: ८८ : आत्मधर्म : चैत्र १ : २००१
करुणाभाव तो रागभाव छे; शुभराग छे ते विकार छे, तेथी.
रजु करनार
रा.मा. दोशी
धर्मने प्रेर्या करे अने धर्म वधतो जाय, पण तेम तो बनतुं नथी. केटलाक माणसो एवा होय छे के जे
पोतानुं नाम बहार पाड्या वगर घणा ज गरीब माणसने दान आप्या करे छे, सेवा करे छे, दया पाळे छे, छतां
तेने आत्माना स्वरूपनी कांई खबर होती नथी; ए रीते पुण्यभाव धर्मनो प्रेरक के सहायक तेमने थतो नथी, तो
बीजाने केम थाय?
पहेलो मित्र:–तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र:–करुणाभाव तो रागभाव छे. शुभराग छे ते विकार छे. विकार करतां करतां अविकारीपणुं
प्रगटे एम तो बनी शके ज नहीं; पण विकार टाळतां टाळतां अविकारीपणुं प्रगटे छे.
पहेलो मित्र– तमे कह्युं ते हुं समज्यो. पाप टाळी पुण्य करवुं ते पाप करतां सारुं छे, केमके तेमां
मंदकषाय छे; पण आत्माना धर्मनी अपेक्षाए ते सारुं नथी, केमके ते मंदकषायपण विकार छे; अने विकार होय
ते अविकारने प्रेरे ज नहीं, के सहायक थाय ज नहीं–एम तमे कहेवा मागो छो, ते हुं स्वीकारुं छुं.
बीजो मित्र–सारूं; पुण्य ते धर्म नथी एम कहेवामां पुण्यनुं स्वरूप समजाव्युं छे. एनो अर्थ एवो नथी
के–जे शुद्ध स्वभावने समजे पण एकदम अमलमां मूकी न शके तेणे पुण्य छोडी पाप करवुं. तेनो अर्थ तो
एवो छे के–पाप कदी न करवुं. ज्यांसुधी वीतराग न थवाय त्यांसुधी मुमुक्षु जीवने जे राग रह्यो छे ते
सत्देव, सत्गुरु, सत्शास्त्र–– तथा करुणाभाव तरफ वळ्या विना नहीं रहे पण ते जीव रागने ‘धर्म’ कदी
गणशे नहीं; तेने ते ‘धर्म’ गणतो नथी. तेथी ते शुभभावने टाळी शुद्धमां जवानो प्रयत्न करी क्रमे क्रमे
पूर्ण शुद्धता प्रगट करशे. हवे कहो के जे जीव यथार्थ स्वरूप समजे ते जीव लोभ ओछो करशे के केम?
पहेलो मित्र–– जरूर ते लोभ ओछो करशे; लोभ ओछो करवानो भाव तेने आवशे ज. तेने परिणामे
दान थया वगर रहेशे नहीं, अने बीजाने पोते दान आपे छे, एवुं अभिमान तेने थशे नहीं. जेटले अंशे
पोतामां सुधारो थयो तेटले अंशे पोते पोताने दान आप्युं एम ते मानशे, केम ते बराबर छे?
बीजो मित्र:–हा, ते बराबर छे, पण तेटलुं ज नथी, जीवनुं यथार्थ स्वरूप समजनार तो एम माने छे
के–पैसा छे ते मारा नथी, जड छे, हुं तेनो स्वामी नथी, हुं ते कोईने आपी शकुं नहीं; के लई शकुं नहीं. पण मारी
ते उपर आसकित छे ते मारे टाळवी ज जोईए, अने ते आसक्ति टाळतां पैसा जे जग्याए जवायोग्य छे ते
जग्याए पोताना कारणे गया वगर रहेशे नहीं. में जडनुं दान कर्युं एम मानुं तो हुं तो जडनो स्वामी थाउं, माटे
तेम नथी. में तो पोताना लाभ माटे मारो लोभ ओछो कर्यो, तेनो मारा पोता उपर उपकार छे, अने जे कंई
हजु लोभ रहे छे ते मने नुकसानकारक छे, माटे ते टाळुं तो ज मने पूरो लाभ थाय.
पहेलो मित्र:–तमारी वात मने न्यायसर लागे छे. अने भाषण कर्तानो अभिप्राय साचो नथी, एम
मने खातरी थाय छे. ते भाषण कर्ता बीजुं घणुं कहेता हता ते संबंधे पण चर्चा करवा जरूर छे. पण हवे पछी
मळशुं.
बीजो मित्र:–भले बहु सारुं.
(बन्ने मित्रो जुदा पडे छे)
संवादचालु (बन्ने मित्रो मळे छे.)
पहेलो मित्र:–ते भाषण कर्ता कहेता हता के–‘गरीब भले दान न करी शके तो शुं थयुं? धर्मना बीजा
अंगो घणां छे. जेवां के दया, गुरुसेवा वगेरे दरेक करी शके, ते बधां धर्मानुष्ठानो छे एम जो न मानीए तो
जगतमां दया, दान वगेरे अनुष्ठानो रहेशे नहीं.’ हवे आपणे दया संबंधी विचारीए.
बीजो मित्र:–ए भाषण कर्ताए कह्युं हतुं एवो ज तमारो मत छे, एम मानी आपणे आगळ चालीए
तो केम?
पहेलो मित्र:–ना, तेम नहीं. मारा ते विचार नथी. मारे तो हजी निर्णय करवो छे, तेथी तमने पूछयुं छे.
ए भाषणकर्ताए जे भावो कह्या हता ते, हुं तो समजवा माटे तमारी पासे रजु करूं छुं.
बीजो मित्र:–तमे कहो छो तेवा विचार ते भाषणकर्ताना अने बीजाओनां पण छे माटे ते विचारनी
परीक्षा आपणे करीए.
पहेलो मित्र:–कहो, त्यारे दया ते धर्मनुं अंग खरूं के नहीं?
बीजो मित्र:–आपणे दयानुं स्वरूप विचारीए ते पहेलांं ‘दया’ शब्दथी तमे शुं कहेवा मागो छो? तेनी
व्याख्या करो.