भव्यजनोना हैये हर्षानंद अपार,
श्री सीमंधर प्रभुजी पधार्या छे अम आंगणे रे.
छे द्रव्यभाव सहुना परिपूर्ण साक्षी;
कोटि सुधांशु करतां वधु आत्मशान्ति,
कोटि रवींद्र करतां वधु ज्ञान ज्योति.
जेनी भक्तिथी चारित्र विमळता थाय,
एवा चैतन्य मूर्ति प्रभुजी अहो! अम आंगणे रे.... सुंदर
श्री कुन्दना विरह ताप प्रभु निवार्या;
सप्ताह एक वरसी अद्भुत धारा
श्री कुंदकुंद हृदये परितोष पाम्या.
जेनी वाणीनो वळी सद्गुरु पर उपकार,
छे चार तीर्थ प्रभु अहो! तुज छत्र नीचे;
साधक संतमुनिना हृदयेश स्वामी,
सीमंधरा! नमुं तने शिर नामी नामी.
ते श्री कानगुरुनो अनुपम उपकार,
नित्ये देव–गुरुनां चरणकमळ हृदये वसो रे.... सुंदर