: चैत्र १ : २००१ आत्मधर्म : ८९ :
विकार करतां करतां अविकारीपणुं प्रगटे एम कदी बनी शके ज नहीं.
पहेलो मित्र:–दया शब्द जाणीतो छे, तेना अर्थनी शुं जरूर छे. नानुं छोकरूं पण जाणे छे के, ‘जीवनी
हिंसा’ न करवी तेनुं नाम ‘दया’ छे.
बीजो मित्र:–ठीक छे. पण ते व्याख्या अपूर्ण छे. पोताना जीवनी हिंसा न करवी ते दया के पर जीवनी
हिंसा न करवी ते दया ते तमे स्पष्ट कर्युं नथी, माटे स्पष्ट करो.
पहेलो मित्र–‘पोताना जीवनी हिंसा’ वळी केम थती हशे? पर जीवने मारी न नाखवो ते दया एवो
अर्थ लोकमां प्रचलित छे. तमे कांई जुदो अर्थ करवा मागो छो?
बीजो मित्र–हुं शुं अर्थ करवा मागुं छुं ते अहीं सवाल ज नथी. भाषण कर्ता दयानो शुं अर्थ कहेता हता
ते सवाल छे.
पहेलो मित्र– बीजा जीवने मारी नाखवो नहीं तेने ‘दया’ कहेवी एम भाषण कर्ता कहेवा मागता हता,
माटे हुं ते अर्थ तमारी पासे स्पष्टता थवा माटे मूकुं छुं.
बीजो मित्र– त्यारे शुं जीवे पूर्वे अनंतवार महाव्रत पाळ्यां त्यारे जीव हिंसा करी हती?
पहेलो मित्र–एम केम कही शकाय?
जो अतिचार वगरनां महाव्रत पाळे तो ज जीव नवमी ग्रैवयके देवगतिमां जाय अने (आत्मानी
ओळखाण न होय तो) ते पाछो संसार चक्रमां रखडे एम में सांभळ्युं छे, माटे पूर्वे जीवे तेवी दया तो
अनंतवार पाळी छे एम मानवुं ज जोईए.
बीजो मित्र–जो तेम छे तो ते वखते ‘धर्म’ न थयो, तो आजे केम थाय?
पहेलो मित्र–भले धर्म न थाय पण धर्मनुं अनुष्ठान तो थाय ने? तेने सद्व्यवहार तो कहेवो ज पडशे
ने? परमार्थने तो प्रेरे छे ने?
बीजो मित्र:–पर जीवने न मारवानो विकल्प उठवो ते रागभाव छे के वीतरागभाव छे?
पहेलो मित्र:–ते विकल्प तो वीतरागने होतो नथी. अरे वीतरागने तो शुं पण अप्रमत्त साधुने पण आ
जीवने बचावुं तो सारुं एवो विकल्प ऊठे नहीं; माटे विकल्प ऊठे छे ते रागभाव छे एम तो कह्या वगर चाली
शकतुं नथी.
बीजो मित्र:–त्यारे हवे कहो के–रागभाव ते वीतरागभावने प्रेरे? जो थोडो राग वीतराग भावने प्रेरे
तो विशेष राग वधारे वीतरागभावने प्रेरे एम कहेवुं पडे. माटे रागभाव ते वीतरागभावने प्रेरे ज नहीं, माटे
ते सदनुष्ठान के सद्व्यवहार नथी.
पहेलो मित्र:–पण जो तमे उपर कह्युं तेम दयाने धर्ममां नहीं गणो तो पछी लोको दया नहीं करे तो?
बीजो मित्र:–साचुं समजे अने नुकसान थाय एम मानवुं योग्य नथी. असत्यथी लोकोने के समाजने
लाभ थाय एम माननारा तेम कही शके. कषाय चक्रमां पुण्यभाव सम्पूर्ण वीतरागता न थाय त्यां सुधी जीवने
आव्या वगर केम रहे? सम्यग्द्रष्टिने पुण्यनी ईच्छा न होवा छतां घणां उंचा पुण्य बंधाय छे. मिथ्याद्रष्टिने तेवा
पुण्य होय नहीं. अज्ञानी जीव अनादिथी पुण्य पाप करतां आवे छे अने नहीं समजे त्यां सुधी ते अज्ञान पुर्वक
कर्या करशे अने पुण्यने ते धर्म मानशे. दरेक जीव पोताने ठीक पडे तेवी मान्यता करे ए नियम छे. एज दरेक
जीवनी स्वतंत्रता सिद्ध करे छे. प्ररूपणा असत् केम कराय? सत् प्ररूपणाथी कोई जीवने नुकसान थाय ज नहीं,
पण ते सुधरे.
पहेलो मित्र– विकारी जीवोने पुण्यपापनुं चक्र चाल्या ज करे छे एम तमे कह्युं ते बराबर समजातुं नथी,
माटे स्पष्टता करो.
बीजो मित्र– विकार आत्मानो स्वभाव नथी, पण दोष छे. विकारनुं स्वरूप एवुं छे के ते वधारे ओछो
थया करे पण एक सरखो न रहे. जेम कोईने ताव आव्यो होय तो कोई वखते ९९ डीग्री होय तो कोई वखते
१०२ डीग्री होय; पण ताव उतरी जाय त्यारे ९८।। डीग्री (normal) एक सरखो रहे एम विकार पण एक
सरखो रहे नहीं. आ सिद्धांतने अनुसरीने जीवने जुदी जुदी गति पोताना भावने अनुसरी ने प्राप्त थाय छे.
ज्यारे घणी क्रुरता करे त्यारे नारकी थाय, ज्यारे पुण्यभाव घणा करे त्यारे स्वर्गमां देव थाय, माया करे त्यारे
तीर्यंच थाय, पुण्य पापना मध्यम परिणाम करे त्यारे मनुष्य थाय. एम पुण्य–पापनुं चक्र फर्या करे–एटले विकार
तो फर्या ज करे अने शुभ–अशुभ–(पुण्य–पाप) एम कषाय चक्र अज्ञानीने चाल्या ज करे.
पहेलो मित्र:–त्यारे शुं जीवने अनादिथी पुण्य–पाप ज आवडे छे?
बीजो मित्र:–छे तो तेमज–जो निगोदमां जीव पुण्यभाव न करे तो ते