Atmadharma magazine - Ank 017
(Year 2 - Vir Nirvana Samvat 2471, A.D. 1945)
(Devanagari transliteration).

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ते
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स्ति
छे
जैन नथी
: ६८ : : आत्मधर्म : १७
[आ आनंदरसथी छलकातुं स्तवन सं. १९९७ ना फागण सुद २ ना प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे रचायेलुं
छे. फागण सुद बीज एटले सुवर्णपुरीमां परम उपकारी साक्षात् चैतन्यनाथ श्री सीमंधरभगवंतनी
पधरामणीनो महामंगळिक दिवस. त्रिलोकनाथ देवनी पधरामणीना प्रसंगे भगवत् प्रेमी भक्तोनो आनंद अने
उत्साह अजब हतां. अरे! अध्यात्म कविओ पण जे उत्साहनुं संपूर्ण वर्णन करी न शके एवो उत्साहपूर्ण ए
प्रसंग हतो. ए आनंद अने उत्साहथी भरपूर प्रसंगने चिरंजीव बनावी देवा माटे सीमंधरनाथना परम भक्त
एक ‘अध्यात्म कवि’ ए आ स्तवननी रचना करी छे, अने तेमणे सीमंधर भगवंत प्रत्येना संपूर्ण भक्तिरसने
आ स्तवनमां वहेतो मूक्यो छे. मांगलिक प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे भगवानने भेटता भक्तोनो अपार आनंद
एवो हतो के जाणे सीमंधरनाथ साक्षात् ज पधार्या होय!!! सुवर्णपुरीमां अनेक मुमुक्षु जीवो चैतन्यमूर्ति
सीमंधरनाथना दर्शन करवा आवे छे अने उपशम रस नीतरती वीतराग जिनमूद्राना दर्शन करतां आह्लादथी
बोली ऊठे छे के– ‘अहो! शांतरसमां झुलता सीमंधरनाथनी भाववाहिनी जिनमुद्रा! साक्षात् वीतरागतानां ज
दर्शन करावे छे! ’ ए सीमंधरदेवनी पधरामणीना मांगलिक महोत्सव प्रसंगे रचायेलुं आ स्तवन, साक्षात्
भगवंतनो भेटो थतां जे आनंद थाय तेना वर्णनथी नीतरी रह्युं छे–ते, आजना मंगल महोत्सव दिन प्रसंगे
अहीं आपवामां आव्युं छे.
]
प्रभुजी पधार्या
धन्य धन्य आजनो दीन, अम घेर प्रभुजी पधार्या
धन्य धन्य आजनो दीन, अमघेर जिनवर पधार्या
नेमप्रभु शान्ती जीणंद पधार्या पधार्यासीमंधर देव–अमघेर–प्र.
महाविदेहवासी प्रभुजी पधार्या जगतउद्धारक देव–अ. –प्र.
कल्पवृक्षनी छांया छवाणी, जय नाद ईन्द्रो गाय–अ. –प्र.
रत्न राशी अम आंगणे फळीओ, सिध्यां मन वंछीत काज–अ. –प्र.
गुणमणी गुण निधी प्रभुजी पधार्या, मनवंछीत देनार–अ. –प्र.
जिनबिंब जळहळ ज्योति जगे छे ज्ञान अजवाळा अमाप–अ. –प्र.
दिव्य ध्वनीना नाद गाजे छे समवसरण मोझार–अ. –प्र.
छपन्न कुमारी प्रभु महोत्सव करे छे ईन्द्राणीजय नाद गाय–अ. –प्र.
शक्रेन्द्र चमरेन्द्र चमर ढाळे छे धन्य धन्य प्रभु वीतराग–अ. –प्र.
अंतर मारुं आनंदथी उछळे पधार्या श्री वीतराग–अ. –प्र.
सुवर्णपुरी सदभाग्य खील्या छे जिनमुद्रा महोत्सव थाय–अ. –प्र.
जे पोताना देवनुं स्वरूप यथार्थ मानतो नथी
जेणे वीतरागदेवनी सर्वज्ञता मानी अने जेवुं तेमनुं सामर्थ्य छे एवुं ज सामर्थ्य
पोतानी एक समयनी पर्यायमां पण छे एम जेणे कबुल्युं ते राग–द्वेषने पोतानां माने
नहि केमके सर्वज्ञने राग द्वेष होय नहीं. संपूर्ण राग रहितपणुं होय तो ज सर्वज्ञपणुं होई
शके तेथी जेणे सर्वज्ञपणुं पोतानुं स्वरूप मान्युं होय ते रागने पोतानुं स्वरूप माने नहि.
जे रागने पोतानो माने छे ते सर्वज्ञताने पोतानी मानतो नथी (केमके ज्यां राग छे त्यां
सर्वज्ञपणुं नथी.) अने जे पोतानुं स्वरूप सर्वज्ञ नथी मानतो ते पोताना देवनुं स्वरूप
पण सर्वज्ञ मानतो नथी, अने जे पोताना देवनुं स्वरूप यथार्थ मानतो नथी ते नास्तिक
छे–जैन नथी.
(पूज्य सद्गुरुदेवना समयसार कलश १ उपरना ता. ४–८–४४ना व्याख्यानमांथी)