: चैत्र १ : २००१ आत्मधर्म : ८७ :
दया वगेरेनु वास्तविक स्वरूप दान
पहेलो मित्र:–आपणे ‘स्ववशे’ अने ‘परवशे’ संबंधे [आत्मधर्मना पहेला वर्षना चोथा अंकमां]
विवेचन कर्युं तेथी मने समजाय छे के, ‘स्ववशे’नो अर्थ आत्माना वशे थाय छे; एटले के आत्माना शुद्ध
स्वभावना वशे थाय ते ‘स्ववशे’, अने रागना वशे थाय ते ‘परवशे’ छे. आ तथा बीजा विषयो चर्च्या; हवे
बीजा प्रश्न उपर जईए तो केम?
बीजो मित्र:–भले; मने कांई वांधो नथी.
पहेलो मित्र:–हुं हमणां एक सभामां गयो हतो. त्यां एक भाईए भाषण कर्युं के– ‘गरीबोने दान
आपीए ते धर्मानुष्ठान छे’. तमारो ए बाबतनो शो मत छे?
बीजो मित्र:–तेमां तमने शंका केम थई?
पहेलो मित्र:–में ए बाबत विचार कर्यो के आ जीव अनादिथी छे, तेणे आटला बधा लांबा काळमां
कोईवार करुणाभावे दान न आप्युं होय ए केम बने? अने ते वखते ‘धर्म’ न थयो तो आ वखते केम थाय?
एम विचार थतां मन्थन चाल्युं पण कांई निर्णय न थयो एटले तमने पूछयुं.
बीजो मित्र:–दान देवामां जो शुभ परिणाम होय तो पुण्य थाय; धर्म न थाय.
पहेलो मित्र:–तमे पुण्य कहो छो तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र:–जुओ! सम्यग्दर्शन पाम्या वगर जीवे पूर्वे अनंतवार महाव्रत पाळ्यां, तेमां अतिचार
आववा दीधा नहीं, तो पण धर्म न थयो, पुण्य थयुं अने तेनुं फळ देवगति थई–ए तमे सांभळ्युं छे?
पहेलो मित्र:–हा, में ते सांभळ्युं छे. त्यारे तमे शुं एम कहेवा मागो छो के पुण्य ते धर्म नथी?
बीजो मित्र:–पुण्यने लोको धर्म कहे छे, अने माने छे; तेथी तेने ‘लौकिक धर्म’ कहेवो होय तो कहो, पण
ते ‘सत्यधर्म’ नथी.
पहेलो मित्र:–भले ते सत्यधर्म न होय पण ते धर्मानुष्ठान तो खरूं ने?
बीजो मित्र:–भाई! ते धर्मानुष्ठान छे के नहीं ते आपणे विचारीए. ‘धर्मानुष्ठान’ शब्द त्रण पदनो
बनेलो छे. ते नीचे प्रमाणे:–
धर्म+अनु+स्थान=धर्मने अनुसरीने आत्मामां स्थित रहेवुं ते. हवे तमने तुरत ख्यालमां आवशे के जो
ते भावथी धर्मनो अंश थतो होय तो जीवमां आजे शुद्धताना घणां अंशो प्रगटपणे जोईए अगर तो सम्पूर्ण
पवित्रता जोईए. धर्मनो एक अंश जेने प्रगटे तेने क्रमे क्रमे सम्पूर्ण धर्म प्रगट थया विना रहे नहीं. वळी जो
दानथी धर्म थतो होय तो गरीबो धर्म करी शके नहीं; केमके तेनी पासे तो पैसा नथी; अने एम थतां पैसावाळा
माटे ज धर्म छे एम बने, पण तेवुं नथी. केमके ‘धन’ तो परवस्तु छे, परवस्तु वडे आत्मानो धर्म थाय ज
नहीं.
पहेलो मित्र:–गरीब पैसा न आपी शके तो कंई नहीं. बीजा आपे तेनुं अनुमोदन करे. गरीबने ते रीते
धर्म थाय, करवा–कराववा अने अनुमोदवानो गमे ते भाव होय तो पण सरखो लाभ गणाय छे, माटे गरीब ते
रीते ‘धर्म’ करे.
बीजो मित्र:–तेनो अर्थ तो एवो थयो के परना आधारे धर्म थाय एटले के पैसा वडे–(जे वस्तु जीवथी
पर छे तेने आधारे) धनाढयने थाय–अने गरीबो तेनुं अनुमोदन आपे– एटले के धनाढयो पैसाने आधारे
धर्म करे तेनुं गरीब अनुमोदन आपे अने धर्म थाय–एवो सिद्धांत होय तो धर्म जड–पर वस्तुने आधिन थाय,
पण धर्म तो आत्मानो (पोतानो) स्वभाव छे पोतानो स्व (पोतीको) भाव तो पोतामां होय तेथी पोतानो
शुद्ध स्वभाव ते धर्म कहेवाय. माटे जीव पोताना स्वभावनी बराबर समजण प्रथम करे तो ते धर्म प्रगट करी
शके. ते विना कदी धर्म थाय नहीं.
पहेलो मित्र:–बराबर–धर्म ते आत्मानो स्वभाव छे, ते वात तो साची; ते भाषण कर्ता पण ‘धर्म’ नी
तेवी व्याख्या करता हता, पण ते कहेता हता के आपणे दान आपीए, सेवा करीए तो ते पुण्य छे; अने ते
धर्मने प्रेरे माटे ते सत् अनुष्ठान कहेवाय–सहायक कहेवाय. ए बाबतमां तमारुं शुं कहेवुं छे?
बीजो मित्र:–जो ते भाव धर्मने प्रेरतो होय तो धर्मनो अनंतमो भाग पण तेनाथी प्रगट थवो जोईए
अने जो तेनाथी अनंतमो भाग पण प्रगट थतो होय तो जेम जेम दान, सेवा वगेरे आपणे वधु वधु करीए
तेम तेम ते दान, सेवा वगेरे