: ७० : : आत्मधर्म : १७
आचार्यदेव आमंत्रण आपे छे
(परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनुं व्याख्यान)
बधा आवो, एकी साथे आवो. शांत रसमां एकी साथे अत्यंत निमग्न थाव, अत्यंत निमग्न थाव,
जराय बाकी राखशो नहीं
समयसारनो पूर्वरंग ३८ गाथाए पूरो थाय छे. आचार्यदेवे ३८ गाथामां मोक्षनो मार्ग खुल्लो मूक्यो
छे, अने हवे बधाने आमंत्रण करे छे. आचार्यदेव कहे छे के आवुं शांत स्वरूप समजाव्युं, तो ते समजीने तेमां
समस्त लोक निमग्न थाव! एम आमंत्रण करे छे ते विषे हवे कळश कहे छे:–
(मालिनी)
मज्जंतु निर्भरममी सममेव लोका आलोक मुच्छलति शांतरसे समस्ताः।
आप्लाव्य विभ्रमतिरस्करिणीं भरेण प्रोन्मग्न एष भगवानवबोधसिंधुः।।
(समयसार कळश–३२)
अर्थ:– आ ज्ञान समुद्र भगवान आत्मा विभ्रमरूप आडी चादरने समूळगी डुबाडी दईने (दूर करीने)
पोते सर्वांग प्रगट थयो छे; तेथी हवे समस्त लोक तेना शांत रसमां एकी साथे ज अत्यंत मग्न थाओ. केवो छे
शांतरस! समस्त लोक पर्यंत ऊछळी रह्यो छे.
अहीं आचार्यदेव आमंत्रण करे छे. कोने आमंत्रे छे? आखा जगतने सागमटे नोतरे छे,
भगवानने घरे लग्न होय पछी कोने नोतरां न होय! बधाने होय.
आ देहरूपी खोळियामां प्रभु चैतन्य सूतो छे. शरीर अने रागने पोताना मानी सूतो छे. लौकिक माता
तो ऊंघाडवाना हालरडां गाय छे, पण प्रवचनमाता जगाडवाना हालरडां गाय छे, शरीरादिना रजकणोमां गुप्त
थयेलो, पुण्य–पापना भावमां संताएलो भगवान आत्मा तेने प्रवचन–माता हालरडां द्वारा जगाडे छे.
मोरलीना नादे जेम सर्प झेरने भूली जाय छे ने मोरलीना नादमां एकाग्र थाय छे, तेम आचार्य देव कहे छे
के आ अमारी समयसारनी वाणीरूप मोरलीना नादे कोण आत्मा न डोले? कोण न जागे? बधाय डोले, बधाय
जागे. जेने न बेसे ते तेना घरे रह्यो, आचार्यदेवे तो पोताना भावथी समस्त जगतने आमंत्रण आप्युं छे.
“ज्ञान समुद्र भगवान आत्मा” कह्यो छे, एटले बधा आत्माने भगवान कह्या छे, ज्ञान समुद्र भगवान,
समुद्रनी जेम पोताना ज्ञानमां ऊछाळा मारे छे. ज्ञान समुद्र आत्मा गमे तेटला वर्षोनी वात जाणे तो पण
वजन थाय नहि एवा ज्ञान समुद्रथी भरपूर आत्मा छे.
जेम दरियो पाणीथी छलोछल भर्यो होय, तेमां आडी भींत के कांई आवी जाय तो पाणी देखातुं नथी
परंतु अहीं तो मात्र चादर एटले मात्र पछेडी–लुगडुं ज आडुं लीधुं छे के जेने दूर करतां वार न लागे, मात्र ते
लूगडांने पाणीमां डुबाडी देवाथी छलोछल पाणीथी भरेलो दरियो देखाय छे तेम ज्ञान समुद्र भगवान आत्मा
अंदर छलोछल पाणीथी भर्यो छे, विभ्रमरूप आडी चादरने खसेडीने एटले ऊंधी मान्यतानी आडी चादर पडी
हती, (भ्रांतिरूप मात्र लुगडुं ज आडुं छे–एम क्षण पूरती पर्यायनी शी कींमत?) तेने समूळगी पाणीमां डुबाडी
दीधी, एटले भ्रमणानी खोटी पकडनो व्यय कर्यो अने सर्वांग प्रगट थवारूप उत्पाद थयो, सर्वांग एटले असंख्य
प्रदेशे प्रगट थयो, अने ज्ञानसमुद्र भगवान पोताना ज्ञान आदि शांत–रसमां ऊछाळा मारे छे.
जेम लोकोमां एम कहेवाय छे के आ मीठुं महेरामण जेवुं पाणी भर्युं छे, तेमां न्हाव एटले स्नान करो तेम
आचार्य देव कहे छे के आ मीठो महेरामण जेवो ज्ञान समुद्र भर्यो छे तेमां बधा जीवो आवो, न्हाव–स्नान करो, शीतळ
थाव, शांतरसमां निमग्न थाव; बधा जीवो आवो एम कह्युं छे ते पण एक साथे आवो एम कह्युं छे, पण एक पछी
एक आवो तेम कह्युं नथी. आहाहा! आवो भगवान आत्मा छे! एम भगवान आत्मानो अद्भुत स्वभाव देखीने
आचार्य देवनो भाव ऊछळी गयो के अहो! आवो आत्मा छे ने बधा जीवो एक साथे केम आवता नथी? बधा आवो,