आचार्यदेवनी बहु भावना ऊछळी गई छे. (अंतरंगमां पोताने पूर्ण थई जवानी भावनानुं जोर पड्युं छे.)
बधा लीन थाव, एम आचार्यदेव आमंत्रण करे छे अथवा बीजो अर्थ एम छे के केवळज्ञान थतां समस्त
लोकालोक जाणे छे त्यां समस्त लोका–लोक पर्यंत शांतरस ऊछळी रह्यो छे.
पोतानुं स्वरूप जणातुं नहोतुं, स्त्री, कुटुंब तो क्यांय रह्या–पण शरीर मन, वाणी ते पण क्यांय रह्या, –ते तो भिन्न
ज छे, परंतु अंदर थती शुभाशुभ लागणी ते पण भिन्न छे, ते बधामां एकत्वबुद्धि हती तेने दूर करीने समूळगी
डुबाडीने आ ज्ञान–दरियामां–वीतरागी विज्ञानमां बधा एक साथे निमग्न थाव! एम आचार्यदेवे ढंढेरो पीट्यो छे–
सागमटे नोतरां आप्यां छे, सागमटे नोतरामां कोण न पहोंचे? बधा पहोंचे. जेने विरोध होय, द्वेष होय ते न
पहोंचे. मांदो कहे अमे न पहोंची शकीए तो शुं करीए? (तेने कहे छे के) अरे मांदा! तारी नमालापणानी वात मूक
एक कोर! आ सागमटे नोतरामां एकवार चाल तो खरो, दाळ–भात खाजे पण चाल तो खरो!
थनार होय, कोई अल्पकाळमां मुक्त थाय एवो होय, तो एवा साधर्मीने पेटे मारो कोळियो जाय तो मारो धन्य
अवतार! कोण भविष्ये तीर्थंकर थनार छे, कोण अल्पकाळमां मुक्त जनार छे तेनी भले खबर न होय पण
जमाडनारनो भाव एवो छे के अल्पकाळमां मुक्त जनार कोई जीव रही जवो न जोईए, जमाडनारना भाव
आत्मभावना पूर्वक जो यथार्थ होय तो तेनो अर्थ एवो छे; पोताने अल्पकाळमां मुक्ति लेवाना भाव छे–एवी
रुचि छे. एम आचार्यदेव कहे छे के मारुं नोतरुं सागमटे छे, सागमटे आमंत्रण आप्या छे के आ शांतरसना
स्वाद वगर कोई जीवो रही जवा न जोईए, एवा आमंत्रण देतां खरी रीते आचार्यदेवने पोताने ज भगवान
आत्माना शांतरसमां डुबी जवानी तीव्र भावना उपडी छे. समयसारजीनी एक एक गाथामां आचार्यदेवे
अद्भूत रचना करी छे. अलौकिक अपूर्व भावो भर्या छे, शुं कहेवाय! जेने समजाय तेने खबर पडे.
कहीने पूरी वात कही दीधी. ‘एक परमाणु मात्रनी न मळे स्पर्शता’ एवा भानना जोरमां पूर्णता थई जाय छे.
आत्मा प्रगट थाशे नहीं; ते समयप्राभृत एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी परिणतिरूप भेटणा वगर
आत्मारूपी राजा कोई रीते प्रसन्न थाय तेम नथी.
भूलीने मरीने पण अंतर तत्त्व शुं छे एम अंदर जोवा माटे एकवार पड तो खरो! ‘मरीने’ एटले गमे तेटली प्रतिकूळता
वेठीने पण कुतूहल कर, अनंतवार देहने अर्थे आत्मा गाळ्यो पण हवे एकवार आत्माने अर्थे देह गाळ तो भव रहे नहि;
दुनियाने भूल, दुनियानी परवा छोडीने आत्माना रसमां मस्त थई जा, पुरुषार्थ करी अंतर पडदाने तोडी नांख.
परमात्म दशा प्रगट करे तेवो तुं छो तेने भूलीने अरे! आ परमां क्यां रोकाणो? आ सदोष तारुं स्वरूप नथी,
तेमां वीर्यहीन थईने केम अटक्यो छे?