Atmadharma magazine - Ank 017
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २००१ : ७५ :
छे अने ते अनंत अचेतन रूपी रजकणोनो पिंड छे अने ते शरीरमां रहेलो जीव शरीरथी तद्न जुदी जात–एटले के
चेतन स्वरूप स्वयंसिद्ध अनादि अनंत एक वस्तु छे. छतां जीव शरीरने पोतानुं मानतो होवाथी, शरीरने हलावी–
चलावी शकुं ए विगेरे शरीरनां तथा
बीजां पर द्रव्योनां कार्यो जीव करी शके एम मानतो आवे छे. जे कार्य जीवथी थई शकतुं ज न होय ते पोताथी थई
शके–एम मानवुं ए महाभूल छे.
ए महाभूल टाळवा माटे–(अनादिनुं चाल्युं आवतुं पोताना अने परवस्तुना स्वरूपनुं घोर अज्ञान टाळवा
माटे) आचार्यदेवे आ गाथाओ रची छे.
४. वर्तमान गोचर जेटला देशो छे तेमां तत्त्वज्ञानने लगता हाल हैयाती धरावता शास्त्रो के ग्रंथोमां, कर्ता–
कर्मनो विषय आटली स्पष्टतापूर्वक अने सचोट रीते समजाववामां आव्यो नथी. समयसार शास्त्रनी अनेक
विशिष्टताओ मांहेनी आ एक खास विशिष्टता छे.
५. उपर कह्युं ते रीते मुख्यपणे आ शास्त्र अत्यंत अज्ञानीओनुं अनादिथी चाल्युं आवतुं घोर अज्ञान टाळवा माटे,
आचार्यदेवे करुणा करी बताव्युं छे. आचार्य भगवान पोते आ शास्त्र अत्यंत अज्ञानीओनुं अज्ञान टाळवा माटे बतावे छे
एम अनेक स्थळे जणावे छे. तेथी दरेक अधिकार लई तेमां आ संबंधे आचार्य भगवान शुं कहे छे ते अहीं कहेवामां आवे छे.
जीवाजीव अधिकार
(गाथा १ थी ४)
६. आ अधिकारमां ६८ गाथा छे; पहेली गाथामां मंगळ करी तुरत ज बीजी गाथाना पाछला अर्धा भागमां
‘परसमय’ एटले अज्ञानी कोण कहेवाय ते जणाव्युं छे. त्रीजी गाथामां अज्ञान दशा विसंवादिनी छे–एटले के जीवने
दुःख देनारी छे एम कही, चोथी गाथामां कह्युं के–जीवने अज्ञानदशा अनादिथी चाली आवे छे तेमां परनुं करी शकुं–
परने भोगवी शकुं एवी (काम भोगनी बंध) कथाओ लोकना सर्व जीवोए–पोतानुं अत्यंत बुरूं करनारी होवा छतां–
अनंतवार सांभळी, अनंतवार तेनो परिचय कर्यो अने अनंतवार तेनो अनुभव कर्यो;–पोते आचार्यपणुं करी बीजा
जीवोने ते संभळावी, पण भिन्न आत्मा (जीव) नुं एकपणुं कदी सांभळ्‌युं नथी, परिचयमां आव्युं नथी, अने तेनो
अनुभव पोते कदी कर्यो नथी. पोतानुं अनात्मज्ञपणुं अनादिथी चाल्युं आवे छे. आत्माने जाणनाराओनी संगति पोते
नहीं करी होवाथी, आत्मानुं स्वथी एकत्व अने परथी विभक्तपणुं कदी सांभळ्‌युं नथी, परिचयमां आव्युं नथी अने
तेथी कदी अनुभवमां पोताने आव्युं नथी.
(गाथा–५)
७. लोकना सर्व अज्ञानी जीवोने गाथा ५ मां आचार्यदेव कहे छे के–आत्मानुं स्वथी एकत्व अने परथी विभक्तपणुं तमे
अनादिथी सांभळ्‌युं नथी तेथी ए हुं तमोने आ शास्त्रमां मारा आत्माना निज ज्ञान वैभव वडे देखाडुं छुं माटे आ शास्त्रमां परम
सत्य जे कहेवामां आवशे तेने तमारे पोताना अनुभव–प्रत्यक्षथी परीक्षा करी प्रमाण करवुं.
पहेली पांच गाथाथी नीचेनी बाबतो सिद्ध थई:–
(१) जगतना मोटा भागना जीवो जीवना साचा स्वरूपना ज्ञानथी रहित छे तेथी आत्माथी अज्ञात छे.
(जीव अने आत्मा एकार्थवाचक छे.)
(२) तेओए कदी आत्माना स्वरूपनी साची कथा सांभळी नथी.
(३) तेओए आत्माना साचा स्वरूपनो परिचय अने अनुभव कर्यो नथी.
(४) आत्माना स्वरूपना साचा ज्ञानीनी संगति पूर्वे कोईवार करी नथी.
(५) तेथी आचार्य भगवान पोते ते स्वरूप कहे छे.
(६) ते कथननी अनुभव–प्रत्यक्ष वडे परीक्षा करवी केमके सत्यासत्यनी परीक्षा कर्या विना कोईनुं अज्ञान टळे नहीं.
(७) आ शास्त्र अनादिथी चाल्या आवता अज्ञानी जीवोने तेमनुं अज्ञान टाळवा माटेनो उपदेश करनारुं छे.
जीवो आत्माना स्वरूपना साचा कथनने पोते विचारी आ काळे अज्ञान टाळी शके छे अने पोतानुं सम्यग्ज्ञान प्रगट
करी पोताना–आत्मानो अनुभव करी शके छे.
श्री समयसार ५२ परम पूज्य श्री सद्गुरुदेवना व्याख्यानो प्रथम खंड, टूंक समयमां प्रगट थशे.
–अगाउथी ग्राहक थवा माटे लखो– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ–काठियावाड