०७
९. सर्व विशुद्धज्ञान अधिकार गाथा–३०८ थी ४१५
जीव शुं करी शके अने शुं न करी शके तेनी विशेषता
२. उपर गाथाओनी संख्या जणावी छे ते उपरथी मालुम पडशे के–कर्ताकर्म अधिकार अने सर्व
विशुद्धज्ञान अधिकारनी गाथाओ सर्वथी वधारे छे. कर्ताकर्म अधिकारमां गाथा ७६ अने सर्व विशुद्धज्ञान
अधिकारमां गाथा १०८ छे. सर्व विशुद्धज्ञान अधिकारमां ३०८ थी ३८२ सुधीनी गाथाओमां पण कर्ताकर्मनो
विषय लेवामां आव्यो छे. ए रीते आ शास्त्रमां ७६ गाथा बीजा अधिकारमां अने ७४ गाथा छेल्ला
अधिकारमां एम मळी कुल १५० गाथा कर्ताकर्मना विषय उपर आपवामां आवी छे.
३. कर्ताकर्मना विषय उपर जे कुल गाथा १५० आपवामां आवी छे, तेनुं मुख्य कारण ए छे के–जीव
अनादिनो अज्ञानी छे अने तेथी परनुं हुं करी शकुं अने परने भोगवी शकुं एम ते माने छे. शरीर जीवथी पर