: चैत्र २ : २००१ आत्मधर्म : १०९ :
स्तुति तो केवळीना जेवा गुणो छे तेवा पोतामां अंशे प्रगट करवा ते छे. ते परमार्थथी केवळीनी स्तुति
छे.
३७ शरीरना गुणो द्वारा केवळी भगवाननी स्तुति ते खरी स्तुति नथी एम बताववा माटे गाथा ३०
मां द्रष्टांत आप्युं छे. ते द्रष्टांतमां कह्युं छे के–नगरनी स्तुति करतां राजानी खरी स्तुति थती नथी. तेम देह
गुणनी स्तुति करतां केवळी भगवाननी खरी स्तुति नथी थती.
३८ ए प्रमाणे व्यवहार स्तुतिनुं स्वरूप समजाव्युं (बीजी रीते कहीए तो व्यवहार नयनुं स्वरूप
समजाव्युं) तेमां कह्युं के–व्यवहारनये जे भगवाननी स्तुति छे ते शुभभाव छे तेथी ते साची स्तुति नथी. साची
स्तुति तो ते कहेवाय के जेना द्वारा शुद्धभाव प्रगटे छे. निश्चय स्तुतिनुं स्वरूप गाथा ३१, ३२, ३३ मां अज्ञानीनुं
अज्ञान टाळवा माटे आचार्य भगवाने कह्युं छे. ते समजतां अज्ञान टळी जाय छे एम हवे जणावे छे.
[गाथा ३१–३२–३३: निश्चय स्तुतिनुं स्वरूप.]
३९ जीवने अनादिनी अज्ञान दशा चालती आवे छे तेथी कदी पण निश्चय स्तुतिनुं स्वरूप जीव समज्यो
नथी तेथी ते अज्ञान टाळवा माटे निश्चय स्तुतिनुं स्वरूप प्रगटपणे आ गाथामां प्रतिपादन कर्युं छे.
४० जीवे अनादिथी ईन्द्रियो पोतानी छे–एम मान्युं छे. ते ईन्द्रियोनी मदद वडे ज्ञान थाय एम मान्युं छे
अने ईन्द्रियो द्वारा जणाता पदार्थोनो संग कर्यो छे; अहीं समजाव्युं छे के:–ते जड ईन्द्रियो–भाव–ईन्द्रिय अने
ईन्द्रियोना विषयभूत पदार्थोथी तारूं स्वरूप तदन जुदुं छे; तुं ज्ञान स्वरूप छो माटे निर्मळ भेद–अभ्यासनी
प्रविणता प्राप्त करी, अंतरंगमां जे अंतरंग प्रगट अति सूक्ष्म चैतन्य स्वभाव तेना अवलंबनना बळ वडे, ते
द्रव्येंद्रिओ पोताथी जुदी छे एम नक्की करवुं. तथा तुं एक अखंड चैतन्य शक्तिरूप छो माटे खंडखंड ज्ञान ते तुं
नथी एम नक्की करवुं, तथा स्पर्शादि पदार्थोथी तुं असंग छो–एम त्रण प्रकार समजावी कह्युं छे के– (१) जीवने
चैतन्यना ज अवलंबननुं बळ छे (२) जीव अखंड ज्ञान स्वरूप छे (३) जीव असंग छे. एम नक्की करवाथी
जितेन्द्रिय थवाय छे. माटे प्रथम आ मान्यता प्रगट करवी ते मान्यता ज जितेन्द्रियपणुं छे अने ते धर्मनी
शरूआत छे.
४१ ते शरूआतनी निश्चय स्तुति छे. ते जघन्य निश्चय स्तुति छे, ते भगवाननी खरी स्तुति छे.
प्रश्न–आमां भगवाननी स्तुति क्यां आवी? एमां तो भगवाननुं नाम पण न लीधुं.
उत्तर–जेनी स्तुति करवामां आवे तेना गुणनो अंश पोते पोतामां प्रगट करे तो खरी स्तुति थाय.
सम्यग्दर्शन ए भगवानमां प्रगट थएला गुणोनो एक अंश छे–माटे सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते भगवाननी
नानामां नानी खरी स्तुति छे– सम्यग्दर्शन तेज खरी स्तुति (खरी भक्ति) छे. (जुओ गाथा ३१) ए प्रमाणे
अज्ञानीने खरी स्तुति (खरी भक्ति) समजावी तेनुं अज्ञान आ गाथामां टाळ्युं.
४२ भगवाननी सौथी नानी खरी स्तुति कह्या पछी तेनाथी उंची जातनी स्तुति गाथा ३२ मां कही छे.
सम्यग्द्रष्टि जीव पोतानी शुद्धता केळवी साधुपणुं प्राप्त करी निर्विकल्पदशामां आगळ वधी मोह उपर जीत मेळवे
ते भगवाननी वधारे ऊंची खरी स्तुति छे. आ स्तुति कह्या पछी सौथी उंचा नंबरनी स्तुति–सम्यग्द्रष्टि साधु
क्षीण–मोह दशा प्राप्त करे–ते छे, एम गाथा ३३ मां जणाव्युं छे.
४३ क्षीणमोह दशा ते केवळदशा करतां उतरती छे तेथी त्यां सुधीनी शुद्धदशाने निश्चय स्तुति कहेवाय छे,
पण केवळज्ञान प्रगट थतां समानता थई जाय छे तेथी ते दशाने निश्चय स्तुति कहेवाय नहीं. आ प्रमाणे
अज्ञानीने खरी स्तुतिना त्रण प्रकार कह्या, पहेली स्तुति चोथे गुणस्थाने प्रगटे छे. ए स्तुति प्रगट्या विना
कोई पण जीवने उपरनी दशानी स्तुति प्रगटे ज नहीं.
४४ गाथा ३१ मां कहेली निश्चय स्तुतिने ज्ञेय–ज्ञायक संकर दोषनो परिहार, गाथा ३२ मां कहेली निश्चय
स्तुति ने भावक भाव्य संकर दोष दूर थवो अने गाथा ३३ मां कहेली उत्कृष्ट स्तुतिने भावक भाव्य संकर
दोषनो अभाव ए नामथी पण ओळखवामां आवे छे.