: चैत्र १ : २००१ आत्मधर्म : ९१ :
३. चारित्र अपेक्षाए पोतामां बाकी रहेता अशुद्ध भावने (शुभाशुभभावने) ते झेर समान गणे छे.
अने ते टाळवाने ज पुरुषार्थ वर्ते छे.
ए रीते ज्यारे शुद्धतामां टकी शकातुं नथी त्यारे तेने शुभभाव थाय छे. अने ते शुभभावने अनुकूळ
बाह्यपदार्थोनो प्रसंग–संयोग रहे छे. जगतनां जीवो मुख्यपणे बहिद्रष्टि छे, अने पोताने अने ज्ञानीने बहारना
संयोगे सरखा के वधारे देखीने ज्ञानीनो भाव पोताना जेवो ज छे, एवी कल्पना करे छे. तेथी लोको माने छे
तेवी दया, दान ज्ञानीओ करता होय तेम ते बहिद्रष्टिओ माने छे; परंतु ज्ञानीओ तो पोतामां थता कषायने
अकषाय–स्वरूपनी द्रष्टि वडे टाळवा मागे छे. तेमां क्रम पडे छे; तेथी वच्चे शुभभाव आवे छे; पण ते
शुभभावने ज्ञानी कदी धर्म गणता नथी. धर्ममां तेने प्रेरक, आदरणीय के सहायक गणता नथी. जेने प्रेरक
गण्युं–भलुं गण्युं–आदरणीय गण्युं–सहायक गण्युं–तेने छोडवा लायक कोई माने ज नहीं, ए रीते ज्ञानीओ अने
जगतना बीजा लोकोनी मान्यतामां मोटो आंतरो छे. जगतनां ते जीवोनी मान्यता संपूर्ण उलटी छे; मान्यतामां
तद्न फेर छे.
पहेलो मित्र– साची श्रद्धा थया पछी चारित्र तेवुं ज थवुं जोईए, ते केम थतुं नथी?
बीजो मित्र:–साची श्रद्धा अने साचुं ज्ञान एकी साथे थाय, पण चारित्रमां क्रम पड्या वगर रहे नहीं.
मारा एक मित्र आ दलील वखतो–वखत लावे छे, त्यारे आ नियम समजाववा तेमने केटलाक दाखला आपुं छुं,
ते अहीं कहुं छुं:–
आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत
संवत २०१ ना फागण सुद ना रोज, करांचीना भाईश्री नागरदास
भणजी (उमर वष ४प) तथ तमन पत्न श्र मरघबन (उमर वष ४०) अ
बन्नेए आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत परम पूज्य श्री सद्गुरूदेव मारफत अंगीकार कर्युं छे.
[१] आपणे निश्चय कर्यो के आपणे आपणा भाईने त्यां जवुं छे. त्यां जवाथी लाभ छे. ते निश्चयनी
साथे तुरत ज भाईने घेर जवाय नहीं, पहोंचाय नहीं, एरोप्लेनमां जईए तो पण ते ज वखते न पहोंचाय;
एटले कार्य करवाना निश्चय अने कार्यनी पूर्णता वच्चे अंतर होय ज.
[२] आपणे खोटे रस्ते चाल्या छीए. एम खबर पडी एटले आपणे प्रथम त्यांथी आगळ वधतां
अटकीए, पछी त्यांथी मोढुं फेरवी जूने रस्ते फेरवेल मोढे चालीए अने जूनो रस्तो पूरो थाय, पछी नवे रस्ते
चालीए त्यारे रस्ताने छेडे आपणे स्थाने पहोंचीए. [आ द्रष्टांत छे.]
पहेलो मित्र:– आतो तमे परवस्तुनो दाखलो आप्यो, पोतानो दाखलो न आप्यो.
बीजो मित्र:– परवस्तु जे जे जाणीती होय तेनुं द्रष्टांत अपाय, ते सिद्धांतने सर्वांशे लागु पडे नहीं; पण
ते उपरथी सिध्धांत पकडी लेवो जोईए. आत्मानुं द्रष्टांत होय नहीं, केमके ते तो अनुभवनो विषय छे. जेने
आत्मानो अनुभव न होय तेने द्रष्टांतनी जरूर छे. जे समजेल छे तेने द्रष्टांतनी जरूर नथी, जे समजवा मागे
छे तेने द्रष्टांतनी जरूर पडे, अने ते तेने परिचित वस्तुनुं द्रष्टांत अपाय तोज ते समजे.
पहेलो मित्र–कोई पण जीवने श्रध्धा अने चारित्र सरखां होय?
बीजो मित्र– केवळी भगवानने अने सिद्ध भगवानने तेम होय छद्मस्थने तेम होय ज नहीं.
पहेलो मित्र:–तेनुं कारण शुं?
बीजो मित्र:–सम्यग्ज्ञानीने अंशे राग टळ्यो छे तथा अंशे राग छे, ते टाळवा मथे छे, पोते सरागी
अवस्थामां छे एम ते जाणे छे, तेथी राग होय त्यां सुधी चारित्र पूरूं थाय नहीं.
अहीं एक खास वात ख्यालमां राखवानी छे के–‘पोते सराग छे माटे रागना कृत्य करवां जोईए’ एवो
धर्म छे एम ते माने नहीं के बीजाने तेम प्ररूपे ज नहीं. जो एवी प्ररूपणा करवामां आवे तो सराग अवस्थामां
राग आदरणीय छे, एवी मान्यता थई अने तेवी मान्यता साचा ज्ञानीने होय नहीं.
(१) जीवनो त्रिकाळी चैतन्य ध्रु स्वभाव ते निश्चय; अने वर्तमान वर्तती पर्याय ते व्यवहार. (२)
व्यवहारने वर्तमान पर्याय पुरतो जेम छे तेम न जाणे तो एकांत. (३) व्यवहारने आदरणीय माने तो एकांत,
फक्त तेने जाणवाथी अनेकांत. (४) निश्चय अने व्यवहार ए बंने जेम छे तेम जाणी निश्चयने आदरवो,
आश्रय करवो ते अनेकांत; निश्चयने आश्रये शुध्ध अवस्था प्रगटे छे. (प) पर चीजथी मने लाभ नुकशान
थाय एम माने छे ते पर चीज अने हुं एक छुं एम माने छे तेथी एकांत. (६) निश्चय अने व्यवहार बंने
जाणवा लायक छे, पण आदरवा लायक निश्चय छे. (७) निश्चयनो आश्रय ते मोक्षमार्ग, व्यवहारनो आदर–ते
संसार मार्ग.